निधि जल्दी से सामान बांध लो हम कल शाम की गाड़ी से घर जा रहे हैं, मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, रितेश ने फोन पर कहा।
लेकिन रितेश मेरी शाम को जरूरी मीटिंग है, जिसकी तैयारी मैं पिछले एक महीने से कर रही थी और उसमें मेरी प्रजेंटेशन भी है तो मै तो नहीं जा पाऊंगी, आप चले जाइये और मम्मी को संभाल लीजिए।
तुम्हारा फिर से वो ही मीटिंग का नाटक, तुम तो मेरे घरवालों को जरा भी नहीं चाहती हो, हर समय ना जाने का कोई ना कोई बहाना बनाती रहती हो, तुम्हें तो बस अपनी आजादी चाहिए, जब देखो मीटिंग और ऑफिस ये नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती? रितेश ने गुस्से में फोन पटक दिया।
निधि को कभी-कभी विश्वास नहीं होता था कि ये वो ही रितेश है जो उसकी स्मार्टनेस और काबिलियत का दीवाना था, जो उसके आत्मनिर्भर होने की हमेशा तारीफ करता था, आज वो ही कह रहा है कि नौकरी छोड़ दो, अब नौकरी छोड़ भी कैसे सकती हूं, घर की ईएमआई दोनों बराबर मिलकर देते हैं, जब सैलेरी आती है तो रितेश को अच्छा लगता है, पर जब वो किसी काम से ससुराल नहीं जा पाती है तो वो कुछ भी अनाप -शनाप कह देता है और गुस्सा हो जाता है।
गुस्सा भी ऐसा कि तीन-चार दिन तक बात नहीं करेगा, फिर निधि उसे बड़ी मुश्किल से मनाती हैं, धीरे-धीरे सब सामान्य हो जाता है और जिंदगी वापस पटरी पर आ जाती है।
अभी छह महीने पहले ही तो दोनों की शादी हुई थी,
दोनों ही एक ऑफिस की सालाना मीटिंग के दौरान मिले थे, फिर फोन का सिलसिला शुरू हुआ, दोस्ती हुई प्यार हुआ और फिर शादी हो गई। दोनों के घरवालों ने भी कोई आपत्ति नहीं की, उन्हें भी रिश्ता पसंद था।
रितेश और निधि दूसरे शहर में रहते थे और उनके परिवार दूसरे शहर में रहते थे, दोनों के बीच वहां भी आना-जाना था, निधि ससुराल जाती थी तो वहीं मायके भी रह आती थी।
रितेश के घर में मम्मी -पापा और एक छोटी बहन थी जो कॉलेज में पढ़ रही थी, वहीं निधि के घर में मम्मी -पापा थे। दोनों के परिवार ज्यादा दूर भी नहीं रहते थे, कभी-कभी उनका आना-जाना भी हो जाता था।
रितेश और निधि के बीच में बड़ा प्यार था पर जब रितेश की मम्मी की कोई बात आती थी तो रितेश निधि के प्यार को भुला देता था, और ऐसे व्यवहार करता था कि उसकी मम्मी की बीमारी की जिम्मेदार सिर्फ निधि है क्योंकि वो उनकी सेवा करने के लिए नहीं गई।
रात को वो गुस्से में घर आया, तुम है ना हर बार बस अपनी ही चलाती रहती हो, कभी सोचा है मेरी मम्मी ने मुझे किस तरह से पाला है और मेरे करियर के लिए कितने समझौते किये है, एक ही बेटा हूं और बहू लाया हूं तो तुमसे कोई उम्मीद रख भी लेती है तो कोई बड़ी बात नहीं है, हर बहू का फर्ज होता है कि वो सास की तन-मन से सेवा करें, तुम अपनी मीटिंग कैंसिल नहीं कर सकती ?
रितेश ये तुम्हें क्या हो जाता है? मै अपनी मीटिंग कैंसिल नहीं कर सकती हूं, तुम्हें तो सब पता है फिर भी क्यों बात का बतंगड़ बना रहे हो। अरे!! मम्मी बीमार है तो तुम जाओ ना, मै कौनसा रोक रही हूं, तुम्हारे पापा है, छोटी बहन है सब मिलकर संभाल लेना, मै नहीं जा सकती हूं।
रितेश गुस्से में कमरे में चला गया, निधि का चेहरा उतर गया था, और आंखें भर आई थी, रितेश को अपने मम्मी-पापा के आगे कुछ भी नहीं दिखता था,
मै भी तो अपने मम्मी-पापा को छोड़कर रह रही हूं, उनके तो कोई बेटा भी नहीं है, और मेरे कोई छोटी बहन भी नहीं है, वो भी तो अकेले सब मैनेज करते हैं तो क्या रितेश अपनी उनको संभाल नहीं सकते हैं।
दूसरे दिन रितेश मां के घर चले गए और निधि देर रात तक अपनी मीटिंग में व्यस्त रही थी, और घर आकर सो गई। अगली सुबह फोन की घंटी बजती है उधर से रितेश गुस्से में उबल रहा था, तुम भी अजीब हो! मै यहां पहुंच गया और मम्मी को डॉक्टर को दिखाया और तुमने हाल भी नहीं पूछे, घर की बहू हो, तुम्हारा फर्ज मै निभा रहा हूं, इनकी सेवा कर रहा हूं।
निधि शांति से बोलती है, मै रात को एक बजे घर आई थी, कल बहुत थक गयी थी, अब तबीयत कैसी है?
डॉक्टर ने उन्हें आराम बताया है, अब बुढ़ापे का शरीर है, जल्दी से थक जाती है, कुछ टेस्ट बताये है वो करवाने है, मनु की भी परीक्षाएं चल रही है, जैसे तैसे खाना बना देती है, तुम कल आ जाओ, अब तो कोई मीटिंग भी नहीं है, कोई बहाना नहीं चलेगा, यहां सब रिश्तेदार बातें बना रहे हैं कि सास बीमार है और बहू आई नहीं है, तुमको इस वक्त यहां होना चाहिए था, तुम्हारा काम मेरी बहन मनु कर रही है।
निधि अगले दो दिनों की छुट्टी लेकर ससुराल चली जाती है, उसे देखकर सास ताने देती है, फुर्सत मिल गई मुझसे मिलने की, सोचा होगा अब तो ये चली जाएगी तभी आयेंगी, मेरी बेटी चौके में लगी है पर तुझे शर्म नहीं आती है, भाभी के होते हुए ननद रसोई में पसीना बहा रही है, अब कितने दिनों की मायके में है, कुछ समय बाद तो इसकी शादी करेंगे ही पर अभी भी आराम नहीं मिल रहा है।
निधि अपने सास के रवैये से भलीभांति परिचित थी, पर वो कुछ जवाब नहीं देती थी, उसे पता था यहां पर एक शब्द भी बोलेंगी तो सौ शब्द सुनने को मिलेंगे, इसलिए वो चुप ही रहती थी, चुपचाप रसोई में अपना काम किया और मायके फोन किया और मम्मी से बात की।
मम्मी से बात करके उसके चेहरे पर पसीना आ गया, उसकी मम्मी की तबीयत पिछले चार दिनों से खराब थी, वो बिस्तर पर थी और घर में पापा ही रसोई और अस्तपताल दोनों संभाल रहे थे।
उसे ऑफिस के काम थे, मीटिंग थी इसलिए बताया नहीं, पर अब इसलिए बता दिया कि वो ससुराल तो आई हुई है, तो मायके भी मिलने को आ जायेगी।
रात के खाने की तैयारी करके वो अपनी सास से बोली कि, मुझे मायके जाना है, मम्मी की तबीयत बहुत खराब है, दो दिन वहां रह आऊंगी, ये सुनते ही घर में घर में कोहराम मच गया, तुझे अपनी मम्मी की पड़ी है और मै जो बीमार हूं, उसका क्या? अच्छा तो तुझे अपनी मम्मी की बीमारी का पता था, इसीलिए तो तू आई है, वरना तू आती भी नहीं कोई ना कोई बहाना बना देती, तुझे हम अपने घर की सेवा के लिए लाये है या तेरी मां की ही सेवा करती रहेगी।
मम्मी जी, मुझे मम्मी ने अभी बताया कि वो चार-पांच दिनों से बीमार है, फिर यहां तो रितेश है, मनु है, पापाजी है, सब मिलकर संभाल लेंगे, और अब आपकी तबीयत भी पहले से बेहतर है तो मै मम्मी के पास जाकर आ जाती हूं, दो दिन में आ जाऊंगी, निधि ने कहा।
उसकी बात घर में आते हुए रितेश ने सुन ली और अपना निर्णय दे दी कि तुम कहीं नहीं जाओंगी, इधर रहकर ही मम्मी की सेवा करोगी, काम से बचने के लिए मायके जाने का बहाना मत बनाओ, तुम कहीं नहीं जा रही हो।
निधि का मन वैसे ही बेचैन हो रहा था उस पर सास और पति दोनों मना कर रहे थे, सासू मां अच्छी भली हो गई थी तो अब जाने में क्या परेशानी है।
निधि तू कहीं नहीं जा रही है, मैंने अपना बेटा तुझे क्या दे दिया, तू तो मुझे और मेरे त्याग को भुला बैठी,रितेश को नौ महीने पेट में रखा था, रातों को जागकर दूध पिलाया था, बीमारी में इसकी देखभाल की थी, इसकी पढ़ाई के लिए खुद की इच्छाओं को मारा था, कितनी मुश्किल से रितेश को पाला और पढ़ाई करवाई।
आज मेरी उस तपस्या का ये फल मिल रहा है कि उसकी पत्नी मेरी सेवा करने से मना कर रही है, बहुत मुश्किल होता है पाले हुए बेटे को किसी को ऐसे सौंपना। तेरी मम्मी को तो मुफ्त में ही दामाद मिल गया।
ये सुनकर निधि सन्न रह जाती है, वो फिर हिम्मत करके कहती हैं, मम्मी जी माफ कीजिए आपने बेटा दिया है तो मेरी मां ने भी बेटी दी है, वो भी देना आसान नहीं है, आपका बेटा तो आपके पास जब चाहे आ सकता है, जब चाहें आपकी सेवा कर सकता है, पर मुझे तो अपनी मम्मी से मिलने के लिए ही आपसे पूछना पड़ रहा है, मै बहू हूं तो एकदम से जा भी नहीं सकती हूं।
आपने अपने बेटे के लिए बहुत कुछ किया है तो मेरी मम्मी ने भी कम नहीं किया है, तपस्या तो पालने के लिए हर मां करती है, वो बेटे और बेटी में फर्क नहीं करती है।
मेरे मम्मी-पापा ने भी मुझे पढ़ाया है, अपने पैरों पर खड़ा किया है, मैं भी रितेश के जितना ही कमाती हूं पर आपकी बंदिशों ने मुझे जकड़ रखा है, मै हमेशा से समझौता करके चल रही हूं।
रितेश से मै प्यार करती थी और इनके अच्छे व्यवहार के कारण ही मैंने इनसे शादी की थी, पर मुझे पता नहीं था कि प्यार की और शादी के बाद की जिंदगी बहुत अलग होती है, दोनों में बहुत अंतर होता है, कोई भी इंसान हो उसका असली व्यवहार साथ रहने पर ही पता चलता है,
मैंने इतने दिनों अपने मम्मी-पापा के सिखाएं संस्कारो का मान रखा और मै निभाती रही , पर आज मै रूकूंगी नहीं, मेरी उसी मां को मेरी बहुत जरूरत है, और ये मेरे अस्तित्व की बात है, क्या मैं अपने माता-पिता के लिए इतना सा भी नहीं कर सकती? अपने पैरों पर खड़े होने के बावजूद भी मुझे हर निर्णय के लिए आप लोगों पर निर्भर रहना होता है, ये ठीक नहीं है, क्या बहू का कोई अपना अस्तित्व,अपनी इच्छा, अपना निर्णय नहीं हो सकता है? निधि अपना सामान लेकर जाने लगी तो रितेश ने कह दिया सोच समझकर जाना, अगर आज तुम गई तो फिर घर में कभी नहीं आओगी, निधि भी हिम्मत करके चली गई।
निधि मायके पहुंची थी कि उसकी मम्मी जैसे उससे मिलने के लिए ही रूकी हुई थी, निधि को देखकर उन्होंने अंतिम सांस ली और दुनिया से चली गई, मम्मी के इस तरह जाने से निधि सदमे में आ गई।
अब पापा को अकेले छोड़ना संभव नहीं था, घर का हिसाब-किताब करके और पापा को साथ लेकर निधि वापस शहर चली गई, वहां अलग से घर किराये पर ले लिया और रितेश वाले घर की दूसरी चाबी थी, वहां से अपना सामान लेकर चली गई।
रोज ऑफिस में रितेश से सामना होता था, रितेश को लगता था कि निधि को इस तरह नहीं जाना चाहिए था और निधि को लग रहा था कि उसने अपनी मम्मी से मिलकर कुछ गलत नहीं किया क्योंकि अगर वो उस दिन नहीं जाती तो उसकी मां उससे मिले बिना ही चली जाती।
कुछ दिनों से रितेश ऑफिस नहीं आ रहा था पूछने पर पता चला कि उसकी छोटी बहन मनु की शादी है, रितेश ने उसे बुलाया नहीं था, हालांकि रितेश और निधि ने तलाक नहीं लिया था फिर भी दोनों अलग ही रह रहे थे।
निधि ने भी बिना बुलाए जाना जरूरी नहीं समझा।
इसी तरह दिन बीत रहे थे, एक साल निकल गया, निधि के पापा अपनी पत्नी के बिना ज्यादा दिनों तक जी नहीं पायें और संसार से चले गए, निधि को संतोष था कि उसने अपने पापा की सेवा तो की उन्हें अकेला नहीं छोड़ा।
अब निधि अकेले ही रह रही थी, रोज ऑफिस जाती थी और अपना काम करती थी, एक दिन अपने घर में घंटी बजी तो एकदम से रितेश को देखकर चौंक गई।
आज तुम यहां कैसे और क्यों आये हो? उसने सवाल किया।
मै तुमसे अपने बुरे व्यवहार के लिए माफी मांगने आया हूं, मैंने हमेशा तुम पर अपनी सोच थोपी थी, कभी तुम्हारी भावनाओं को महसूस नहीं किया, कभी तुम्हारे दर्द को नहीं समझा, तुम्हें अपनी मम्मी से मिलने तक को रोका था पर मै ये भुल गया था कि जैसे मेरी मम्मी है वैसे ही तुम्हारी भी तो मम्मी है।
निधि को ये सब सुनकर विश्वास नहीं हुआ, उसने यही कहा कि अच्छा अचानक से ये भावनाएं ये दर्द कैसे महसूस हुआ, इसके पीछे कोई तो कारण होगा, वरना तुम्हारा जैसा व्यवहार है, उसमें बदलाव आना एकदम से असंभव सा है।
हां, जब खुद पर बीतती है, तभी हर दर्द का अहसास होता है, जब से छोटी बहन मनु की शादी की है, सारे अहसास हो रहे हैं, वो भी नौकरी करती है पर बहुत मजबूर हैं, दामाद जी ने उसका जीना मुश्किल कर रखा है, कभी भी घर नहीं भेजते हैं, कुछ दिनों पहले पापा को हार्ट अटैक आया था, वो अस्तपताल में भर्ती थे, हमने कहा था कि मनु को कुछ दिनों के लिए भेज दें, पर दामाद जी ने भेजा नहीं, मुझे भी छुट्टी मिल नहीं पाई, सीनियर्स के साथ मीटिंग थी, मम्मी को अकेले भागदौड़ करनी पड़ी पर मनु के ससुराल वालों ने उसे भेजा नहीं।
तब जाकर मम्मी और मुझे समझ में आया कि जब हमने अपनी बहू का दिल दुखाया है तो हमारी बेटी को कैसे सुख मिल सकता है, जो हम दूसरे की बेटी को देंगे वो ही तो पलटकर हमें मिलेगा।
अब मनु मायके आने को तरस जाती है, पहले तो बाहर नौकरी करने जाती है, फिर ससुराल वालों की नौकरानी बनकर सेवा करती है, बहुत दुखी है। तुम हम सबको माफ कर दो ताकि हमारे मन का बोझ हल्का हो सकें।
रितेश ने कहा तो निधि का दिल पिघल गया, आखिर उसने रितेश से प्यार किया था, यही प्यार था तभी तो उसने कभी तलाक लेने की नहीं सोची, एक प्यार की डोर थी जिससे वो आज भी बंधे हुए थे।
मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हें तुम्हारी मम्मी से भी मिलने से रोका और दोबारा घर आने को नहीं कहा।
लेकिन आज मै कह रहा हूं कि वापस घर चलो, हम सबको संभाल लो, सब तुम्हें बहुत याद करते हैं, निधि का पत्थर दिल पिघल गया, पत्नी तो वैसे भी पति की हर गलती माफ कर ही देती है। वो वापस अपने ससुराल अपने घर चल दी क्योंकि रिशते चाहें खून के हो या धर्म के ऐसे ही तो तोड़े नहीं जाते हैं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खण्डेलवाल
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