“ क्या हुआ मम्मी जी आज आपने डिनर नहीं बनाया… और कृष के कपड़े भी नहीं बदले… जबकि कितनी बार कहा है… दिन भर में इसके कपड़े बदलते रहिए…. ।” अपने बेटे को सुबह के कपड़े में ही देख नताशा सासु माँ दमयंती जी पर बरस रही थी
“ बहू आज सुबह ही मन अच्छा नहीं लग रहा था तुम्हारे ऑफ़िस जाने के बाद जैसे तैसे कृष का ध्यान रखा है… तुम आ गई हो तो एक कप चाय बना कर दे दो…. सिर बहुत दर्द कर रहा है ।” दमयंती जी सिर दबाते हुए बोली
” मम्मी जी मैं कोई अलाउद्दीन का चिराग़ तो नहीं हूँ ना जो थकती नहीं और सब हाज़िर कर दूँगी … आप खुद बना कर पी लीजिए….. एक तो डिनर भी नहीं बनाया उपर से चाय की फ़रमाइश ।” नताशा भुनभुनाते हुए बोली
कृष को दमयंती जी के कमरे से अपने कमरे में ले जा रही थी कि मोबाइल बज उठा …देखा तो उसके पति कार्तिक का फ़ोन आया हुआ था
“ हैलो… सुनो कुछ देर में बात करती हूँ ।” तल्ख़ लहजे में कह नताशा ने फ़ोन रख दिया
दमयंती जी किसी तरह उठ कर रसोई में चाय बनाने रखी ही थी कि उन्हें चक्कर सा महसूस हुआ और सॉसपेन पर हाथ लग वो नीचे गिर गया…
आवाज़ सुन नताशा भागती हुई आई…. सास को सँभालने की जगह वो उनपर झल्लाने लगी।
“ बहू कह रही हूँ तबियत ख़राब है फिर भी तुमने मेरी ना सुनी…. मैं भी तो इंसान हूँ ना… कोई अलाउद्दीन का चिराग़ तो नहीं जो हर पल हुक्म मानती रहूँ….कल शनिवार है ना आने दो कल कार्तिक को वो आएगा तो उसको बोल कर वापस गाँव ही चली जाऊँगी….तुम्हारे अंदर जरा सी भी इंसानियत नहीं है… मेरी हालत खराब है फिर भी तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है।” दमयंती जी दर्द से कराहते हुए बोली
” ये सही है आपका …जरा सी बात हो गाँव जाने की धमकी दे देती है… रहना तो आपको यही है ….. कृष की देखभाल कौन करेगा फिर….और इंसानियत की बात तो कीजिए मत आपको कहाँ दिखता है मैं भी तो थक कर आती हूँ…उसके बाद घर के काम भी देखती हूँ ना।”नताशा आँखें चमकाते हुए बोली
दमयंती जी बिना चाय पीए और खाना खाए सोने चल दी…. नींद आँखों से कोसों दूर थी…..
“ कार्तिक के बापू… यही दिन दिखाने के लिए अकेला छोड़ गए….. साथ ही ले चलते तो कम से कम बहू के ताने तो ना सुनने को मिलता…. देख रहे हो ना कैसे बात करती है….?” सामने पति की तस्वीर देख बिलख पड़ी दमयंती जी कार्तिक जब कॉलेज में ही था पिता चल बसे….गाँव में रहने के बावजूद चाहत थी बेटा गाँव में ना रहे… पढ़ाई कर के अच्छी नौकरी पर लग जाए…. कार्तिक के लिए दमयंती जी ने फिर एक ज़मीन बेच कर उसकी पढ़ाई पूरी करवाई…. पढ़ाई के दौरान नताशा से पहचान हो गई… पर दोनों का कार्यक्षेत्र अलग अलग था….दमयंती जी को बेटे की पसंद पर क्या ही एतराज़ होता….. शादी के बाद कुछ समय तक दमयंती जी गाँव में ही रही…. कार्तिक और नताशा अलग अलग शहरों में रहते हुए जॉब कर रहे थे बस छुट्टी के दिन ही उनका मिलना होता…जब नताशा माँ बनने वाली थी तो कार्तिक माँ को नताशा के साथ रहने के लिए ले आया…. यहाँ आकर दमयंती जी अवाक् रह गई….. नताशा ना तो घर में खाना बनाती ना साफ़ सफ़ाई करती….. जब भी कार्तिक आता वही सफ़ाई किया करता…. दमयंती जी ने कार्तिक से अकेले में पूछा,“ बेटा ऐसे कोई कैसे रह सकता है….?”
तब कार्तिक ने एक काम करने वाली सहायिका रखने का सुझाव दिया….. और रसोई दमयंती जी खुद करने की हामी भर दी…. बहू से ऐसे हालात में क्या ही काम करवाती…. पर काम वाली का असमय आना दमयंती जी को भारी लगने लगा और वो उसे हटाकर सब काम खुद ही करने लगी थी….. नताशा बड़े घर की बेटी थी और दमयंती जी ने नोटिस किया कार्तिक भी नताशा से कभी भी कुछ करने के लिए नहीं कहता था बल्कि वो खुद ही कर दिया करता है चाहे वो उसके जूठे बर्तन ही क्यों ना हटाने हो…. दमयंती जी नताशा को कहना भी चाहती तो कार्तिक ही मना कर देता…माँ रहने दो ना काम करके आती है फिर घर में काम उपर से ऐसा शरीर…..दमयंती जी ऐसे में बेटे बहू से क्या ही कहती…
कृष के होने के बाद नताशा और मनमानी करने लगी थी….अपने बेटे तक की सारी ज़िम्मेदारी दमयंती जी पर डाल दी थी ….पोते के मोह में दमयंती जी भी चुप रह जाती थी पर आज का दिन उन्हें बेचैन कर गया था…..वैसे वो कम ही बीमार पड़ती थी पर आज ना जाने क्यों सुबह से उनका मन अच्छा नहीं लग रहा था ऐसे में वो बस कृष का ही ध्यान जैसे तैसे रख पाई थी…..सोचते सोचते दमयंती जी सो गई…. नताशा हाल तक पूछने नहीं आई
दूसर दिन तड़के ही कार्तिक आ गया था…..
सुबह जब दमयंती जी कमरे से बाहर निकल कर नहीं आई तो वो माँ से मिलने गया।
“ माँ “कह जैसे ही उसने उन्हें छुआ वो सहम गया….उनका बदन तप रहा था….
“ नताशा ” कार्तिक ज़ोर से चिल्लाया
“ क्या है?” पैर पटकते हुए आकर नताशा ने कहा
“ माँ को बुख़ार है और तुमने मुझे बताया भी नहीं..?” कार्तिक ने चिल्ला कर कहा
“अरे उम्र हो रही है हो गया होगा बुख़ार इसमें चिल्लाने की कोई ज़रूरत नहीं है ।”नताशा के तेवर कम नहीं हुए
“ थोड़ी सी इंसानियत के नाते ही देख लेती…. माँ मेरी है पर तुम्हारे लिए ही वो यहाँ पर रहती है….. साफ़ सफ़ाई, खाना सब कुछ माँ ही करती है…यहाँ तक की हमारे बच्चे की देखभाल भी वही करती है….. मेरी जॉब यहाँ होती तो अलग बात थी…. मुझे सच में आज तुम पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा है मैं माँ और कृष को लेकर चला जाऊँगा….. तुम रहना यहाँ जैसे जी करें…. जब तुम्हें हमसे मिलने का मन करें तो आ जाना और नहीं तो कृष को साथ रखना चाहो तो अपनी माँ को बुला कर देख लो।” कार्तिक तमतमाते हुए बोला
“ ठीक है मैं अपनी माँ को बुला लूँगी ।” नताशा ने भी ताव दिखाते हुए कहा
नताशा ने उसी वक़्त अपनी माँ को फ़ोन मिलाया और उनसे आने के लिए कहने लगी
“ ये क्या कह रही है बेटा….. मैं और तेरे पास आकर रहूँ…. अरे तेरे पापा और छोटे भाई बहन का क्या होगा फिर…. देख जो हुआ उसके लिए माफी माँग ले…. कोई बाहर वाली आकर भी कृष का ख़्याल वैसे नहीं रख सकती जैसे दादी रखती हैं….. हो सके तो साफ़ सफ़ाई के लिए किसी को फिर से रख लो ….और हाँ थोड़ा काम तुम भी किया करो…. बेटा कार्तिक बहुत अच्छा लड़का है…. और दमयंती जी तुम्हारे लिए जो कर रही हैं वो किसी बेटी की माँ भी इतना नहीं करेंगी….।” नताशा की माँ ने समझाते हुए कहा
नताशा सोच में डूब गई…. इतनी जल्दी अकड़ जा तो नहीं सकती थी फिर भी बेटे की ख़ातिर दमयंती जी और कार्तिक से उसने माफ़ी माँग ली
दमयंती जी की हालत देख कार्तिक साफ सफ़ाई के लिए एक अच्छी सी काम वाली सहायिका को रखवा दिया….. जो समय पर आकर काम कर जाती थी…अब नताशा भी धीरे-धीरे बदलने की कोशिश कर रही थी….. दमयंती जी बहू से उतना ही बात करती जितनी ज़रूरत हो….. वो भी समझ गई थी अगर ज़्यादा सिर पर चढ़ाया तो वो फिर से तांडव करने लगेगी इसलिए थोड़ी अकड़ अब उन्हें भी रखनी होगी…. अब वो जो हुक्म मेरे आका वाली दमयंती बन कर नहीं रहेगी ।
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रश्मि प्रकाश
#इंसानियत