बड़ी बहन का फर्ज – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

देखो अम्मा मैं कहे देती हूँ… हमारा घर लुटाना बन्द कीजिए समझीं आप… अपनी बेटी को दे देकर सारा हमारा घर लुटाये जा रही है ।अरे मेरे पति की गाढ़ी मेहनत की कमाई है रात दिन मेहनत करते हैं,कोई मुफ्त फोकट का माल तो है नहीं हमारे पास ऐसी ही आप, ऐसी ही आपकी बेटी भिखारिन कहीं की, जब देखो तब मुंह उठाए चली आती है यहां। और आप जो भरभर कर उसको देकर भेजती

हो अरे कुछ हमारा भी ख्याल किया करो बहु कजरी ने आज सुना ही दिया । रेवती जी बोली- अरे बहु.. रवि मेरा भी बेटा है उसकी कमाई पर मेरा भी हक बनता है। मेरी बेटी तुम्हारी भी कुछ लगती है कजरी बहु, और फिर ऐसा भी क्या दे दिया मैंने अपनी बेटी को ? जो तुम इतना चिल्ला रही हो । कितने प्यार से मिलने चली आती है वो बेचारी। अरे मुझ विधवा के पास है ही क्या देने को ?  जो था,

तुम पर तुम्हारे बच्चों पर लगा दिया मैंने अच्छे स्कूलों में दाखिला करवा तो दिया। बेटी मिलने आती अब बेटी को खाली हाथ कौन भेजता मायके से ? कुछ तो परम्परा है अपने परिवार की ख्याल करना पड़ता है। थोड़ा पकड़ा दिया तो कम पड़ जायेगा क्या घर में ? कहकर रेवती जी अपने कमरे में जाकर खिड़की के बाहर निहारते पुराने दिनों को याद करने लगीं। 

एक समय था कितना भरा पूरा परिवार था उसका सास ससुर देवर जेठ जेठानी ननद बाल बच्चे  सास ससुर खत्म हुए सभी ने लड़ झगड़ अपना अपना परिवार अलग कर लिया वो भी पति संग अलग रहने लगी उनको घुटने में दर्द की समस्या रहती पति राधे मोहन का अच्छा खासा व्यवसाय तो खाने पीने

ओढ़ने पहनने दवा ईलाज की कोई कमी नहीं रही एक बेटी जो बड़ी संध्या फिर बेटा रवि दोनों की शादी कर दी बेटी इसी शहर में ज्यादा अमीर परिवार तो नहीं मगर निर्धन भी नहीं दामाद का छोटा सा व्यवसाय रेवती जी की परिस्थितियां उस समय अच्छी थी तो बेटी को विवाह में चार चूड़ियां कान की झूमकियां गले की चैन देकर विदा किया ‌था । खुश हैं आज अपने घर परिवार के साथ 

बेटे रवि की पत्नी बहु कजरी को भी काफी दिया उसने, ‌बेटा रवि शादी के बाद पत्नी की ज्यादा सुनता उसी के दबाव में रहता, उसके कहे पर ही चलता कजरी अपने मायके भाई बहनों की मदद में ज्यादा ध्यान देती अपने गहने भी मायके पहुंचा दिए तीज त्यौहार पर रेवती जी कहती भी बहु गहने पहन सज धज कर रहा करो यही हमारे घर की रीत है मगर कजरी रेवती जी की नहीं सूनती एक कान से सुन दूसरे से निकाल देती । और सब रूपए पैसे गहने मायके बहन भाईयों पर लुटाती रहती।

इसी बीच व्यवसाय के सिलसिले में बाहर जाते राधे मोहन जी  दुर्धटना ग्रस्त हो जाते हैं घर का जमा पैसा सभी उसमें लग जाता है मगर फिर भी वो बच नहीं पाते। अब व्यवसाय तो बेटा रवि संभाल लेता है और घर की बागडोर कजरी के हाथों में आ जाती है। वो रेवती जी पर हुक्म बाजी अपनी मनमानी करने लगती है। रेवती जी बेटी संध्या मां के दर्द को अच्छे से समझती इसलिए उनको अकेला पन

महसूस न हो अक्सर उनसे मिलने आती रहती। जब वो माँ से मिलकर वापस जाती तो माँ रेवती जी कुछ न कुछ जैसे चावल दाल अचार चटनी मुरब्बा जो घर में होता देकर ही विदा करती जो बहु कजरी को बहुत अखरता वो कभी नहीं चाहती ननद संध्या यहां आकर रेवती जी की हमदर्द बने वो समय-समय पर पति रवि को उल्टा सीधा भड़काती और संध्या के प्रति नफ़रत पैदा करने में सफल हो जाती है।

 रवि भी उसके सिखाने में आकर अपनी माँ को उल्टा सीधा बोलता कहता दीदी (संध्या) को यहां न बुलाए और घर का सामान न दिया करें ।

एक दिन की बात जब संध्या मां से मिलने आती है आज उसकी माँ की तबीयत खराब तब उन्होंने उसे बुलाया था। संध्या किचन में माँ के लिए मसाला चाय बनाने जाती है ताकि उससे उनके दर्द में आराम आ जाये । तभी कजरी और रवि रेवती जी के कमरे में आकर कहते हैं देखो दीदी आई है मगर ध्यान रहे कोई घर का सामान उनको मत देना जैसे आई वैसे ही वापस भेज देना वरना हम तुमको भी घर से निकाल देंगे। रेवती जी उनको बहुत समझाने की कोशिश करती हैं मगर वो उल्टा सीधा बककर चले जाते हैं। 

संध्या सब सुन लेती है उसको अपने छोटे भाई की बातों से बहुत दुख पहुंचता है वो मन में बड़बड़ाती है वो तो हमेशा अपने भाई को कितना प्यार करती रही है उसकी पढ़ाई लिखाई स्कूल के लिए उसने कितने त्याग किए और भाई माँ के बिना रह लेता मगर उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकता था।आज शादी क्या हो गई ?  बिल्कुल ही बदल गया उसको घर आने से मना कर रहा है। अरे वो ही माँ

का सही से ध्यान रख ले तो वो क्यों आयेगी बार बार ? उसका दिल रो उठता है वो कहती तो कुछ नहीं मगर चूपचाप माँ को चाय देकर उनको समझाती हैं आज उसे घर जल्दी जाना है बच्चों को अकेला छोड़कर आई है पति व्यवसाय के सिलसिले में दूसरे शहर गये है। वो मां से कहती हैं- “माँ आपको

ज्यादा जरूरत हो तो आप मुझे फोन कर देना मैं अपने पति को भेजकर आपको वही अपने घर बुला लुंगी कहने को तो उसने कह दिया मगर अच्छे से जानती माँ रहने नहीं आने वाली उसके घर कभी भी,परिवार की परम्परा “ बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए” को मानती आ रही है माँ तभी तो बार बार उसको ही मिलने आना पड़ता है। 

संध्या भाई को कहती हैं वो अपने घर जा रही मां का ध्यान रखना और अपने घर वापस आ जाती है। रेवती जी बेबस नजरों से बेटी को जाते देखती रहती है। संध्या सोचती है। अब वो जाती है तो माँ कुछ न कुछ पकड़ा ही देती है भाभी, भाई को बुरा लगता है ठीक है वो नहीं जायेगी । बस कभी कभी मां से फोन में ही दुख सुख की बातें कर लिया करती । इस बात को लम्बा समय बीत जाता है। 

एक दिन माँ का फोन आता है संध्या तेरा भाई बहुत बीमार है उसके फेफड़ों में पानी भर गया है भयंकर संक्रमण हो गया है डाक्टर इलाज के लिए बहुत पैसा मांग रहा काम न कर सकने की वजह से तेरे भाई का व्यवसाय ठप्प पड़ गया उसके रहते बच्चों के स्कूल की फीस भी नहीं भर सके वो घर पर ही हैं आजकल । स्कूल वाले नाम काटने की धमकी दे रहे। तेरी भाभी ने अपने सभी गहने जेवर

मायके रख दिए थे अब वो देने से इन्कार कर रहे । घर के हालात बिगड़ते जा रहे बिल्कुल अच्छे नहीं हैं। संध्या माँ की सभी बात सुनकर कहती हैं आप चिंता न करें, सोचते हैं क्या करना है ? दूसरे दिन संध्या मां के घर आती है माँ मन्दिर पूजा के लिए गई रहती है भाभी कजरी दरवाजे पर किसी कबाड़ी से बहसबाजी कर रही उसको देखकर बुरा सा मुंह बनाती कहती है लो आ गई मुसीबत पहले ही घर में कम मुसीबत हैं जो बढ़ाने ये महारानी भी चली आई। संध्या सीधे भाई के कमरे में पहुंच जाती है। 

भाई रवि अपनी बीमारी की वजह से काफी कमजोर हो गया होता है। बिस्तर पर पडा ऊपर छत को निहार रहा होता है। संध्या जाकर उसके सर पर हाथ फेरती है वो संध्या को देखकर कहता है दीदी कैसे आना हुआ ? संध्या कहती हैं बीमार है तो मुझे बताने की जरूरत नहीं समझी तुने, तुम क्या सोचते हो मुझे कुछ पता नहीं चलेगा । अरे भाई तुझे पैसों की जरूरत थी एक बार अपनी बड़ी बहन

को कहा तो होता मै तो तेरे लिए अपनी जान भी कुर्बान कर सकती हूँ । तुम कैसे भूल सकते हो ?  माँ से ज्यादा तुम मेरे साथ रहे हो मैंने तुमको बच्चे की तरह पाला अपनी गोद में खिलाया है। यहां तक की मां की अस्वस्थता के रहते तुम्हारी पढ़ाई जारी रहे मैनै स्कूल भी जाना छोड़ दिया था। अपनी गोद में खिलाया नहलाया धुलाया भूल गये तुम एक पल भी मेरे बिना नहीं रह सकते थे। पढ़ाई-लिखाई न छोड़ती तो आज मैं भी पढ़ी लिखी होती आराम से नौकरी कर लेती। 

कहकर संध्या ने रूमाल में बंधीं सोने की चूड़ियां निकल भाई के हाथ में रख दीं बोली –

 भाई ये लो इनको बेचकर अपना अच्छा सा इलाज करवा लो और बच्चों की फीस भरकर दुबारा स्कूल भेजो ताकि वो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें स्कूल जा सकें 

 उनको मेरी तरह अनपढ़ नहीं रखना कल वो ही तुम्हारा सहारा बनेंगे। 

और हां, पैसे कम पड़े तो बिल्कुल भी चिन्ता मत करना भाई मेरे पास अभी झुमकियां और गले की चैन भी है। रवि अपनी बड़ी बहन को एकटक देखता रह जाता है। दरवाजे के बाहर खड़ी सब सुन रही भाभी कजरी की आँखें आँसूओं से भीग जाती है। आज मुसीबत कठिन परिस्थितियों में उसके अपने 

सम्पन्न भाई बहनों ने मदद नहीं की जिनके लिए वो इतना खर्च करती रही और वो ननद जिसको वो सारी उम्र दुत्कारती रही नफरत करती रही। वो खुद मजबूर गरीब होते हुए भी मदद के लिए आगे आकर उसके सुहाग को बचाने चली आई वो शर्म से पानी-पानी हो जाती है।

 रवि आंखों में आँसू भर बहन से क्षमा मांगना चाहता है मगर रूध गले की वजह से उसके मुंह से शब्द ही नहीं निकलते बस निकलता है दीदीऽऽ और आगे जवान लड़खड़ाने लगती है । संध्या भाई से कहती हैं भाई एक बड़ी बहन अपना फर्ज कैसे भूल सकती है भला ?  भाई बहन का रिश्ता तो एक

अटूट बंधन है । जिसे कोई भी कैसी भी परिस्थितियां तोड़ नहीं सकती । मैं सदा ही अपने कर्तव्य फर्ज को निभाउंगी।बस मेरे भाई… मेरी ऊपर वाले से दुआ है मेरे भाई को जल्दी से अच्छा स्वस्थ कर दे । वो पहले की तरह स्वस्थ हो अपना व्यवसाय संभाल ले।

हाँ, एक बात याद रखना भाई माँ को इन चूड़ियों के विषय में कुछ मत बताना। मै मां को अच्छे से जानती हूँ । वो माँ का दिल जो देना जानता है लेना नहीं, लेना वो कभी स्वीकार नहीं करेंगी भीतर ही भीतर घुटने लगेंगी खामख्वाह परेशान हो जायेंगी। यह कहकर संध्या वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की भाई रवि और भाभी कजरी उसके पैरों में पड़ जाते हैं अपने बुरे व्यवहार की क्षमा मांगने लगते हैं ।

उनको गिड़गिड़ाने देख संध्या सहृदय बड़े ही स्नेह से उनको उठने को कह उन दोनों के सर पर हाथ रखकर दीर्घायु और खुश रहने का आशीर्वाद देती है। कहती हैं अब चलती हूं… माँ से मैं फिर कभी मिल लुंगी घुटने में दर्द की वजह से वो धीरे धीरे चलकर ही घर पहुंचेंगी, घर पर उसके बच्चे स्कूल से लौटने वाले होंगे‌ उनका भी ख्याल करना है। कहकर दरवाजे से निकल बाहर आ जाती है । रवि और कजरी बहन संध्या को जाते हुए, पश्चाताप के आँसू आँखों में लिए भींगी आँखों से अपलक दूर तक देखते रहते हैं।

 लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

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