Moral Stories in Hindi
हां बड़े संभ्रांत घर की बेटी ही तो थी वो…जिसकी आज ये हालत अपनी ही वजह से हो गई है। ये सोच सोच कर आज हर्षिता अपने आप को कोस रही थी कि कैसी काली रात थी वो जो उसने कुछ न सोचा ना समझा और ऐसा गलत कदम उठा लिया , परिवार की इज्जत, नाम सब कुछ मिट्टी में मिला दिया। रात के अंधेरे में वो घर बार छोड़ कर अपने पापा के कुछ रुपए लेकर घर से भाग आई ।
उसका पूरे बदन का रोम रोम दर्द के मारे चिल्ला रहा था ,उसके घावो पर मलहम लगाने वाला कोई न था… शायद इन घावो पर तो मलहम लग भी जाए पर दिल पर जो बेवफाई के घाव बने थे.. उनके लिए तो शायद कोई मलहम बना ही नहीं था। वो हिम्मत कर जैसे तैसे अंधेरे कमरे से बाहर की ओर आती है। वह हर कदम धीरे-धीरे बढ़ा रही है उसे डर है की कहीं नशे में बेसुध पड़ा शाहीन जाग न जाए।
वह धीरे से दरवाजा खोलती है और दबे कदमों से बाहर आ जाती है, पीछे मुड़कर देखती है कि किसी ने उसे देखा तो नहीं, वह धीरे-धीरे बाहर आकर, सड़क पर आकर एक साथ बदहवास भागने लगती है, ना जाने कौन सी शक्ति उसमें समा गई कि इस समय जो उसे ना कोई दर्द है ना पीर है। बस उस सारे से बाहर भाग जाना चाहती है। रास्ते में आते-जाते वाहनों की लाइटें उसकी आंखें चुंधिया रही है पर वह पूरा दम लगाकर उस काली रात को याद कर बस भागे जा रही है, भागे ही जा रही है। तभी एक जोरदार गाड़ी की आवाज के साथ उसके साथ कोई चीज टकराती है और वह बेहोश होकर वह वहीं गिर जाती है।
होश में आने पर वह देखती है कि उसके हाथों पैरों पर कुछ चोटें आई हैं और वह एक महिला पुलिस थाने में है। महिला पुलिस इंस्पेक्टर के पूछने पर कि वह किसकी बेटी है क्या उसके पिता कोई रेहड़ी वाले हैं या कोई मजदूर है ..
क्योंकि उसकी हालत को देखकर इंस्पेक्टर शोभा को बिल्कुल विश्वास नहीं है कि वह किसी बड़े घर की बेटी होगी । इतना पूछने पर हर्षिता फूट-फूट कर रोने लगती है । लगातार रोते-रोते रोते वह इंस्पेक्टर शोभा के कदमों में गिर पड़ती है और कहती है इंस्पेक्टर मैम आप मुझे मेरे घर भेज दीजिए ,इंस्पेक्टर शोभा सबसे पहले उसे एक गिलास पानी पिलातीं है और उसका हाथ पकड़ कर कहती है पहले तुम अपने आप को संयमित करके शांत हो जाओ और फिर धीरे-धीरे मुझे बताना कि तुम्हारे साथ क्या हुआ।
कुछ पल रुककर वो धीरे-धीरे सब कुछ बताना शुरू करती है कि वो देहरादून में रहने वाली एक अच्छे बड़े रईस दंपति की बेटी है उसके पिता का नाम धनंजय है और उसकी मां रेनू है। उसके पिता प्रॉपर्टी डीलर है और न जाने उनके पास कितनी जमीन जायदाद है ,और मां एक गृहणी है लेकिन वह भी अक्सर पापा की होने वाली पार्टी और दावतनामों में बिजी रहती हैं । एक उसका छोटा 12 साल का भाई है। उसके घर में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं है। उसकी एक दादी थी जो अभी 4 साल पहले गुजर गई ।दादी की मृत्यु के समय उसकी उम्र 16 वर्ष थी। जब तक दादी थी वह दादी के साथ अपनी सारी बातें शेयर करती। लेकिन दादी के जाने के बाद वह अकेला महसूस करने लगी और धीरे-धीरे वो अपनी फ्रेंड्स के साथ घूमने फिरने जाने लगी। मां कहती कि तुम एक बड़े घर की बेटी हो, पैसों की फिक्र मत करना, लेकिन घर की इज्जत का ध्यान रखना और खुश रहना लेकिन हमेशा समय से घर लौट आना।
एक दिन उसका अपने कॉलेज की फ्रेंड्स के साथ एक छोटा सा ट्रिप बनता है। वह उस ट्रिप में घूमने फिरने में अपने दोस्तों के साथ बहुत खुश है। तभी एक मोमोज और चाऊमीन के ठेले पर वो सभी लड़कियां रूकती है। उस ठेले को लगाने वाले लड़के का नाम शाहीन है है जो दिखने में बहुत स्मार्ट और अंग्रेजी भी काफी अच्छी बोल रहा था। देखने में लगता ही नहीं था कि वह मोमोस, चाउमिन का छोटा सा ठेला लगाता होगा।
पूछने पर उसने हर्षिता को बताया कि मैडम नौकरियां हमारे देश में है ही कहां और यह उसका छोटा सा स्टार्टअप जरूर है पर एक दिन वह अपनी मेहनत से इसी काम से अपनी पहचान बनाएगा। उसकी बातें उसे इंप्रेस करने लगतीं हैं, धीरे-धीरे दोनों में बातचीत होने लगती है, वो उसे दुनिया भर की कहानी सुनाता और हर्षिता को भी उसकी कहानियों में अपनापन सा लगता ।
धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं, प्रेम का एहसास होने लगा। अक्सर शाहीन मोमोज देते समय या किसी भी बहाने हर्षिता की उंगलियों पर हाथ फेरता तो उसकी किशोर उम्र उस छूअन को महसूस करने लगती और उसको ही प्रेम समझ बैठी। वो उम्र के जिस दौर से गुजर रही थी उसमे उसे पता भी नहीं था कि परिपक्वता क्या होती है, ऊपर से घर में उसे माता-पिता का समय भी नही मिलता था।
प्रेम क्या है , असली प्रेम क्या है वह नहीं जानती थी ।उसको तो बस उसका साथ उसकी बातें अच्छी लगती ।आधी रात तक वह उससे फोन पर बातें करती। पर अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहने वाले माता-पिता को ये एहसास ही नहीं था कि उनकी बेटी किस दौर से गुजर रही है। उनके हिसाब से तो उन्होंने अपने बच्चों को वो सभी सुविधाएं दे रखी थी जो जरुरी है।
एक दिन किसी जानने वाले ने उसके पापा से उन दोनों की शिकायत कर दी ।उस दिन उसके घर में कोहराम मच गया। उसके पिता उसकी मां पर चिल्लाने लगे कि मैं किस लिए कमाता हूं क्या यह दिन देखने के लिए, इस पर मां कहती कि मैं भी क्या-क्या देखूं आपके आने वाले कस्टमर को देखूं उनकी मेहमाननवाजी देखूं या आपकी पार्टियों को देखूं और क्या अब ये बच्चे इतने छोटे रह गए हैं कि मैं दिन भर इन पर नजर रखूं।
पूरी बातचीत का कोई भी नतीजा ना निकला, सब बेबुनियाद रहा। पर मैंने भी मन ही मन तय कर लिया की शादी करूंगी तो सिर्फ शाहीन से। कुछ दिन बाद मैंने घर में एक दिन ऐलान कर दिया कि शादी तो मैं शाहीन से ही करुंगी।
उस दिन मां पापा ने मुझे काफी समझाया बुझाया, दुनिया की अच्छी बुरी बातें भी समझाईं क्यूंकि कोई भी मां-बाप अपने बच्चों के दुश्मन नहीं होते पर सही समय पर समय देना यह भी बच्चों के लिए बहुत बड़ी जरूरत होती है। मैंने उस समय उनसे कुछ ना कहा और एक रात शाहीन के साथ प्लान कर घर से भाग गई।
जिस रात को मैं सुहानी समझ रही थी असल में तो वही मेरे जीवन की सबसे काली रात थी। मैं घर से पापा के काफी रुपए लेकर आ गई, कि शहर जाकर उसको उसके स्टार्टअप में मदद करूंगी और हम दोनों एक खुशहाल जिंदगी जियेंगें।
हम ट्रेन से सीधे मुंबई के लिए रवाना हो गए । दो दिन तो ऐसे होटल में स्वप्नस्वप्नलोक से गुजर गए कि मुझे लगा कि मेरा डिसीजन बिल्कुल सही था। पर जब मैंने उस पर विश्वास करके उसको किराए के घर के लिए पैसे दिए तो वह एक बेहद गंदी सी, शांत सी, वीरान सी जगह मुझे ले गया वहां जाकर एक अंदर गली में जहां सिर्फ एक कमरा था वहां छोड़ दिया।
तब मैंने उससे कहा यहां तो कुछ अच्छा नहीं लगता शाहीन, कहीं और चलो तो उसने कहा अच्छी जगह का इंतजाम करने ही जा रहा हूं । तुम यहीं रुकना अंदर तुम्हारे लिए सारी खाने पीने की व्यवस्था कर रखी है और मैं बाहर से ताला लगा कर जा रहा हूं , बस शाम होने तक आ जाऊंगा , तुम आराम करना।
मुझे अभी भी अपने प्यार पर बहुत भरोसा था, उसके जाने के बाद मैंने अपने पर्स में मोबाइल ढूंढा कि चलो एक बार घर पर फोन करके अपने माता-पिता को बता दूं कि मैं जहां हूं बहुत खुश हूं लेकिन मेरे पर्स में ना तो मोबाइल था ना कोई रुपया था ना पैसा था ।
मैं कैद में पड़ी बुलबुल जैसे झटपटाने लगी, मैंने बाहर जोर जोर से काफी आवाज दीं , पर उस वीरान गली में मेरी आवाज सुनने वाला कोई न था। मैं रोते-रोते वहीं गिर गई। अंदर की तरफ उस कमरे में कुंडी, संकल भी नहीं थी , अचानक खट की आवाज से दरवाजा खुला और शाहीन के साथ दो लड़के और थे जो मुझे घूर रहे थे।
बस अब नहीं बता पाऊंगी मैम ….वो रात मेरी जिंदगी की सबसे काली रात थी जो मेरी जिंदगी जहन्नुम कर गई। अब मुझे मां पापा की सिखाई सब बातें याद आ रही थी। आज जैसे ना तैसे छठे दिन किसी तरह दरवाजा खुला मिला और बस फिर मैं किसी तरह बाहर आ गई और भाग ही रही थी कि किसी चीज से टकराई फिर मुझे कुछ याद नहीं ….
अब इंस्पेक्टर शोभा ने उसका हाथ पकड़ लिया उसे गले से लगा लिया और आश्वासन दिया कि अब तुम जहां हो सुरक्षित हो और वो उसे सुरक्षित ही उसके माता-पिता तक पहुंचाएगी ।उन्होंने हर्षिता से उसका देहरादून का पता लिया और वहां पुलिस चौकी में फोन करने पर उन्हें पता चला कि वो जो कुछ भी कह रही है सब कुछ सच है। अब जल्द ही उसके माता-पिता उसे लेने आ चुके थे।
पर इंस्पेक्टर शोभा अपने मन में सोच रही थी कि आखिर कब तक हमारी बेटियां इस तरह गुमराह होती रहेगी और काली स्याह रातों का सामना करती रहेगी।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
#काली रात