बड़े घर की बेटी – रश्मि प्रकाश

“बिटिया क्या तुम सच में अपने ससुराल जा रही हो…. ?” शकु ताई ने नीति से पूछा 

“ हाँ ताई…आप अपना ख़्याल रखना और ये चिट्ठी… मम्मा जब घर आए उन्हें दे देना ।” कहते हुए नीति अपना सामान पैक कर कार में बैठ घर से निकल गई 

एक ही शहर में मायका ससुराल है पर आने जाने में दो घंटे लगने वाले थे जो नीति को मीलों की दूरी और सदियों के बिछोह का एहसास करवा रहे थे…वो शीशे से बाहर देखने लगी और अपनी बीती ज़िन्दगी में खो गई

“ मम्मा मुझे रितेश से प्यार है और उससे ही शादी करनी है।” धनाढ्य राजेश्वर जी और सुनंदा जी की इकलौती सुपुत्री ने जब ये कहा तो घर में भूचाल आ गया था 

“ तुम्हारा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया है… जानती भी हो तुम क्या बोल रही हो…अरे कहाँ हम कहाँ वो….. माना वो भी उस कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था जहाँ तुम कर रही थी पर रहन सहन में ज़मीन आसमान का अंतर है…. तुम उसका ख़याल अपने दिमाग़ से निकाल दो…हमने उसे बस तुम्हारा दोस्त समझा इसलिए कभी कुछ कहा नहीं पर शादी कभी नहीं…..आई बात समझ में..!” सुनंदा जी ने तिलमिलातेहुए कहा 

“ पापा आप समझाओ मम्मा को …. मुझे अपने पसंद के लड़के से ही शादी करनी है….. मुझे कैसा लड़का चाहिए वो मुझे पता है।” पैरपटकते हुए नीति वहाँ से जा अपना कमरा लॉक कर ली

“ तुम भी ना सुनंदा….. उसकी बात सुन लेती फिर हम इत्मिनान से बात करते अब तुम्हारी लाडली कितने दिन मुँह फुलाकर रखेंगी तुमकोभी पता..।” राजेश्वर जी सुनंदा जी से बोले

“ आप तो चुप ही करिए…अरे एक ही कॉलेज में थे … एक ही कम्पनी में जॉब वो तो दोस्ती तक बात ठीक थी पर ये शादी…हाँ नीति नेबताया है उसका किसी अच्छी कम्पनी में अच्छे पैकेज पर प्लेसमेंट हुआ है फिर भी हमारे और उनके बीच ज़मीन आसमान का अंतर है… मैं किसी भी क़ीमत पर नीति की बात नहीं मानने वाली ना आप उसकी एक सुनेंगे ।” सुनंदा जी क्रोधित हो बोली

“ मुझे खुद नहीं पसंद कि हम अपनी बेटी ऐसे किसी घर में ब्याहें…जहाँ उसे हमारी तरह सुविधाएँ मिले ही नहीं…एक से एक रिश्ते आ रहेहैं मैं जल्दी ही किसी निर्णय पर पहुँचने की कोशिश करता हूँ ।“ राजेश्वर जी ने कहा 

पर नीति पर तो रितेश से शादी का भूत सवार था और उसकी ज़िद्द के आगे सुनंदा जी और राजेश्वर जी की एक ना चली… मन मसोसकर बेटी की ख़ुशी देख नीति की शादी रितेश से कर दी… रितेश के परिवार वालों ने बड़े अमीर घर की बेटी को सिर माथे पर रखा परनीति इन सब से भिन्न निकली… वो अपनी सास सुमिता जी के साथ मिलकर रसोई भी देखती और ऑफिस जाने से पहले हर संभवउनकी मदद करती… सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था… नीति भी इस परिवार में रच बस गई थी पर उसकी सास सुमिता जी को हरवक्त यही डर सताता रहता था कि बड़े घर की बेटी है कभी कोई काम नहीं की है ये सोच कर वो उसे बस बोलती ,“अरे मैं कर लूँगी बेटातुम्हें इन सब की आदत कहाँ ।”

” मम्मी जी मुझे तो यही सब को सीखना है।” नीति कह कर सुमिता जी के गले लग जाती

एक दिन नीति की तबियत ख़राब हो गई…जैसे ही ये बात सुनंदा जी को पता चली वो बिना सूचना दिए बेटी से मिलने आ गई.. रितेशऑफिस गया हुआ था और सुमिता जी रसोई में खाना बना रही थी… ससुर वीरेन जी बाहर अख़बार में तल्लीन थे…नीति अपने कमरे मेंआराम कर रही थी …सुमिता जी सुनंदा जी को नीति के पास बिठा कर जल्दी से उन के लिए चाय नाश्ते का इंतज़ाम करने चली गई…

तभी उन्हें सुनंदा जी की आवाज़ सुनाई दी,“ क्या हाल बना रखा है अपना…देखो कैसे मुरझा गई हो… यहाँ तो एक भी नौकर चाकर नहीं है.. तुम्हारी सास ही सारा काम करती है…पक्का तुम भी उनके साथ लगी रहती होगी…अब मैं तुम्हें यहाँ एक मिनट भी नहीं रहने दूँगी… घर चलो मेरे साथ वहाँ अच्छी तरह तुम्हारा इलाज करवाएँगे ।”

नीति साथ जाने के लिए लाख मना करती रही .. सुमिता जी और वीरेन जी ने भी बहुत मिन्नतें की …पर सुनंदा जी उसे अपने साथ लेगई।

इधर रितेश जब घर आया उसने नीति को फ़ोन किया उस वक्त वो सो रही थी ….और फोन सुनंदा जी ने उठाया..

“ देखो रितेश.. मेरी बेटी को हमने बहुत नाज़ों से पाला है..उसने तुमसे शादी की ज़िद्द पकड़ ली इसलिए शादी करवा दिया पर मुझे नहींलगता तुम दोनों में कोई ताल-मेल है… वो अपनी मर्ज़ी से जॉब कर रही .. नहीं तो हमें उससे नौकरी करवाने की भी ज़रूरत नहीं है.. परवो तुम्हारे घर रहेगी तो बिना नौकरी किए उसका गुजारा बस तुम्हारी सेलरी से तो होने से रहा… बेहतर है तुम दोनों अलग हो जाओ… बड़ेघर की बेटी तुम्हारे जैसे लोगों के बीच फंस कर रह जाएगी… नौकरी और घर के कामों में ही..  मेरी बेटी ये सब करें वो मुझे नहीं पसंद।” सुनंदा जी ने कहा 

“ पर मम्मी जी नीति को तो हम कुछ करने नहीं देते… वो यहाँ भी आराम से ही…।” रितेश कुछ और बोलता सुनंदा जी ने फ़ोन काटदिया 

अब वो नीति से तरह तरह की बातें कह कह कर रितेश के खिलाफ भड़काने में लगी रहती … नीति को लगने लगा शायद मम्मी सही कहरही है फिर कभी रितेश के साथ प्यार भरे पल याद आ जाते ….वो दस दिन में ही माँ की बातों में आ चुकी थी…उसे भी लगने लगा थायहाँ कितने मज़े है वहाँ तो काम करना पड़ता… यहाँ हर चीज़ हाथों में मिल जाता ।

ये सब उनके घर बहुत समय से काम करने वाली शकु ताई देख सुन रही थी…राजेश्वर जी और सुनंदा जी दो दिन के लिए बाहर गए हुएथे तो शकु ताई नीति से बातचीत करने लगी वो उसके ससुराल के बाबत पूछ रही थी.,“ बिटिया तुम्हारे ससुराल में कौन कौन है… वोलोग तुम्हें प्यार मान सम्मान और समय नहीं देते… बहुत काम करना पड़ता है?”और भी ना जाने क्या क्या 

“ ऐसा नहीं है शकु ताई.. वो लोग बहुत अच्छे हैं… सासु माँ तो मॉम से भी ज़्यादा मेरा ध्यान रखती मेरी पसंद का खाना बना कर प्यार सेखिलाती कई बार ऑफिस को देर होने लगती तो ज़बरदस्ती मुझे बच्चों की तरह अपने हाथों से खिलाने लगती… ससुर जी भी बहुतदुलार देते अपनी बेटी से कम नहीं मानते…रितेश तो मुझे बहुत प्यार करते हैं…एक छोटी शादीशुदा ननद है वो तो मेरी दोस्त बन गई है।” नीति ने कहा 

“ फिर बिटिया ये अलग होने की बात… कुछ समझ नहीं आ रहा है?” शकु ताई ने कहा 

“ किसने कहा मैं अलग हो रही…?” नीति आश्चर्य से पूछी 

“ वो साहब मेमसाहेब..।” शकु ताई कहते कहते चुप हो गई 

नीति को अब समझ आ गया कि ये शादी बस मम्मी पापा ने मेरी ख़ुशी की ख़ातिर कर दिया और अब यहाँ लाकर मुझे … नहीं नहीं मैंउनको नहीं छोड़ सकती वो उठी और एक काग़ज़ पर कुछ लिखने लगी … और वो काग़ज़ शकु ताई को देकर चली गई ।

“मैडम आपका घर आ गया ।” ड्राइवर ने जैसे ही कहा नीति के सोच को झटका लगा… आपका घर ….हाँ यही तो है मेरा घर जहाँ परमुझे वो सब मिला जो मायके में नहीं मिल रहा था 

सुमिता जी नीति को आया देख ख़ुशी से गले लगाते हुए बोली,“ आ गई बेटा हम तो बहुत घबरा रहे थे वो समधन जी ने बात करने से मनाजो कर दिया था ।”

“ मम्मी जी मुझे माफ कर दीजिए… मुझे मॉम के साथ जाना ही नहीं चाहिए था ।” कह नीति सुमिता जी के गले लग गई

उधर दो दिन बाद जब सुनंदा जी घर आई शकु ताई ने नीति की चिट्ठी उन्हें पकड़ा दिया 

“ मॉम डैड आप दोनों ने मुझे सबकुछ बिन माँगे दे दिया… पर जो मुझे चाहिए था वो था अपनों का प्यार और साथ जो मुझे रितेश केपरिवार में मिला…हाँ उनके पास आप लोगों के जितना धन दौलत नहीं है ..जिसका घमंड मॉम आपको हमेशा रहा है और उसी के चलतेआप अपनी दोस्त के अमीर बिगड़ैल बेटे से मेरी शादी करवाना चाहती थी बस इसलिए कि वो पैसे वाले अमीर लोग है… तभी आप मुझेरितेश के खिलाफ भड़का रही थी…और आप कैसे सोच रही थी मैं रितेश को छोड़कर उस बिगड़ैल लड़के के घर कि अमीर बहू बनजाऊँगी… ये सब मुझे आपके उस बिगड़ैल लड़के ने ही ख़ुशी ख़ुशी में बता दिया जो खुद को आपकी प्रॉपर्टी का वारिस समझने लगाथा…मुझे या रितेश को आपके ये पैसे नहीं चाहिए….मुझे कभी आपके पैसे और रूतबे का घमंड नहीं रहा … मुझे हमेशा सादगी आकर्षितकरती रही और नतीजा आपके सामने है वो पैसे से अमीर नहीं है पर दिल रे अमीर है और इस बात का मुझे घमंड है…. आप लोग अगरकुछ देना ही चाहते हो तो अपना आशीर्वाद देना और हाँ मॉम मेरे घर बिना बताए मत आना अब आपकी बेटी उस घर की बहू है…. जबआना हो बताकर आना ताकि आपकी ख़ातिरदारी करने की तैयारी कर सकूँ ।“ आपकी बेटी नीति

सुनंदा जी और राजेश्वर जी बेटी की चिट्ठी पढ़ कर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे…..

“ हम सब कुछ देकर भी नीति को वो नहीं दे पाए जो उसे चाहिए था ….वो उसे उस परिवार से मिल रहा… पैसे से हम सब ख़रीद सकतेपर प्यार और समय नहीं… जो हम नीति को कभी दे ही नहीं सकें… अब हमारी बेटी जहाँ है उसे वही ख़ुशी से रहने देना ।“ राजेश्वर जीपत्नी को समझाते हुए बोले.. हताश तो वो भी थे पर अब कर ही क्या सकते थे।

दोस्तों आजकल के बच्चे खुद अपना जीवनसाथी चुनने लगे हैं कई बार उनके फ़ैसले भी गलत हो सकते हैं पर कभी कभी बच्चे भी सहीफ़ैसला कर सकते हैं पर कुछ माता-पिता अपने अहम में चूर बच्चों का भविष्य बिगाड़ने से भी नहीं चुकते….ज़रूरी नहीं हर बड़े घर कीबेटी नीति की जैसी हो कुछ मगरूर भी होती हैं…जो घमंड में चूर अपने से कमजोर को तवज्जो भी नहीं देती।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

स्वरचित 

#घमंड

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