“ नई ममी आ गई, नई ममी आ गई” चार साल की रूही खुशी में चिल्लाते हुए बोली।बाहर बाजा बजने की आवाज आ रही थी। कैलाशवती ने आरती की थाली तैयार कर रखी थी। दुल्हा , दुल्हन का पूरे रीति रिवाज से स्वागत किया गया।
जब सब हो गया तो कैलाशवती ने बेटी स्नेहा को कहा कि भाभी को उसके कमरे में छोड़ आओ, थोड़ा आराम कर लेगी। आरती सचमुच ही बहुत थक चुकी थी। पांच घंटे का लंबा सफर और उससे पहले भी तैयारी करने में कितने दिन निकल गए थे।
दुल्हा अभिनव भी उठ कर चला गया बाहर , जहां उसके दोस्त उसका इंतजार कर रहे थे। जब आरती और स्नेहा जाने लगी तो नन्ही रूही भी साथ हो ली। मैं भी ममी के साथ जाऊंगी, कितनी सुंदर है मेरी नई माँ, यह कह कर उसने आरती का हाथ पकड़ लिया।
सब औरतें यह नजारा देख कर खामोश सी हो गई। तभी कैलाश ने कहा, नहीं रूही बेबी, तुम यहीं रहो, देखो कितनी रौनक है, और फिर ममी को अभी कपड़े वगैरह बदलने है, तुम बाद में जाना।
ठीक है, बुआ तुम जाओ ममी के साथ, मैं बाद में आऊंगी, पर हां मुझे रात को ममी के साथ ही सोना है, फिर कोई मना मत करना, रूही ने मासूमियत से कहा तो सब के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान तैर गई।
रात हो चली थी, कुछ मेहमान चले गए थे, कुछ खा पीकर सोने चले गए, नन्ही रूही वही सोफे पर ही सो गई, बाद में कैलाशवती रोज की तरह उसे अपने कमरे में गोदी में उठाकर ले गई। सुबह जब रूही की नींद खुली तो अपने आप को दादी के बिस्तर पर देखकर बिसूरने लगी कि उसे तो नई ममी के पास सोना था।
कोई बात नहीं, आज सो जाना, ममी अब यहीं रहेगी, कैलाशवती ने कहा। ठीक है, पर उससे मिलने जा रही हूं, और रूही भाग कर सीढ़िया चढ़ने लगी ही थी कि उसकी बुआ ने उसे पकड़ते हुए कहा , नहीं, नहीं , अभी नहीं, अभी वो तैयार हो रही है। और तुम भी पहले तैयार हो जाओ, और तुम्हें तो स्कूल भी जाना है।
नहीं, नहीं मुझे स्कूल नहीं जाना, मुझे नहीं जाना और वो धरती पर लोटने ही लगी थी कि अभिनव आ गया और रूही को प्यार से गले लगाते हुए बोला, क्या हो गया मेरी गुड़िया को, अरे हां, आज तेरे स्कूल में पेटिंग मुकाबला है, हर शनिवार को होता है न, तो ठीक है मत जाओ।
नहीं नहीं , जाना है मुझे। मैनें बहुत अच्छी पेटिंग बना कर रखी है, और वो सब भूल कर तैयार होने चली गई और स्कूल भी चली गई।
इसी प्रकार कई दिन बीत गए। नया जोड़ा चार दिन हनीमून भी मना आया। अभिनव तो हनीमून के लिए नहीं जाना चाहता था लेकिन परिवार वालों ने जोर दिया। भले ही अभिनव की दूसरी लेकिन आरती की तो पहली शादी थी।अभिनव का अपना बेकरी का बहुत अच्छा काम था, शुरूआत तो दादा, पापा से हुई लेकिन अभिनव ने उसे आधुनिक रूप दिया था।
रूही के जन्म पर ही उसकी मां रेखा का देहांत हो गया था। डाक्टरों ने बहुत कोशिश की लेकिन रेखा बच न सकी। अभी शादी को दो साल ही हुए थे।अभिनव की तो दुनिया ही लुट गई।
कैलाशवती ने बहुत मुशकिल से रूही को पाला। कुछ समय बाद दूसरी शादी की बात चलनी ही थी, लेकिन अभिनव राजी न हुआ।
लेकिन कब तक। आरती रेखा की दूर के रिशते में बहन थी और बहुत ही गरीब घर से भी थी। चार बहनें थी। आरती तीसरे नं पर थी।उम्र भी हो चली थी। रिशते की बात रेखा की मां ने ही चलाई, उसे लगा कि गरीब घर की लड़की है, और रिशता भी है तो रूही की देखभाल अच्छे से हो जाएगी।अत्यंत सादगी से शादी हुई। सारा खर्च अभिनव की तरफ से हुआ।
आरती इतनी बुरी भी नहीं थी, लेकिन साल बाद ही जब उसने बेटी निशू को जन्म दिया तो उसने रूही का ध्यान तो क्या रखना था निशू की और भी ध्यान नहीं देती थी। दरअसल उसे लड़कियां पंसद ही नहीं थी। खुद चार बहनें, बहुत गरीबी देखी थी। उसकी इच्छा लड़के की थी। सोचा , भाई नहीं तो पुत्र सुख मिलेगा।
अभिनव को जब उसके मन की बात पता लगी तो उसने समझाया कि पहली बात तो बेटी, बेटा एक समान है। किस्मत में सुख लिखा है तो दोनों से ही मिलेगा। आजकल कोई फर्क नहीं बल्कि अक्सर बेटियां मां बाप का ज्यादा ध्यान रखती है। “ लेकिन वंश तो बेटो से ही चलता है”, आरती का कहना था। “ छोड़ो , ये पुरानी बातें”।
देखने में आता है कि सास ऐसी बातें करती है लेकिन यहां कैलाशवती तो कुछ कहती ही नहीं थी, न ही उसके पति, वो दोनों तो दोनों पोतियों को जी जान से प्यार करते।
समय निकलता गया, लेकिन आरती की सोच न बदली। दो बार फिर गर्भवती हुई लेकिन चोरी छुपे टैस्ट करवा कर बेटी होने का पता चलते ही छुटकारा पा लेती। भले ही कानून कितना सख्त है लेकिन पैसा सब करवा देता है। उसके पैंतरों के आगे तो अभिनव की भी एक न चलती।
आखिर आरती बेटे की मां बन ही गई। तब तक रूही और निशू काफी बड़ी हो चुकी थी। बेटे का नाम रखा लक्ष्य।दिन रात आरती बेटे के साथ ही रहती।
ज्यादा लाड प्यार ने उसकी आदतें बिगाड़ दी। मजाल थी कि कोई उसे डांट दे। निशू से दस साल छोटा था। रूही और निशू दोनों बहनों की बहुत बनती थी, और पढ़ाई में भी होशियार थी।
समय के साथ दोनों की अच्छे घरों में शादी हो गई।अभिनव के पिताजी भी इसी बीच चल बसे।कैलाशवती भी अब ज्यादा चल फिर नहीं पाती।
लक्ष्य ने मुशकिल से बारहवीं पास की। अभिनव ने सोचा, चलो अपना बिजनैस संभाल लेगा।लेकिन वो तो आवारा दोस्तों के जाल में फंस चुका था। दिन भर बाईक पर घूमता या गाड़ी लेकर निकल जाता। रात रात भर गायब रहता।
अभिनव तो बूढ़ा न होते हुए भी बेटे की हरकतों से लाचार हो गया था। रूही और निशू अक्सर आती और दादी , पापा के साथ साथ आरती को भी हौंसला देती। आरती को लगता कि बेटियों की बद्ददुआएं ही लगी है, जो सामने है उन्का ध्यान नहीं रखा और दो को तो दुनियां में आने ही नहीं दिया।
एक रात पुलिस का फोन आया कि लक्ष्य का एक्सीडैंट हो गया और वो हस्पताल में है। दोस्तों के साथ घूमने गया था, दोस्तों को तो हल्की चोटें आई लेकिन अभिनव को बहुत चोट लगी, जान तो बच गई लेकिन उसकी आंख में कांच धंस गया जिससे कि एक आंख नकारा हो गई।
सब ने दिन रात एक करके लक्ष्य की सेवा की। निशू और रूही में से एक बहन वहीं पर रही। दोनों दामाद भी बहुत अच्छे थे।लक्ष्य को भी कुछ अक्ल आ गई थी।
आरती अक्सर सोचती कि उसे बेटियों की बद्दुआ लगी है, लेकिन अभिनव हमेशा यही कहता कि दुआ, बद्दुआ का तो पता नहीं , ये तो उपर वाला ही जाने, लेकिन इन्सान को अपनी और से ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए कि किसी के मुंह से आह या बद्दुआ निकले।
दोस्तों कोई अपना बद्दुआ भले ही न दे लेकिन हम कोशिश तो कर सकते है कि ऐसा मौका न आए।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- बद्दुआ