बद्दुआ – कुमुद मोहन

“मां जी!पापा की बहुत तबियत खराब है भाई का फोन आया है एकबार मुझे देखना चाहते हैं !मै जाऊं?”डरते डरते नीता ने अपनी सास शीला जी को कहा!

“क्यूं? तू कोई सिविल सर्जन है क्या जो जाकर अपने बाप को ठीक कर देगी”शीला गुस्से से बड़बड़ाई ।

तेरे घरवालों का ये रोज रोज का नाटक क्या मैं समझती नहीं!सोचते हैं जाने हम उनकी लड़की से चक्की पिसवाते हैं या पत्थर तुड़वाते हैं!जरा सा जुकाम भी हो जाए तो फौरन बुलव्वा भेज दे हैं!हुंह!कोई जरूरत ना है कहीं जाने की?सारा काम पडा है कौन करेगा?आने जाने का खर्चा होगा वो अलग!पैसा क्या तेरे घरवाले देंगे?

मां के डर से नीता का पति समीर नीता के पक्ष में एक शब्द भी मुंह से न निकाल सका!

नीता ने समीर की बहुत मिन्नतें की,हाथ जोड़े तो जाने कैसे समीर को उसपर तरस आ गया वह हिम्मत करके मां को मनाकर नीता को मायके ले गया!

नीता को देखकर उसके मरणासन्न पिता के चेहरे पर फीकी सी हंसी की लहर दौड़ गई! 

नीता की आंखों में आंसू देखकर उन्होंने अपना कमज़ोर बेजान सा हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और नीता के सर पर हाथ धरते ही वे इस दुनिया से चल बसे!

ऐसा लगा जैसे उनके प्राण बेटी की एक झलक देखने को ही अटके हुए थे!

नीता का दर्द छलक कर आंखों से बह निकला!उसका जी चाहा मां जी को कोई ऐसी बद्दुआ दे जो वे याद रखें एक बीमार मरणासन्न बाप को देखने जाने के लिए बेटी को तरसाना कहां का इन्साफ है!वह घुट कर रह गई! 

दरअसल समीर जब आठ साल का था और उसकी बहन प्रिया छः साल की थी उनके पिता चल बसे थे!

शीला ने अकेले ही समीर और प्रिया की परवरिश की थी!शीला के तेज तर्रार मिजाज की वजह से ससुराल वालों से कभी बनी नहीं!ब्याह के बाद ही वह समीर के पिता को लेकर अलग हो गई! उसने पति को भी उसके घरवालों से दूर कर दिया!शीला के मायके में उनका एक भाई था!उसके साथ भी कभी तीज-त्यौहार पर लेन-देन को लेकर शीला ने उनसे भी रिश्ता तोड़ लिया!यही वजह थी कि समीर के पापा के जाने के बाद कोई भी उनके साथ खड़े होने को नहीं आया!

ये गनीमत थी कि शीला जी के पति ने अपने रहते एक छोटे से घर का इंतजाम कर लिया था!कम से कम सर पर छत तो थी!

पति की पेंशन और एक कमरा किराए पर देकर शीला जी ने बच्चों को पढ़ाया! 

बच्चों को रिश्तों की अहमियत क्या होती है पता ही नहीं था!रिश्तों के नाम पर दोनों बहन भाईयों ने मां को ही देखा था इसलिए उनकी सोच भी मां जैसी ही हो गई थी!वे भी एक दर्जे तक खुदगर्ज और लालची हो गए थे!

प्रिया का पढ़ाई में मन नहीं था इसलिए उसका ब्याह शीला जी जल्दी ही निपटा दिया!रमन एक सीधा सादा मेहनती लड़का था!

उसके आगे पीछे कोई नहीं था!शीला जी को तो जैसे मुँह मांगी मुराद मिल गई हो!बेटी को सास ननद का झंझट ही नहीं रहेगा!इससे बढ़कर और क्या हो सकता है!मेरी बेटी राज करेगी!

कुछ दिनों बाद जब समीर नौकरी करने लगा तो शीला जी ने नीता के साथ समीर का ब्याह करा दिया!नीता अपने मां-बाप की इकलौती बेटी थी !उससे छोटा एक भाई था!

नीता के पिता एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे!तनख़्वाह बहुत नहीं थी फिर भी ओवर टाइम कर के गुजारा करने लायक कमा लेते थे!

नीता देखने में बहुत सुन्दर थी!पढ़ाई लिखाई में होशियार भी!

नीता के पिता के पास बहुत ज्यादा पैसा न होने के कारण उन्होंने नीता का ब्याह सादगी से निपटा दिया!

बगैर दहेज के शीला जी दुखी तो बहुत थी पर बाद में उन्होंने सोचा गरीब घर की लड़की दब कर रहेगी !कभी सर उठाने की कोशिश नहीं करेगी!जैसा चाहेंगे वैसे रखेंगे!

नीता के तो संस्कार ही ऐसे थे कि वह किसी को पलट कर कभी जवाब ना देती!अपने पिता की माली हालत को देखते हुए शीला और समीर की ज्यादतियों को बर्दाश्त कर चुपचाप सह लेती!

शीला जी नीता के बिना दहेज के ब्याह की वजह से नीता के मां-बाप से नाराज ही रहती!न किसी को उसके मायके से आने देती ना ही नीता को मायके जाने देती!तीज-त्यौहार पर भी नीता मन मसोस कर रह जाती!उसे शीला जी से इतनी शिकायत नहीं थी जितनी समीर से!

समीर का रवैय्या नीता के साथ सिर्फ रात को ही ठीक रहता!वरना वह उसके लिए जरूरत का सामान भर थी!

ब्याह के साल भर बाद जब नीता प्रेग्नेंट हुई तो यह जानकर भी कि नीता उनके घर को वारिस दे रही है,उनके बेटे का अंश उसके अंदर पल रहा है वे उसके खाने-पीने का भी कोई खास ख्याल ना रखतीं!समीर को तो खैर अपने सुख और आराम के आगे कोई मतलब ही नहीं होता!

नीता का मन कभी कभी बहुत कसमसाता यह सोचकर कि जिसके लिए अपना घर,मां-बाप भाई छोड़कर आई जब उसे ही परवाह नहीं तो दूसरों से कैसी उम्मीद! 

कभी कभी नीता का मन होता कहीं भाग जाए या खुद को खत्म कर ले पर उसके अपने दुख के आगे अंदर की मां की ममता जीत जाती!

वह सोचती इसमें उस बच्चे का क्या दोष जो अभी दुनिया में आया भी नहीं!

कुदरत का खेल देखिये!उधर शीला जी को पता चला वे नानी बनने वाली हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा!उनके तो पैर जैसे जमीन पर पड़ नही रहे थे!

उन्होंने फौरन फरमान जारी किया कि वह उनके पास चली आऐ!वे समीर को भेज प्रिया को बुलाने को तैयार हो गई! 

पर रमन ने कहा वह खुद प्रिया को लेकर आएगा!

वे फोन पर दिनरात प्रिया और रमन को हिदायतें देती कि फल खिलाओ,जूस पिलाओ,मेवे खिलाओ,दूध पिलाओ!आराम कराओ,एक कामवाली और लगाओ वगैरह वगैरह! 

नीता उनकी बातें सुनकर अंदर ही अंदर दुखी हो जाती यह देखकर कि बेटी और बहू के लिए शीला जी की सोच में 36का आंकड़ा है!

नीता की मां ने चाहा कि वे कुछ दिनों के लिए नीता को अपने पास बुला लें!तो यह सोचकर कि घर का काम कौन करेगा!शीला जी ने नीता की मां को यह कहकर मना कर दिया कि समीर नीता को ऐसी हालत में अपने साथ रखना चाहता है!डिलीवरी के लिए भेज देंगे तब जी भरकर उसे खिला पिला लें!

नीता ने भी मां से कुछ नहीं बताया यह सोचकर कि उनके ऊपर भी खर्चे का बोझ पड़ेगा! 

डिलीवरी के लिए जाते हुए शीला जी ने नीता को कहा”बच्चे को लेकर आओ तो उसके लिए सोने की चैन और नामकरण क्योंकि बुआ की गोद में होगा तो प्रिया के वास्ते टाप्स या अंगूठी जरूर आऐगी बता दियो अपनी मां को!मेरे और समीर के कपड़े तो होंगे ही!बाकी का जो देंगी उनकी अपनी बेटी का ही तो होगा!”

शीला जी ने एक पल को भी नहीं सोचा इतना सामान नीता की मां कहां से देंगी!अभी उसके पिता को गऐ दिन ही कितने हुए,भाई कमाता नहीं!

दिन बीते नीता मन्नू की मां बन गई! 

हास्पिटल का बिल और ऊपर के खर्चों की वजह से नीता की मां शीला जी की फरमाइश का सामान न दे सकीं!फिर भी इधर-उधर से कर्ज लेकर सामान खरीद कर उन्होने नीता को बिदा किया!

शीला जी कुछ कहें और वो पूरी ना हो यह देखकर वे आगबबूला हो उठी!उन्होने समीर को हिदायत दी कि आज के बाद नीता का मायके जाना बंद! जब लड़की को कुछ दे नहीं सकते तो बुलाने की जरूरत नहीं!

उधर प्रिया के ससुराल में कोई था ही नहीं इसलिए शीला जी ने जो कुछ दिया उनकी बेटी के पास ही रहा!

बारहवीं के बाद नीता के भाई का चयन मिलिट्री में हो गया!

जाने से पहले नीता और उसके भाई का एक बार मिलने का मन था!कुछ दिन बाद रक्षा बंधन था!नीता ने डरते डरते शीला जी को पूछा”मांजी!इतने साल हो गए मैंने भाई को ना भाई दूज का टीका किया ना राखी बांधी!अब वो फौज में जा रहा है!आप कहें तो मैं चली जाऊं या उसे बुला लूं!”सुनते ही शीला जी बिफर कर बोली”क्या राखी टीके की रट लगा रखी है!तुझे और तेरे घरवालों को कह रखा है ना कि कुछ दे ले नहीं सकते तो ना तू वहाँ जाऐगी ना वे यहाँ आऐंगे!चुपचाप पड़ी रहो”

नीता के अंदर का बरसों का गुब़ार,जो ज्वालामुखी बन कर उसके दिल में दफन था एक बारगी ही फट पड़ा! गुस्से से उसका मुंह लाल हो गया पहली बार वह चिल्लाकर बोली”आप लोग अपनी बेटी को तो हर राखी दूज पर बुला लेते हैं!रमन जीजा जी तो कभी कुछ नहीं कहते क्या लिया क्या दिया!मैं भी इंसान हूं मेरी भावनाओ का आप दोनों ने कभी एक बार भी नहीं सोचा!मुझ पर क्या बीतती होगी!आपको कोई सरोकार नहीं!

जिस तरह आप लोगों ने मेरे दोनों त्योहार खोटे किये!बहन होते हुए भी मेरे भाई का माथा और कलाई सूने रहे!भगवान करे समीर वैसे ही आपका भी माथा और कलाई सूने रहें!बहन होते हुए भी आप इन दोनों त्यौहारों के लिए तरसो!”

कहते है भगवान की लाठी में आवाज नही होती!

रमन नीता पर हुए अत्याचार देखता था!एक दो बार उसने प्रिया को समझाने की कोशिश की!मगर शीला जी के सामने उसकी एक न चली!उल्टे उन्होंने रमन को ही कटघरे में खड़ा कर दिया!उसके और नीता के रिश्ते पर गलत और घिनौना इल्ज़ाम लगा दिया !

रमन अपने चरित्र पर लगे झूठे लांछन से बहुत आहत हुआ उसने भी प्रिया पर मायके जाने और मां और भाई से मिलने पर रोक लगा दी!

नीता जब भी समीर का सूना माथा, सूनी कलाई और उसका गुमसुम चेहरा देखती तो उसका दिल अंदर से बहुत कचोटता!

नीता की दिल से निकली बद्दुआ की वजह से अपनी ही बेटी के खुशहाल घर में आग लगते देखकर एक साल में ही शीला जी और समीर को अक्ल आ गई! 

उन्होनें रमन से हाथ जोड़कर माफी मांगी और समीर खुद नीता को उसके दोनों त्योहार मनवाने उसके मायके लेकर जाने लगा!

कुमुद मोहन 

स्वरचित-मौलिक

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