हमारा संयुक्त परिवार था बाबूजी दो भाई थे, मा चाची दादा दादी, हम सब भाई बहन ।संयुक्त परिवार मे रहने का अलग ही मजा था भाई बहन मे जितना प्यार था
उतने झगडे भी, बच्चो के झगडे पल मे सुलझ जाते लेकिन माँ चाची की अगर किसी काम को लेकर झगडे होते तो कुछ दिनो तक बातचीत बन्द सब अपने हिस्से का काम करते,घर मे पूरी शान्ति छा जाती थी लेकिन बच्चो मे कोई फर्क नही पड़ता बड़े भी इन झगडो मे बच्चो को शामिल नही करते थे,
कुछ दिनो बाद माँ चाची मे बात होने लगती थी सब फिर से हँसी खुशी चलने लगती थी,वक़्त बीतता गया हम भाई बहन बडे हो गए कोई बाहर नौकरी करने लगा तो किसी की शादी हो गई दादी दादाजी भी गुजर गए,दोनो भाईयो मे जायदाद मे बंटवारा भी हो गया लेकिन फिर भी न
जाने क्यूं किसी जमीन को लेकर बाबूजी और चाचाजी मे मनमुटाव हो ग्य वह कहते हैं न जमीन जायदाद हर घर मे झगडे करवाती हैं यह बात सच हो गई इस बार पुरुषो मे झगडे थे तो गंभीर रुप ले लिया माँ चाची की आपस मे बात
चित बन्द हो गई,दोनो आपस मे घुट रही थी क्युंकि उनकी लडाई तो दो दिन की होती थी यह तो लगता हैं सालो चलेंगी पत्नियाँ पतियो के विरुद्ध भी नही जा पा रही थी,दुर्गा पूजा मे सभी बच्चे घर आ गए थे घर की यह हालत देखकर उन्हे बुरा लग रहा था सभी भाई बहन मिल कर एक फैसला लिया गया
की पूजा के चार दिन सब मिलमिलकर एक साथ खाना खायेंगे,एक ही जगह पकेगा,माँ चाची तो डर के मार कुछ बोल नही पा रही थी,तुम्हारे बाबूजी चाचाजी नही मानेंगे तभी बड दा ( बडे भैया)ने चाचाजी के साथ बात की”चाचा हमे आज भी आपके झगडे का हिस्सा नही बनना हम वह पुराना वाले चाचा चाहिये जो हमारे खुशी के लिए सब कुछ करते थे आइये न कुछ दिनो के लिए सारे झगडे भुल पुराने दिनो मे लौट चले”
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बडी दी ने भी बाबूजी से बात की”मैं मायके खुशिया मनाने आई हुँ मैं नही चाह्ती इतनी छोटी सी बात कोई बडा रुप ले ले और सारे रिश्ते बिखर जाए,आप और चाचा आपसी सहमती से झगडे सुलझा ले,आइये न कुछ दिन हमलोग एक साथ मिलकर त्यौहार मनाये,बाबूजी चुपचाप सुन रहे थे माँ बाहर बरामदे से सब सुन रही थी।
बाबूजी ने माँ से कहा”बडी बहू जरा इधर आना पूजा मे चार दिन क्या बनेगा लिस्ट बनाओ भाई को बाज़ार जाने बोलों बच्चो की जिसमे खुशी हैं वही करो”बाबूजी की टज आवाज सबके कानो तक पहुंची थी चाची जल्दी से थैला चाचाजी को पकडा कर बोली भाभी से लिस्ट ले लो,चाचाजी खुशी खुशी थैला लेकर निकल पडे।
बच्चो मे खुशी की लहर दौड पड़ी,आज फिर से वह बचपन मे लौट आए थे।
स्वरचित
आराधना सेन
#मैं नही चाह्ती यह छोटी सी बात कोई बड़ा रुप ले ले और सारे रिश्ते बिखर जाए#