गायत्री देवी की ट्रेन का समय हो चला था . उन्होंने अपनी हैंड बैग की बेल्ट कंधे पर डाल ली थी.बेटी राधा भी मां को विदा करने के लिए खड़ी हो चुकी थीं.जाने देने का मन कहां था उसका पर वो जानती थी कि पांच बजे वाली ट्रेन के बाद देर रात तक सूरजपुर जाने के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं थी.
करीब दो साल पहले कार्तिक के संग राधा बियाह कर आइ थी.
गायत्री देवी और मनोज बाबू ने अपनी इकलौती बिटिया की शादी में कोई कमी नहीं रखी थी.कोशिश थी कि बिटिया आस पास में ही ब्याही जाए तो बुढ़ापे में भी मिलना जुलना हो जाया करेगा.भगवान ने आखिर कर सुन ली थी और सूरजपुर से सिर्फ डेढ़ घंटे दूर रामगढ़ में कार्तिक के रूप में होनहार और मेहनती दामाद मिल गया था.
मनोज बाबू खाद और रसायन के छोटे व्यापारी थे . व्यापार के काम से हर महीने उनका रामगढ़ जाना होता था.
दोपहर तक काम निपटा कर घंटे भर का समय बेटी दामाद के लिए निकाल लेते थे. साथ में पूरनमल हलवाई का मलाई पेड़ा लाना नहीं भूलते थे.राधा तो बड़ी ही हुई थी पूरनमल की मिठाईया खाकर.उसपर भी मलाई पेड़े में तो उसकी जान बसती थी.
पिता और पेड़े का हर महीने यूं मिल जाना राधा को मायके के स्नेह से जोड़े रखता था.
राधा के साथ साथ अब तो कार्तिक भी दीवाना हो गया था पूरनमल की मिठाईयों का.
गायत्री देवी भी बेटी और दामाद से मिलने के लिए व्याकुल रहती थी किन्तु घोर घूंघट प्रथा वाले माहौल में पली बड़ी और बेटी के घर पानी भी नहीं पीने के वचन से बंधे रहना उन्हें रोके रखता था.
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एक क्रम सा बन गया था मनोज बाबू के जाने का और बिटिया से मिलने का.
पर हर क्रम और यात्रा का एक अंत नियति लिख चुकी होती है.ये यात्रा भी उस दिन हमेशा के लिए खत्म हो गई थी जब मनोज बाबू को दुकान में बैठे बैठे दिल का जोरदार दौरा पड़ा था और वो आगे एक शब्द कहे बगैर कभी वापस न आने की आखिरी यात्रा में निकल गए थे.
अब राह ताकती राधा के लिए कोई आने वाला नही था.
धीरे धीरे हमेशा चहकने वाली राधा एक अजीब सी खामोशी और उदासी के अंधेरे में घिरती जा रही थी.आंखो के नीचे काला पड़ने लगा था और शरीर एकदम कमजोर पड़ चुके किसी पौधे की तरह सूखता जा रहा था.
कार्तिक ने बड़े बड़े अस्पतालों और डॉक्टरों के चक्कर लगा लिए थे पर मर्ज था कि काबू में ही नहीं आ रहा था.
उस दिन दरवाजे पर बेल बजी तो राधा की नजर एकदम से घड़ी की तरफ गई थी.ठीक इसी समय तो पिताजी आते थे उससे मिलने के लिए.फिर अगले ही क्षण उसे याद आया कि पापा अब कहां आने वाले थे.
फिर भी दरवाजे पर कोई तो आया ही था.बोझिल मन से राधा ने दरवाजा खोला तो सामने खड़े इंसान को देखकर वो दंग रह गई थी.
कभी घर की दीवारों से अकेले बाहर नही निकलने वाली मां सामने खड़ी थी हाथो में पूरनमल के मलाई पेड़ो का डब्बा लिए.
कुछ पल तो इसे अपना भ्रम समझ रही थी पर सच में दरवाजे पर बेल बजाने वाली गायत्री देवी ही थी.
मां और बेटी एक दूसरे से लिपट गई थी.
घूंघट में रहने वाली मां अकेले सूरजपुर से रामगढ़ की यात्रा कर आई थी.मिठाई का डब्बा खोलकर गायत्री देवी ने राधा के मुंह में एक पूरा का पूरा पेड़ा डाल दिया था.पेड़ा खाते खाते राधा जल्दी से कार्तिक को कॉल लगाने लगी थी.
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कार्तिक आया तो वो भी दंग रह गया था.एक तो सासू मां के आने पर दूसरा राधा को महीनो बाद इस तरह से चहकते देखकर.
जो काम बड़े से बड़े डॉक्टर नहीं कर पाए थे वो आज सासू मां ने कर दिया था.
“अब तुम्हारे पापा की तरह ही हर महीने दोपहर की गाड़ी से आकर शाम वाली ट्रेन से लौट जाया करूंगी”
गायत्री देवी ने कलेजे से चिपकी राधा बिटिया को कहा तो सासू मां के हौंसले और उनके बदले रूप को देखकर कार्तिक खुशी से मुस्करा उठा था.
“मां क्यों न आप अब यही रहे हमारे साथ “
कार्तिक ने जिद्द भरे लहजे में बोला था लेकिन राधा ने एक बार भी मां को रुकने को नहीं बोला था क्योंकि उसे पता था कि मां गायत्री देवी के लिए पिता मनोज बाबू का बनाया वो घर एक मंदिर की तरह रहा है और एक पुजारन अपने मंदिर से दूर कैसे रह सकती थी.
“लेकिन मां तुमने अचानक ये निर्णय कैसे लिया यहां आने का.तुम तो पास के मोहल्ले में भी अकेले जाने से झिझकती थी. फिर रिक्शा और बस की सवारी कर कैसे आ गई तुम”
राधा के इस मासूम से सवाल पर गायत्री देवी कुछ देर हल्की सी मुस्कुराहट लिए उसे देखती रही.
“बच्चो जब हमारे जैसे परिवार के माता पिता अपनी बेटी को विदा करते है तो बेटी के विवाह के लिए धीरे धीरे जमा किए गए दहेज में से कुछ बाद में देने के लिए बचा लेते है.जब मुझे लगा कि राधा पिता को ऐसे ही याद करती रही तो ये एक जिंदा लाश बन जाएगी.तब मुझे लगा कि बचा हुआ दहेज चुकाने का समय आ गया है.”
गायत्री देवी ने घूंट भर पानी पियाऔर उन्हें एक टक देखे जा रहे राधा और कार्तिक को दोनों हाथो से अपने करीब ले आते हुए कहा ” मेरी ये यात्रा बचा हुआ दहेज है मेरे बच्चो”
डबडबाई आंखो के साथ फिर अगले महीने आने का वादा कर लौटने लगी थी गायत्री देवी.
सेतु कुमार
लोवर परेल
मुंबई