रति के सास ससुर गांव से लगभग साल भर बाद उसके घर आए थे।रति अपने पति विजेंद्र के साथ दिल्ली में रहती थी और उसका पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था।वैसे तो उसके ससुर की गांव में बहुत बड़ी ज़मीन जायदाद थी लेकिन उसके पति को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद नौकरी करना ही अच्छा लगा था और वह दिल्ली शहर में एक बड़ी कंपनी में अच्छे ओहदे पर लग गया था।
गांव में रति का देवर सारी खेती बाड़ी और ज़मीनों का काम देखता था और अपने बड़े भाई के घर भी खेती से उपजी फसलों का एक हिस्सा दे दिया करता और साथ ही गांव से ही अपनी ज़मीन में उगे चावल और घर का बना घी भी भेज दिया करता।विजेंद्र उसे हमेशा मना भी करता कि जब वो खेती-बाड़ी में कोई हाथ नहीं बंटाता तो वह फिर क्यों उसके नाम का हिस्सा भेजता है..लेकिन उसका छोटा भाई राजेंद्र बहुत भला था और हमेशा यही कहता,” तो क्या हुआ भैया,आप हमेशा इस घर के बेटे तो रहोगे ना”।
अपने बेटों में इतना प्यार देखकर रति की सास बलिहारी जाती थी।रति और विजेंद्र भी यदा-कदा गांव जाते तो राजेंद्र और उसकी पत्नी उमा उनकी दिल से बहुत सेवा करते और जब कभी वे शहर आते तो रति और विजेंद्र भी उन्हें शहर घुमाते फिराते और खूब खरीदारी करवा देते। राजेंद्र के घर एक बेटा था जो कि लगभग 5 वर्ष का था और विजेंद्र ने अपने करियर पर ध्यान देने की वजह से बच्चा करने में थोड़ी देरी की थी तो उसकी बेटी अभी 2 वर्ष की ही थी।
इस बार रति के सास ससुर को गांव से आए थोड़ा समय बीत गया था क्योंकि उसके ससुर की तबीयत ठीक नहीं थी।विजेंद्र के बार-बार आग्रह करने पर रति के सास ससुर आज गांव से दिल्ली पहुंचे थे।विजेंद्र ही उन्हें स्टेशन पर लेने चला गया था।
रति की सास कमला जी बहुत ही अनुभवी और भली महिला थी।अपनी पोती को देखते ही उन्होंने अपने सीने से चिपटा लिया और बोली,” देखो, कितनी बड़ी हो गई है यह और दादी को भी पहचान गई है”।
“पहचानती कैसे नहीं मम्मी जी..अभी 2 महीने पहले ही तो आप से गांव में मिलकर आई है और आप सब की फोटो भी तो यहां लगी है उसे देखकर दिनभर दादी दादी करती रहती है”, रति की यह बात सुन सारे हंसने लग पड़े।
रति के सास ससुर अपने साथ गांव से बहुत सारा सामान लाए थे..और खा पीकर सफर से थके मारे होने की वजह से दोनों जल्दी सो गए थे।
अगले दिन जब विजेंद्र दफ्तर के लिए निकला तो रति के साथ उसके माता-पिता दोनों उठकर नहा धोकर पूजा कर नाश्ता कर रहे थे।विजेंद्र बोला,” बाबू जी, आज मैं दफ्तर से जल्दी आ जाऊंगा और अगले 1 हफ्ते के लिए मैंने छुट्टी ले ली है”।
“अरे, तूने छुट्टी क्यों ली…हम कोई पराए थोड़ी हैं”।
“कोई नहीं बाबू जी, इसी बहाने आपके साथ थोड़ा और वक्त बिताने का मुझे मौका मिल जाएगा”।
“जैसी तेरी मर्ज़ी बेटा”, उसके पिताजी बोले।
शाम को विजेंद्र जल्दी आ गया और सब को होटल में खाना खिला लाया।सभी बहुत खुश थे..अगले दिन जब सुबह हुई तो रति के सास ससुर जल्दी उठ चुके थे और नीचे सोसायटी के पार्क में सैर करने जा रहे थे। रति की बेटी भी उठ गई और उनके साथ चलने की ज़िद करने लगी। रति की सास ने पोती को भी साथ ले लिया।
अगले दो-तीन दिन बहुत अच्छे बीते पर कमला जी को एक बात खटक रही थी कि रति अपनी बेटी को जो भी वो मांगती वह झट से पकड़ा देती थी या उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करती जाती थी।कमला जी समझती थी कि यह उसका पहला बच्चा है और साथ ही बेटी के मोह की वजह से उनकी बहू ऐसा कर रही है पर कहीं ना कहीं उन्हें यह बात चुभ भी रही थी।
उसी शाम को उनकी पोती विजेंद्र के मोबाइल से खेल रही थी और खेलते खेलते विजेंद्र का मोबाइल बजना शुरू हो गया।विजेंद्र ने देखा कि उसके बॉस का फोन था। उस ने एक दो बार बेटी से मोबाइल मांगा भी पर बच्ची ने देने से इंकार कर दिया।मोबाइल लगातार बजता जा रहा था.. कोई ज़रूरी काम ना हो इसलिए विजेंद्र ने मोबाइल बच्ची से छीन लिया और दूसरे कमरे में जाकर बात करने लगा।
बच्ची ज़ोर ज़ोर से रोने लग पड़ी.. उसका रोना सुन रसोई में काम करती रति जल्दी से भागती आई और विजेंद्र के कमरे से बाहर आते ही उस पर गुस्से से चिल्ला उठी,” क्या होता अगर थोड़ी देर बच्ची और मोबाइल से खेल लेती तो”।
“अरे रति, मेरे बॉस का फोन आ रहा था।दफ्तर में कोई ज़रूरी फाइल थी जिसके बारे में सिर्फ मुझे ही पता था और उन्हें वह अभी चाहिए थी इसलिए वह मुझे फोन कर रहे थे।बाहर से क्लाइंट आए हुए थे जो उनके सामने ही बैठे थे और यह मोबाइल दे ही नहीं रही थी”।
“तो क्या होता अगर उनके क्लाइंट थोड़ा इंतज़ार कर लेते आपने खामखां बच्ची को नाराज़ कर दिया और उसे रुला दिया।देखा बेटी.. पापा कितने गंदे हैं”, रति बच्ची को चुप कराते हुए बोली।
रति की सास कमला जी यह सारी बात देख रही थी। उस समय तो वह कुछ नहीं बोली और बच्ची को गोद में ले नीचे पार्क में ले गई और उसे वहां झूला झुलाने लगी।झूला झूलकर दो पल में ही बच्ची खुश हो गई और हंसने लगी और थोड़ी देर बाद हंसती गुनगुनाती हुई घर में अपनी दादी के साथ आ गई।रति ने भी उसे खुश देख कर चैन की सांस ली लेकिन कमला जी ने देखा विजेंद्र का मूड उखड़ा हुआ था।
अगले दिन विजेंद्र अपने पिताजी को साथ लिए बैंक चला गया।उसे बैंक में थोड़ा काम था और वह पिता जी को भी साथ ले गया था।कमला जी ने मौका देख रति को बोला,” रति, मैं तुम्हारी परवरिश पर कोई सवाल नहीं उठाऊंगी। मुझे पता है तुम अपनी बेटी को बहुत अच्छे तरीके से पाल रही हो।इतने अच्छे तरीके से कि जो कि हर मां का सपना होता है लेकिन बड़ी होने के नाते मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहती हूं कि बच्चों को कभी ना भी कहना आना चाहिए।
आज तो तुम उसकी सारी ज़िद पूरी करने के लिए सक्षम हो और उसकी ज़िद पूरी भी करती जा रही हो लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी होती जाएगी उसकी अपेक्षाएं तुम्हारे से बढ़ती जाएंगी और कभी ऐसा मौका भी आ सकता है जब तुम उसकी वह ख्वाहिश पूरी ना कर पाई तब तुम क्या करोगी।तब ना तो बच्ची सहन कर पाएंगे और ना ही बच्चे की नाराज़गी को तुम।इसी लिए समय रहते ही समझ जाना चाहिए।
बच्चों को प्यार के साथ-साथ थोड़ा अनुशासन में बचपन से ही रखना आना चाहिए ताकि आगे चलकर कोई मुश्किल ना आए। मैं तुम्हारी तरह पढ़ी लिखी और शहरी महिला तो नहीं हूं लेकिन फिर भी दो बेटों की मां होने के नाते इतना तो समझती हूं और मुझे उम्मीद है तुम मेरी बातों का बुरा नहीं मानोगी”।
“नहीं नहीं मांजी, आपने मुझे बिल्कुल सही राह दिखाई है। आप सही कह रही हैं…मैं ही बेटी के प्यार में कुछ ज़्यादा ही पढ़ कर उसकी हर ख्वाहिश को पूरी करती जा रही थी और कहीं ना कहीं मैं उसे गलत आदतों का शिकार बनाती जा रही थी जिससे आगे चलकर वह जिद्दी बनती जाएगी। ऐसा मैं भी समझती हूं और इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है और आपकी सिखाई सीख को मैं हमेशा याद रखूंगी”, कहते हुए रति मुस्कुराती हुई चाय बनाने अंदर चली गई।
थोड़ी ही देर बाद विजेंद्र और उसके पिताजी भी आ गए थे।चारों मिलकर चाय पीने लगे.. जैसे ही रति की बेटी ने विजेंद्र से इस बार फोन मांगा तो रति ने मना कर दिया,” नहीं बेटा, यह तुम्हारे खेलने की चीज़ नहीं है.. यह पापा के लिए है और उन्हें चाहिए।तुम जाकर अपने खिलौनों से खेलो।देखो दादी भी तुम्हारे लिए कितने नए नए खिलौने लाई है।
रति की बात सुन बेटी चुप कर गई और अपने नए खिलौने खेलने में व्यस्त हो गई। विजेंद्र यह सब देखकर हैरान था और मां को मंद मंद मुस्कुराते हुए देख समझ गया था कि इस सब के पीछे उसकी अनुभवी मां का ही हाथ है और मन ही मन उसने मां को धन्यवाद कह दिया।
प्रिय पाठकों, अक्सर हम लाड़ प्यार में अपने बच्चों की हर जिद पूरी करते जाते हैं और जाने अनजाने उन्हें जिद्दी बनाते जाते हैं। यह सही है कि बच्चों को प्यार देना चाहिए लेकिन कभी-कभी प्यार के साथ-साथ उन्हें ना भी कहना आना चाहिए।
#स्वरचितएवंमौलिक
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।