बालदिवस है कुछ खास करो वरिष्ठ शिक्षक रामप्रसाद जी ने बालदिवस आयोजन की मीटिंग शुरू होते ही उपस्थित छात्र प्रतिनिधियों की तरफ देखते हुए कहा।
जी सर … वो …हम लोग भोज का आयोजन करना चाहते हैं जिसे हम बच्चे ही बनाएंगे छात्र प्रतिनिधि रोहित ने जल्दी से अपनी बात रखी।
बहुत बढ़िया प्रस्ताव है सावित्री मैडम ने उत्साह से कहा।
लेकिन उसमें एक दिक्कत आ रही है मैम नेहा ने जल्दी से कहा।
क्या दिक्कत है बताओ मैने संस्था प्रधान और मीटिंग हेड के बतौर पूछा।
मैडम सारे बच्चे पैसे नहीं दे रहे हैं कुछ के पास है ही नहीं और कुछ देना ही नहीं चाहते हैं रोहित ने खुल कर बताया।
हुंह सब बहानेबाजी है अभिभावकों की सारे विद्यार्थियों को रुपए देने ही पड़ेंगे ऐसा क्या खजाना मांगा जा रहा है कौन कौन नहीं दे रहा है मुझे बताओ सबक सिखाता हूं रामप्रसाद सर एकदम नाराज़ हो गए।
हां सब विद्यार्थियों को देना पड़ेगा देना ही चाहिए सभी शिक्षक समवेत स्वर में कह उठे नहीं तो दंड दिया जाएगा आखिर भोजन भी तो करेंगे सब।
मीटिंग में कोलाहल तेज हो गया और पैसा नहीं देने वाले छात्रों के नाम लिखे जाने लगे।
सुनिए मेरा भी एक प्रस्ताव है मैने अचानक हस्तक्षेप किया तो सभी मेरी ओर देखने लगे।
देखिए शिक्षक दिवस पर सभी बच्चे स्वेच्छा से आयोजन करते हैं हम सभी का सम्मान करते हैं तो बालदिवस पर हम सभी शिक्षकों को भी स्वेच्छा और खुशी से बालभोज के आयोजन में सहयोग देना चाहिए ।जितने बच्चे स्वेच्छा से पैसे देंगे ठीक है
शेष से किसी प्रकार की कोई जोर जबरदस्ती नहीं की जाएगी पर सभी को भोज में उपस्थित रहना अनिवार्य है आखिर हम बालदिवस मनाने जा रहे है ।#ताली एक हाथ से नहीं बजती जितने रुपए घट रहे है आप सभी शिक्षक भी रुपए देंगे आखिर हम सब भी तो भोजन करेंगे ….मैने अपनी बात का प्रभाव देखा विरोध और असहमति की सुगबुगाहट तेज हो गई थी..
लीजिए एक हजार रुपए मेरी तरफ से मैने रोहित की तरफ रुपए बढ़ाते हुए अपनी बात समाप्त कर दी।
थोड़ी ही देर में सभी शिक्षक रुपए निकाल कर रोहित को देने लगे….।
देखते ही देखते पर्याप्त रूपये इकट्ठे हो गए थे ।
बच्चों का उत्साह चरम पर था सारी खरीददारी बच्चों ने एक दिन पहले ही कर ली काम का बंटवारा हो गया और बालदिवस पर विविध सुस्वादु भोजन बच्चों और शिक्षकों ने मिलकर बनाया और मिलकर खाया।
लतिका श्रीवास्तव
एक हाथ से ताली नहीं बजती#मुहावरा आधारित लघुकथा