मैं भगोड़ा नहीं – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

आज अदालत में नितिन और रोमी के केस की सुनवाई थी।रोमी की तरफ से पति और ससुराल के ऊपर दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया था।एक मध्यम वर्गीय परिवार के इकलौते बेटे ने, शादी के समय कभी सोचा भी नहीं था कि कुछ ही महीनों में उसके परिवार को यह दिन भी … Read more

मंझली बहू – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

चार बेटों की मां,मुग्धा देवी कठोर अनुशासन प्रिय महिला थीं।उनकी मर्जी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था।पति के जाने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी बड़े बेटे शुभ के कंधों पर आ गई थी।अपनी कमाई से ही संयुक्त परिवार का खर्च वहन करता था वह।मंझले बेटे के साथ गुरु दर्शन को गईं,मुग्धा … Read more

कच्चे धागे – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

सुलभा नई नवेली दुल्हन बनकर सुयश के घर आई थी।रूपवान सुलभा के अनुपम सौंदर्य ने ससुराल में हर किसी को अपना चहेता बना लिया था। आधुनिक विचारधारा की सुलभा ने आते ही रसोई घर में नए-नए प्रयोग शुरू कर दिए थे।सास (रमा) ने अपने घर में जो भी नियम कानून बनाए थे,बहू ने आते ही … Read more

संकल्प – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

सप्तपदी का  मुहूर्त आधी रात के बाद ही था।परी बहुत थकी लग रही थी।नींद से बोझिल आंखें से जब भी मुझपर पड़तीं,वही सवाल पूछतीं।नज़रें चुराकर कहीं और देखने लगता। बार-बार घड़ी देख रहा था,तभी शशांक के पिता जी ने आकर कंधे पर हांथ रखकर कहा”संकल्प जी, घबराहट हो रही है?मैं समझ सकता हूं। मैंने भी … Read more

 इसका क्या दोष? – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“मां,अब मैं इस औरत के साथ एक दिन भी नहीं रह सकता।मैं दूसरे घर में शिफ्ट हो रहा हूं आज ही।पापा से नहीं कह पाऊंगा मैं।तुम बता देना,जब बाजार से आएं।उनसे पूछ लेना कि अपने बेटे के साथ रहेंगे या इस घर में।मेरी तकदीर ही फूटी निकली।मेरी वजह से तुम लोगों को भी जाते जी … Read more

देने वाले हांथ – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

प्रतिमा से अब रहा नहीं जा रहा था।रागिनी से मिलकर उसे ताने मारने का मौका मिला था साल भर बाद।रागिनी उसकी बचपन की सहेली थी।शादी के बाद कभी -कभार मायके में गर्मी की छुट्टियों में मुलाकात हो जाती थी।प्रतिमा और रागिनी की शादी प्रायः एक ही समय में हुई थी।रागिनी ने कभी ऊंचे-ऊंचे सपने नहीं … Read more

विश्वास – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“नमस्ते आंटी जी,कैसी हो?”रसोई की खिड़की के पास खड़ी होकर छुटकी चहक रही थी।बेटी ने पूछा कि नाम क्या है मम्मी इसका,पर शिवानी को खुद ही नहीं पता था छुटकी का नाम।दो साल पहले अपनी मां का हांथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए मिली थी छुटकी।मां के पैर में पोलियो था,जिस कारण चलने में तकलीफ़ हो … Read more

मूंगफली वाली पनीर – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“रविवार को एक दिन तो छुट्टी मिल जाती है तुम सबको,पर घर की औरत का जीना दूभर हो जाता है।एक दिन पहले से अपनी फरमाइश की फेहरिस्त बनाकर रख लेते हो,फिर सुबह से नाक में दम कर देते हो।ये दोनों बच्चे भी ना,तुम्हें घर में पाकर जैसे हांथी के पांच पांव देख लेते हैं।मजाल है,मेरी … Read more

पुनर्जन्म – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“काव्या ,ओ काव्या !अरे कहां हो तुम?देखो अभी एक और ऑर्डर आया है लंच का।छत से उतरोगी कब तुम?अभी बता दो क्या -क्या करना है मुझे?बाजार जाना है क्या?रविशंकर जी पत्नी काव्या के छत से नीचे आने की प्रतीक्षा लगभग घंटे भर से कर रहे थे। बालों का जूड़ा बनाते हुए,माथे का पसीने पोंछते हुए … Read more

परिवार ही पूंजी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

श्रुति की बड़ी दीदी श्रेया की शादी थी पिछले सप्ताह।श्रुति रीना की सबसे पक्की सहेली थी।सुमि ने फोन पर बताया था निधि को”मम्मी,श्रुति की दीदी की शादी पक्की हो गई है।मीनाक्षी आंटी(श्रुति की मम्मी)आप को फोन लगाई थी,और आपने उठाया नहीं।एक बार फोन कर लीजिएगा।” निधि को वास्तव में आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी हुई।अभी तो कुछ … Read more

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