बन्धन (भाग 5)- नीलम सौरभ

“मैं समझाता हूँ न मेरी माँ तुझे! …देख, हमारी फैक्ट्री में काम करने वाले बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो बाहर से यहाँ मेहनत करने आये हैं, परिवार साथ नहीं है और या तो ख़ुद किसी तरह से खाना बना कर खाते हैं या फिर होटल या ढाबों में…और इन सबको अपने घर के, अपनी … Read more

 बन्धन (भाग 4)- नीलम सौरभ

मेरे बाबूजी ने तुरन्त उसे डाँटते हुए कहा था, “ख़बरदार जो ऐसी मनहूस बात मुँह से निकाली तो! अरे हम मर गये हैं क्या..जो तू जहर खाएगी, मासूम बच्चियों को जहर खिलाएगी? वो तो बिटिया, मैं इसलिए पूछ रहा था कि अभी तेरी उम्र ही क्या हुई है, तेरे कितने अरमान होंगे, कितने सपने होंगे। … Read more

 बन्धन (भाग 3)- नीलम सौरभ

मेरे खुर्राट बाबूजी जिनके सामने मैं अपनी आधी उम्र पार कर चुकने के बाद भी ऊँची आवाज में बोल नहीं पाता था, फैक्ट्री के कर्मचारी और लेबर भी जिनके गुस्से से खौफ खाते थे, वे उस समय भीगी बिल्ली बन लीला की उस झिड़की को चुपचाप सुन रहे थे। तत्क्षण मुझे अपनी स्वर्गवासी अम्माँ याद … Read more

 बन्धन (भाग 2)- नीलम सौरभ

मैं उसकी जगह अपने जीवन में किसी को दे नहीं पाऊँगा, यह मुझे अच्छे से पता था अतः मैंने किसी की भी बेटी का जीवन न बिगाड़ते हुए कभी ब्याह न करने का निश्चय कर लिया था। अम्माँ-बाबूजी के लाख बोलने, समझाने, दबाव डालने के बाद भी इस मामले में मैंने चुप्पी साधे रखी। फिर … Read more

 बन्धन (भाग 1)- नीलम सौरभ

सम्मानित अतिथियों के लिए आरक्षित सबसे सामने की पंक्ति में बैठे मैं और बाबूजी आज फूले नहीं समा रहे हैं। आखिर हमारी लीला को आज पुरस्कार जो मिलने वाला है। नवोदित उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए हमारे जिले के माननीय जिलाधीश श्री अवनीश शरण ने पिछले साल ही यह योजना शुरू की थी, जिसमें … Read more

ये रिश्ते दिलों के रिश्ते!(अंतिम भाग ) – नीलम सौरभ

“कभी अपनी और अपने परिवार की औक़ात देखी है? तुम्हारे लिविंग स्टैंडर्ड से कहीं ज्यादा अच्छी कंडीशन मेरे घर के नौकरों की है। …और मेरे घर वाले हमारी शादी के लिए तो तब मना करेंगे न, जब मैं तुमसे शादी को राज़ी होऊँगा। मेरे ख़्वाब ऊँचे हैं, बिज़नेस मैनेजमेंट की ऊँची डिग्री और विदेश में … Read more

ये रिश्ते दिलों के रिश्ते!(भाग 3) – नीलम सौरभ

कार रुकी तब उतरते ही मैं चौकन्नी होकर चारों तरफ देखने लगी कि कहाँ आ गयी हूँ मैं। एक छोटे से मगर सुन्दर बंगले के सामने थे हम सब। सारा परिदृश्य एकदम सामान्य लग रहा था। साफ-सुथरी, शान्त-सी हरी-भरी कॉलोनी थी। आम मध्यम-वर्गीय रहन-सहन वाली। देबाशीष की माँ ने बेटे को उनकी भाषा में न … Read more

ये रिश्ते दिलों के रिश्ते!(भाग 1) – नीलम सौरभ

“ये देबाशीष दत्ता भी न…पता नहीं क्या चाहता है? न कुछ बोलता है न कुछ पूछता है…और तो और किसी बात का जवाब भी नहीं देता नालायक…मिट्टी के माधो की तरह बैठा बस घूरता रहता है नासपीटा। उसकी क्लास को तो अब पढ़ाना भी मुश्किल होता जा रहा है…पिछले किसी जन्म की कोई दुश्मनी निकाल … Read more

सुबह का भूला (आखिरी भाग )- नीलम सौरभ

स्तुति ने पूरी तत्परता से न सिर्फ अपने जेठ को सही समय पर अस्पताल पहुँचाया बल्कि वहाँ के लापरवाह स्टाफ से लड़-भिड़ कर उन्हें तत्काल एडमिट भी करवाया। वहाँ उपस्थित अस्पताल के छोटे कर्मचारी जब आदत से मजबूर आनाकानी कर रहे थे, स्तुति दनदनाती हुई मुख्य चिकित्सक के ऑफिस में घुस गयी। उसने जब अपने … Read more

सुबह का भूला (भाग 3)- नीलम सौरभ

___”कुछ कीजिए न मम्मीजी, पापाजी…इनको कुछ भी हुआ तो मैं भी जिन्दा नहीं बचूँगी मम्मीजी…कुछ करो न छोटी…सिद्धांत भइया को फोन करो ना जल्दी..!” घर का बड़ा बेटा सुदर्शन यानी सिद्धांत का बड़ा भाई आज पुश्तैनी गाँव के लिए निकला हुआ था। हमेशा की तरह अपने फार्महाउस के बहुत सारे कामों को देखने के लिए। … Read more

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