अपनों की पहचान-मनीषा सिंह

स्वागत है तुम्हारा” रोशन भवन” में••! आज से तुम हमारे घर की सदस्या हो! कहते हुए शारदा जी बहू की नजर उतरती हैं और उसके गृह प्रवेश हो जाने के बाद वह आनंदी शारदा जी की इकलौती बेटी जिसकी शादी भोपाल के बड़े बिजनेसमैन से हुई थी, से भावना को उसके कमरे तक ले जाने … Read more

दो चेहरे-मनीषा सिंह

“मां •••!मुझे डर लग रहा है प्लीज अगर हो सके तो पापा को यहां भेज दिजीये•• ताकि मैं उनके साथ चली आऊ!  रात के 12:00 बजे कली अपनी मां को फोन लगाती है परंतु उधर से कोई जवाब न मिल पाने के कारण वह घबरा जाती है और पुनः काट कर डायल करती है। हेलो-हेलो-हेलो! … Read more

भेदभाव-मनीषा सिंह

जिद नहीं करते बहू! चलो घर चले••!  नहीं पिताजी! हम लोगों की उस घर में कोई कदर नहीं और जहां इज्जत नहीं वहां जाने से क्या फायदा•••? कहते शीतल की आंखों में आंसू आ गए।   “मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है” तभी तुम लोगों को वापस लेने के लिए आई हूं! चलो घर … Read more

भगवान के घर देर है अंधेर नहीं- मनीषा सिंह ।

“चाचा जी” मुझे नहीं जाना ससुराल! प्लीज मां-बाबूजी को समझाइए कि मुझे वहां नहीं भेजें!  पर हुआ क्या बेटा!जो तू अपने ससुराल नहीं जाना चाहती? बाता तो सही!  सब कुछ बुरा हो रहा है•• कुछ भी सही नहीं है! कहते हुए नीलू रो पड़ी। भतीजी को रोता देख, उसे गले लगा लिया और उसके आंसू … Read more

अस्तित्व- मनीषा सिंह

अजी•• सुनते हो! कल मुझे निकलना है आपको याद तो है ना••?  स्वाति किचन से ऑफिस  के लिए तैयार होते हुए शेखर से बोली।  हां-हां•• मुझे याद है तुम्हें अपनी पैकिंग आज ही करनी होगी!   हां वो तो मैं कर लूंगी पर•• पर क्या? चश्मा लगाते हुए शेखर ने पूछा।    आप मुझे अकेले ‘भोपाल’ भेज … Read more

 तुलना-मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

“अंबा! बापू के बातों का बुरा नहीं मानते•• चल कपड़े बाहर निकाल! राधा अपनी बड़ी बेटी जो पेटी में कपड़े डाल वहां से जाने की तैयारी कर रही थी, से बोली। अम्मा! मुझे रूकने के लिए मत बोल भले ही मैं सन्नो जैसी अमीर घर में नहीं ब्याही गई परंतु मेरा भी कुछ स्वाभिमान है! … Read more

संयुक्त परिवार-मनीषा सिंह

” मैं नहीं रह पाऊंगी यहां••! चार महीने से गर्भवती शक्ति पसीना पोछते पति अनिल के सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली।  अब तनिक आराम तो कर लो श्रीमती जी••! अनिल फौरन शक्ति के पैरों को अपने गोद में रखते हुए बोला । आराम••? ये आराम वाली बात  ना ही बोल तो अच्छा है••! … Read more

रिश्ते प्यार से चलते हैं ना की मजबूरी से -मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

“बस बहुत हो गया संपदा••! तुझे अब वहां जाने की जरूरत नहीं! संपदा की मां सुमित्रा जी गुस्से से  बोलीं ।   ‘मां!आप सही कहती थीं कि मुझे सारांश से शादी नहीं करनी चाहिए! अब मैं पछता रही हूं! कहते हुए संपदा रोने लगी।  बस बेटा! अभी कुछ नहीं बिगड़ा है सब कुछ छोड़-छाड़ के यहां … Read more

बंटवारा – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

मां! बड़ी मम्मी और बड़े पापा आए हैं मैं उन्हें प्रणाम करके आती हूं••! आप भी चलो!  “तुझे जाना है तु जा”पर••वहां बैठने का काम नहीं! फटाफट चली आना! और ज्यादा दादी-नानी बनने की जरूरत नहीं! ठीक है••! उदास होकर अनुष्का वहां से चली गई।  क्यों शादी-शुदा बेटी को डांटती रहती हो ? राजेश बाबू … Read more

ग्रहण-मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

“मुक्ता••! आज तुम दूसरे कमरे में जाकर सो जाओ••!  क्यों•• क्या हुआ ? आपकी तबीयत तो ठीक है ••? हां-हां तबीयत ठीक है ! कुछ प्रोजेक्ट्स सबमिट करनी हैं इसलिए कुछ दिन ऑफिस का काम घर पर ही करूंगा !    मेरे साथ सोने में तुम्हें दिक्कत होगी इसलिए कह रहा हूं ! नजरे चुराते हुए … Read more

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