“विश्वास टूटते देर नहीं लगती” – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

गर्मी की दोपहर थी, पर सरिता जीका मन कुछ और ही तप रहा था। वह आँगन के कोने में बैठी नीम के नीचे रखी कुरसी पर अधलेटी सी थी। पंखा चल रहा था, लेकिन उसके भीतर जो उफान था, वह किसी हवा से नहीं थमता। उसके सामने टेबल पर वही पुराना खत रखा था जो … Read more

“कर्मा लौट कर आते हैं।” – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

सुबह की हल्की धूप में, मालती जी सब्ज़ी खरीदने निकली थीं। घर के कामों की जल्दी, फोन पर बेटी की कॉलेज फीस की चिंता, और पास वाले प्लंबर की बकाया रकम का हिसाब — सब एक साथ दिमाग में घूम रहा था। वो हड़बड़ाहट में सब्ज़ी वाले को पैसे देकर आगे बढ़ गईं। दोपहर में … Read more

माँ होना नाटक नहीं – ज्योति आहूजा 

किरन मोदरां के उस छोटे से घर में पली थी जहाँ दीवारें खुरदरी थीं और सपने कभी पूरे नहीं लिखे गए थे। माँ की रसोई में मसाले भी कर्ज़ के होते थे और बापू की आँखें हर शाम जैसे बुझी सी लगती थीं। बीए की पढ़ाई कर रही थी, लेकिन घरवालों को डर था कि … Read more

विश्वास की डोर – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

ऑफिस में बैठे आलोक के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आया। “हैलो…?” फोन उठाते ही एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी — “भैया… मैं सावित्री बोल रही हूँ।” “अरे, तुम दोपहर में कॉल क्यों कर रही हो? सब ठीक है?” आलोक ने पूछा। “भैया… मैं कल से काम पर नहीं आऊँगी। भाभी से कह … Read more

जब मानवता बोल उठी। – ज्योति आहूजा

अप्रैल 2021 — कोरोना की दूसरी लहर पूरे देश में कहर बरपा रही थी। अस्पतालों में लंबी कतारें, ऑक्सीजन की कमी, और हर घर में चिंता का माहौल था। इन्हीं दिनों संध्या की तबीयत अचानक बिगड़ गई। तेज़ बुखार और साँस की दिक्कत ने  संध्या के पति अमित और पूरे परिवार को घबरा दिया। कोरोना … Read more

शक के दायरे मे सिर्फ़ बहू ही क्यूँ? -ज्योति आहूजा    : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सोमवार की सुबह थी।अचानक से फोन की घंटी बजी। गरिमा ने फोन उठाया। वह काफी देर तक हैलो हैलो बोलती रही। अरे भाई कौन है? जवाब तो दो, गरिमा ने कहा। अरे भाई किसका फोन है? मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है, जल्दी करो। गरिमा के पति आशीष … Read more

बहुत कर लिया बर्दाश्त  –  ज्योति आहूजा

आज सुधा अपनी जिंदगी का वह हिस्सा फिर से याद कर बैठी जिसमें  वह इतनी कमजोर और लाचार थी कि आज भी वह समा उसके जहन में कड़वी याद के रूप में उभर कर सामने अा गया। “बात उन दिनों की है जब सुधा जीवन के उस मोड़ पर थी जब वह ना तो बच्ची … Read more

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