ढलती साँझ – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

“साँझ को तो ढलना ही होता है तो उसके लिए रोना क्या,घबराना क्या ! हम भी तो ढलती साँझ हैं उर्वशी तो क्यों न ढलते-ढलते अपनी लालिमा को सामर्थ्य भर बिखेर जाँय ।” रामेंद्र जी अपनी पत्नी उषा से कह रहे थे । उषा जो अब ज़िंदगी के 62 वें बसंत में थी और रामेंद्र … Read more

पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

शादी के 10 साल बाद राहुल का जन्म हुआ था नितिन और सागरिका के यहाँ । दोनों फूले न समाए थे । दादी-दादा,नानी-नाना सबकी आँखों का तारा था राहुल । उसकी हर इच्छा कहते  ही पूरी कर दी जाती थी । राहुल के जन्म के दो साल बाद उसकी बहन नेहा भी आ गई थी … Read more

माँ जी का ख़ौफ़ – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

सुहासिनी की ज़िंदगी में जैसे विधाता ने उसके लिए ठोकरें और अपमान ही लिखा था । ग़रीब पिता विवाह में अपेक्षित दहेज़ नहीं दे पाए थे इसलिए ससुराल में हमेशा सास-ससुर से उपेक्षा और अपमान ही मिला लेकिन पति का व्यवहार उसके प्रति अच्छा था क्योंकि राजीव ने स्वयँ उससे अपनी मर्जी से  विवाह किया … Read more

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