अपनापन – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

  साक्षी एक पढ़ी-लिखी कुशल गृहिणी थी। उम्र लगभग 42 वर्ष। साक्षी की दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था अपने आसपास की महिलाओं से मिलना-जुलना। यह मिलना-जुलना केवल समय व्यतीत करना मात्र नहीं था। इस तरह से मिलने की एक खास वजह थी। साक्षी को अच्छा लगता था किसी के दुख-दर्द सुनना, उनकी कोई समस्या हो … Read more

प्रेम की गांठ – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

भागीरथी जी थी ठेठ देसी गांव की महिला थीं। जन्म से लेकर ब्याह तक वह गांव में ही पली-बढ़ी। खेती-बाड़ी, गाय दुहना, लिपना-पोतना, चूल्हे पर खाना बनाना आदि काम कई वर्षों तक, उनकी दिनचर्या का हिस्सा रहे हैं। यूं तो उन्हें शहर में बसे वर्षों हो गए।   हर काम में होशियार थी। शहरी जिंदगी … Read more

अंतिम इच्छा – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

“डॉक्टर साहब मैं कब मरूंगी ??” आज जिया राजस्थान अस्पताल में आईसीयू में डॉक्टर शर्मा से यह सवाल पूछ रही थी।  डॉ शर्मा स्तब्ध से जिया की ओर देखने लगे। जिया से इस तरह के सवाल की अपेक्षा उन्हें बिल्कुल नहीं थी।  वह अच्छी तरह से जानते थे की जिया कैंसर की फोर्थ स्टेज से … Read more

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