मेरी तो किस्मत ही फूट गई जो ऐसी बहु मिली। – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

संध्या की सर्दी धूप की बची-खुची तपिश को निगल चुकी थी। रिया का छोटा सा कमरा अब घर का दिल बन चुका था। उसी कमरे में कोने में बैठी बुआजी पुरानी साड़ी को सीधा करके रिया से पूछ रही थीं — “बिटिया, इसमें बॉर्डर बहुत सुंदर है… इससे कुछ और बन सकता है क्या?” रिया … Read more

तिरस्कार कब तक? – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

सुबह का समय था। रसोई में बर्तनों की खनक, गैस पर उबलती चाय, और बाहर से आती बच्चों की चहल-पहल… सब कुछ एक व्यवस्थित ग़ुलामी जैसा था। सीमा रसोई में झुकी हुई थी, हाथ रोटियों में, कान सास की आवाज़ में और मन… मन कहीं गुम था। श्रवण कमरे से बाहर आया। उसके हाथ में … Read more

अब तो पड़ जाएंगी ना तुम्हारे कलेजे में  ठंडक? – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

“मम्मी, मैं साफ-साफ कह देती हूँ, अब मैं वहाँ नहीं रहूँगी!” फोन के उस पार सन्नाटा पसर गया। “आजकल कौन सास-ससुर के साथ रहता है? और वो ननद… मुझे तो फूटी आँख नहीं सुहाती!” पारो की आवाज़ तनी हुई थी। फोन कान से लगाए बैठी सुजाता माथा थामकर रह गईं। “क्या हो गया है तुझे? … Read more

शुभ विवाह – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

चार मंज़िला होटल के बाहर गुलाबी और सुनहरी लाइटें लगातार झपक रही थीं। मुख्य द्वार पर लटकती फूलों की झालरें और लाल कालीन पर खड़े दो लड़के स्प्रे वाली परफ्यूम लेकर हर मेहमान पर “खुशबू का हमला” कर रहे थे। घोड़ी के आगे खड़े ढोल वाले इस तरह ढोल पीट रहे थे, मानो कोई बारात … Read more

प्रायश्चित – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं। गली में बच्चों की मस्ती पूरे शबाब पर थी। कभी कोई पतंग काटता, तो कोई चिल्ला कर उसकी तरफ दौड़ता। गेंदें इधर-उधर लुड़कतीं, और हर नुक्कड़ पर शोरगुल गूंजता रहता। इन्हीं सब के बीच, गली के एक कोने में एक टूटी-सी बेंच पर हर रोज़ एक बूढ़ी औरत बैठती … Read more

 मेरी दोनों बहुएं बहन जैसी रहती है – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

धूप सी सुबह थी। रसोई में हँसी की खनक थी। राधिका बेलन से पूरियां बेल रही थी और अनुजा कड़ाही में हलवा चला रही थी। मसालों की खुशबू, दूध की मिठास और दोनों के बीच की खनकती बातचीत जैसे घर को जीवंत बना रही थी। “देख अनुजा,” राधिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “इस बार तेरे … Read more

 “कितना अद्भुत होता है ना?” : दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

बीज से अंकुर फूटता है, धीरे-धीरे नन्हीं-नन्हीं पत्तियाँ निकलती हैं, फिर कली खिलती है… और अंततः बनता है एक सुंदर पुष्प। कहते-कहते वह खिलखिला उठी, कुछ क्षण रुकी और बोली — “देखो मम्मी, अभी कुछ दिन पहले इस अनार के पौधे में ये रेड-ऑरेंज सी कलियाँ खिली थीं। आज देखो, इसकी एक-एक परत जैसे आत्मा … Read more

आपको बहु नहीं रोबोट चाहिए – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

सुबह के हल्के कोहरे के बीच कॉलोनी की छतों पर धूप अब तक पूरी तरह नहीं फैली थी। घर के भीतर घड़ी की सुइयाँ जैसे सारा की धड़कनों के साथ दौड़ रही थीं। रसोई से उठती चाय की भाप और गीले गैस का धीमा सुलगता स्वर, उस घर की रोज़ की कहानी कहते थे। सारा … Read more

मन की गांठे – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

रितु की नजरें अब भी अख़बार पर थीं, लेकिन अब शब्दों पर नहीं, यादों पर ठहरी हुई थीं। मन में कई अधूरी बातें, कई अनकही शिकायतें कुलबुला रही थीं। अखबार का पन्ना पलटता नहीं था और न ही मन का कोई पन्ना। अपूर्वा उसकी बगल में बैठ गई। एक हाथ में चाय का कप, और … Read more

पत्नी तो में पहले ही बन गई थी पर बहु ओर भाभी आज बनी हूँ – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

प्रेशर कुकर की सीटी लगातार बज रही थी… 1…2…3…5… फिर अचानक दो बार और… जैसे बिन मतलब की हड़बड़ी हो, बेमन की दिनचर्या। रसोई में हल्की-सी हल्दी और धनिया की खुशबू तैर रही थी, पर मनाली की आँखें रसोई की खिड़की से बाहर, सूनी सी सड़कों पर अटकी थीं। उसकी उँगलियाँ आटे से लथपथ थीं, … Read more

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