“बड़ा दिल” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा  : Moral Stories in Hindi

अपना और अपनी पत्नी का सामान दोनों हाथों में टाँगे मैं लंबी -लंबी डग भरते हुए चल रहा था। बीच-बीच में पलटकर देख भी ले रहा था कि विभा मेरे पीछे है या नहीं! कभी-कभी वह बहुत पीछे रह जाती थी तो मैं जोर से आवाज लगा रहा था….विभा…..विभा आ रही हो ना!  वह तुनक … Read more

वक़्त पर अपने ही काम आते हैं पड़ोसी नहीं – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा  : Moral Stories in Hindi

प्राइवेट नौकरी में सब कुछ है पैसा है, रुतबा है, शोहरत है। अगर नहीं है तो बस समय और सुकून नहीं है। आदमी अपने ही घर में पड़ोसी सा हो जाता है। लेकिन किया भी क्या जा सकता है जिंदगी जीने के लिए घर की चौखट लांघ कर परदेसी बनना ही पड़ता है। आज के … Read more

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