ये जीवन हैं – गुरविंदर टूटेजा 

  रीमा क्या कर रही हो अभी गिरती तुम…अजय ने जोर से चिल्लाया..!! तुम्हें तो पता है ना कि इस दिन का मैं कब से इंतजार कर रही थी..आज भूमि पूजन हैं हमारा घर बननें जा रहा हैं…हमें ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिल रही है…!! हाँ भाई पता है मुझे व बच्चों को सबको पता … Read more

जिन्दगी की खुशियां – माता प्रसाद दुबे

शाम के 7,बज रहे थे। रामप्रसाद अपनी ड्यूटी पूरी करके अपने घर पहुंच चुका था। वह राज्य सरकार  में सरकारी ड्राइवर के पद पर कार्यरत था। दिन भर गाड़ी चलाने के उपरांत वह थक कर चूर हो चुका था। मगर यह तो उसकी रोज की दिनचर्या थी। आज वह मानसिक तौर पर परेशान नजर आ … Read more

खुशियों की बहार – पुष्पा जोशी

जिंदगी बहुरंगी होती है, सुख-दु:ख का मेला है.मनुष्य सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है.कई बार समझ ही नही पाता कि सच्चा सुख कहाँ है?कहाँ मिलेगा? उसकी तलाश में भटकता रहता है,  जैसे वह नायाब हीरा हो और उसे वह खोज रहा हो.कई बार इस खोज में ही सारी जिन्दगी बीत जाती है, क्योंकि … Read more

यही तो है जिंदगी – गोमती सिंह

सरिता इकहरे बदन की गौर वर्ण की बहुत ही खुबसूरत लड़की थी।  तीखे नयन नक्स, कमर तक लटकती लंबी मोटी सी छोटी जो सुन्दर सुन्दर बालफूल से सुसज्जित होती थी । माथे पर दमकते बिन्दी तथा मांग सिंदूर से सुशोभित होते थे हांथों पर सुर्ख चूड़ियों की खनक से पूरी गृहस्थी गुंजायमान होती थी ।  … Read more

नई जिंदगी – डाॅ उर्मिला सिन्हा

   शिल्पा ने दोपहर में गेहूं अपने हाथों से  साफ कर आटा पिसवाया  था  फिर रोटियां  किन-किन कैसे हो गई .सब्जी भी उसने बडी़ मन से बनाया था फिर उसमें मिर्चे कहां से आ गयी।शिल्पा ने जरा सा तोड़कर रोटी सब्जी चखा …मुंह का स्वाद बिगड़ गया।रोटी में कंकड़ और सब्जी कड़वी थू थू।      आज फिर … Read more

ये कैसा प्यार – संगीता अग्रवाल

” कितनी खूबसूरत है वो लगता है भगवान ने बड़ी फुर्सत से बनाया है उसे !” राजीव एक तरफ देखते हुए अपने दोस्त नितीश से बोला। ” कौन है वो जिसने हमारे दोस्त के दिल पर कब्जा कर लिया है ?” नितीश मुस्कुराता हुआ बोला। ” यार वो सामने जो खिड़की खुली दिखाई दे रही … Read more

ज़िंदगी “कलंक” नहीं कस्तूरी है – शुभ्रा बैनर्जी

सुगंधा ने ट्रेन छूटते ही बच्चों को फोन पर जानकारी दे दी।आज कॉलोनी की हम उम्र महिलाओं के साथ बनारस जा रही थी,घूमने। बनारस का नाम सुनते ही, जाने क्यों मन बांवरा सा हो जाता था उसका।वैसे बनारस से इश्क़ करने वाली वह पहली और अकेली नहीं थी।बनारस के रस ने ना जाने कितनी जिंदगियों … Read more

सपनों की उड़नपरी – सीमा पण्ड्या

रीमा और उसका परिवार आज शोरूम से  अपनी ड्रीम कार ऑडी ख़रीद कर पूजा करवाने मंदिर जा रहे थे।पिछले तीन दशकों में उसकी और उसके पति की मेहनत और लगन ने एक छोटे से व्यवसाय को एक बहुत अच्छे मुक़ाम पर पहुँचा दिया था।पूरा परिवार बहुत प्रफुल्लित था पर रीमा चुप थी, उसकी आँखें छलछला … Read more

ख्वाहिशें –  मुकुन्द लाल

 जब भी सत्येंद्र दफ्तर में ड्यूटी समाप्त कर साईकिल से डेरे की ओर लौटता तो रास्ते में हमेशा वह सशंकित रहता कि आज न जाने कौन सा लफड़ा हुआ होगा डेरा में। कभी पानी, कभी बिजली, कभी बच्चों के लङाई-झगङे, कभी नाली की सफाई, कभी बाथरूम की गन्दगी… आदि पर अक्सर विवाद होते ही रहते … Read more

सर्दी की धूप – डॉ.पारुल अग्रवाल

मानव घर से ऑफिस के लिए निकला ही था तभी उसने देखा कि एक तरफ की सड़क महिला मुक्ति मोर्चा वालों ने किसी महिला पर अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए बंद कर रखी थी,उनके विरोधाभास के नारे उसके कानों तक भी पड़ने लगे, उनके नारों की आवाज़ ने उसके मन में उथल-पुथल मचा दी … Read more

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