आपकी पत्नी अब कुछ ही महीनो की मेहमान है, काश आप लोग कुछ महीने पहले आ गए होते तो, शायद कुछ किया जा सकता था। डॉक्टर ने अतुल से कहा
अतुल: डॉक्टर! क्या सच में अब कुछ भी नहीं हो सकता? पर उसे इतना तेज़ दर्द पहले तो कभी नहीं हुआ और जिस दिन हुआ मैं उसी दिन ही उसे अस्पताल ले आया, फिर एकदम से ऐसी रिपोर्ट? लास्ट स्टेज? कुछ भी तो दिक्कत नहीं थी दीपा को
डॉक्टर: यह संभव ही नहीं, आप यकीन के साथ कह सकते हैं कि पहले कभी आपकी पत्नी ने दर्द या घुटन की शिकायत नहीं की? क्योंकि यह एकदम से इतना नहीं फैलता, कैंसर का लास्ट स्टेज वह भी पेट में! खाने-पीने में कोई दिक्कत नहीं होती थी क्या उन्हें?
अतुल डॉक्टर के इस बात पर चुप्पी साध लेता है और बीते हुए दिनों को याद करने की भड़सक प्रयास करने लगता है, फिर उसे धुंधला धुंधला सा याद आने लगा के दीपा कभी-कभी पेट दर्द या भूख न लगने की शिकायत तो करती थी, पर हर बार मैं ही उसे कहता था कि गैस बन गई होगी, दिन भर उल्टा सीधा खाती रहती हो तो यह होना तो लाज़मी है,
कभी कह दिया कि चटोरापन कम करो और वह भी दर्द की दवा खाकर इस बात को नजरअंदाज कर देती थी। जितनी बातें अतुल को याद आने लगी, उतना ही वह बेचैन होता चला गया। फिर उसे याद आया उनके बेटे का पांचवा जन्मदिन था और सुबह से दिपा सुस्त दिख रही थी, शाम को पार्टी थी पूरा घर उसी की तैयारी में व्यस्त था।
दीपा भी कुछ ना कुछ कर ही रही थी और बीच-बीच में कभी नींबू पानी, तो कभी छांछ, तो कभी कोई दवा खा रही थी। जिसे देख अतुल ने उसके तबीयत का पूछना तो छोड़ो, उल्टा सबके सामने उसका मज़ाक ही उड़ा दिया। कहा देखो मम्मी, पापा, पार्टी और खाने की बात आती है तो दीपा का कोई जवाब नहीं, पहले खाना खाते रहो, फिर दवा खा लो।
पर खाना कम नहीं कर सकती, बोलकर वह ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। तभी उसकी सास शोभा जी कहती है, बस इसके इसी चटोरे पन की वजह से इसके पेट में हमेशा समस्या रहती है, कभी दर्द, तो कभी भूख ही नहीं लगती, लगेगी भी कैसे?
चार प्रहर का खाना अगर हम एक साथ खा लेंगे, तो भूख कहां से लगेगी? यह कहकर वह भी हंसने लगी, जिससे दीपा रोने लग जाती है, रोते-रोते उसने अतुल से कहा भी, सुबह से पेट में दर्द हैं, खाने को देखकर उल्टी सी लग रही थी। इसलिए कभी नींबू पानी, तो कभी छांछ पी रही थी फिर भी राहत नहीं मिली तो दवा खा लिया, पर आप लोगों को यह सब देखने की फुर्सत कहां?
मैं कितनी भी बीमार रहूं आप लोगों के काम को रुकने नहीं देती, इसलिए शायद मेरी तकलीफ किसी को नज़र नहीं आती, जिस पर अतुल कहता है, अच्छा ठीक है ठीक है, आज तो पार्टी है कल डॉक्टर के पास ले चलूंगा। अगले दिन दीपा ठीक थी, तो अतुल ने कहा, अब पेट दर्द है? दीपा कहती है आज तो नहीं है, पर भूख बिल्कुल भी नहीं है,
जिस पर अतुल चिढ़कर कहता है, क्या भूख भूख करती रहती हो? जब भूख लगेगी तब खा लेना, जब पेट दर्द चला गया तो भूख भी आ ही जाएगी, बेकार में डॉक्टर के पास जाकर हजारों के बिल क्यों बनाना? डॉक्टर तो सारे इसी इंतजार में ही रहते हैं, अल्ट्रासाऊंड, स्कैन पता नहीं क्या-क्या करवाने को बोलकर अच्छा खासा खर्च करवा देंगे, वैसे भी रियांस के बर्थडे पर काफी खर्च हो गया है इस महीने
दीपा: हां हां ठीक हो जाएगा! आप फिक्र ना करो, जाओ ऑफिस के लिए देर हो रही है
फिर एक बार तो दीपा रात को खाने की टेबल से उठकर भागी, उसे उल्टी सी आ रही थी तो, फिर अतुल ने कहा कल सुबह डॉक्टर को दिखा ही लेंगे, फिर अगली सुबह उसने दीपा से कहा कि मुझे आज ऑफिस में काफी ज्यादा काम है, तुम एक काम करो, यह लो पैसे और डॉक्टर गुप्ता से दिखा लो और हां जितना है उतना ही बताना, ज्यादा बढ़ा चढ़ा कर बताने की कोई ज़रूरत नहीं, वरना लंबी चौड़ी दवा की लिस्ट थमा देगा
अब दीपा ने सोचा डॉक्टर के पास जाने से अच्छा है, मैं नुक्कड़ वाले केमिस्ट से बोलकर ही दवा ले आती हूं, कम से कम वह डॉक्टर की फीस और कोई अल्ट्रासाउंड वगैरा तो नहीं बोलेगा। डॉक्टर को सब कुछ बताने के बाद अगर उन्होंने टेस्ट लिख दिया, तो यह मुझ पर ही नाराज़ होंगे, सच ही तो है फालतू के पैसे क्यों खर्च करना? उसके बाद दीपक केमिस्ट से दवा लेकर आ गई। उस दवा से काफी फर्क पड़ा, पर दो-तीन दिनों बाद जैसे ही दवा खत्म हुई, उसकी समस्या फिर से शुरू हो गई। फिर एक दिन उसकी मां का फोन आया उसकी मां ने उससे कहा, बेटी तेरी सहेली अनु अब इस दुनिया में नहीं रही
दीपा: क्या? पर यूं अचानक क्या हुआ था मां उसे?
मां: अरे डॉक्टर ने उसे दूसरा बच्चा लेने को मना किया था। इससे उसके जान को खतरा था, पर उसके पति और ससुराल वालों के दबाव में आकर, बेटे की लालच में, उनके तानों से बचने के लिए उसने डॉक्टर की बात को नजरअंदाज़ कर दिया, हम औरतें अपने बारे में कब सोचती हैं? हमें लगता है पति और ससुराल वालों को खुश रखना ही सर्वोपरि है और अंत में नतीजा यह निकलता है।
अब देखो एक दूधमुहे शिशु को अकेला छोड़कर चली गई, अब क्या उसके पति और सास को कोई फर्क पड़ेगा? कुछ दिनों बाद ही उसका पति एक और ब्याह कर लेगा, उसकी सास को भी नई बहू मिल जाएगी, पर शायद ही उसके बच्चों को उसकी मां मिल पाएगी। अब क्या ही कर सकते हैं? हम औरतों को बनाया ही ऐसा है भगवान ने।
फोन रखते ही दीपा एक गहरी चिंतन में खो गई। वह सोचने लगी क्या सच में हम औरतें बस एक कठपुतली है? पहले माता-पिता के पसंद को सर्वोपरि रख, अपने सपनों को कुचल देती है, फिर शादी के उपरांत सब की सेवा करते-करते अपने स्वास्थ्य को भी राम भरोसे छोड़ देती है। क्यों हम अपने आप को महत्व नहीं देते. आखिर हमें भी जीवन एक ही बात तो मिला है।
तो क्यों उसका ध्यान हम नहीं रख पाते? हमें लगता है हमारे पीछे हमारे परिवार का क्या होगा और परिवार वाले बस यही सोचते हैं इसके न रहने से हमारी देखभाल कौन करेगा? सब अपना ही सोचते हैं तो हम भी क्यों ना अपने लिए सोचे? यही सोचते सोचते उसके पेट में तेज़ दर्द हुआ और वह चिल्लाने लगी, तभी उसे अतुल डॉक्टर के पास ले गया, जहां उसके सारे जांच के बाद कैंसर का लास्ट स्टेज बताया गया। आज अतुल बस पछतावे के आंसू बहा रहा था और वही दीपा बिलकुल स्वाभाविक थी।
उसकी ऐसी हालत देखकर अतुल उससे कहता है, माफ कर दो दीपा, आज मेरी लापरवाही तुम्हारी जान पर बन आई, हर वक्त तुमसे कहता था, तुम चटोर हो, दवा खा लो, पर आज मुझे खुद पर इतना गुस्सा आ रहा है कि क्या बताऊं? पर तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा, बड़े से बड़ा इलाज करवाऊंगा
दीपा: पर अब फालतू खर्च नहीं होगा क्या? अरे जब मुझे जाना ही है तो इतना खर्च क्यों करना? भला क्यों बचाना चाहते हो आप मुझे? ताकि आपको कोई तकलीफ ना हो, दूसरी पत्नी ले आना वह आपका ध्यान ऐसे ही रखेगी और रियांश को हॉस्टल भेज देना, क्या पता उसे नई मम्मी पसंद करें ना करें, क्योंकि भले ही मैं इस दुनिया में ना रहूं, पर रियांस की तकलीफ मुझे उस दुनिया में भी चैन से नहीं रहने देगी।
अतुल: चुप करो दीपा! यह सब पागलों जैसी बातें क्यों कर रही हो? तुम्हें कुछ नहीं होगा, मैं अपने कामों के लिए तुम्हें चाहता हूं ऐसा कैसे सोचा तुमने? वैसे तुम्हारा गुस्सा करना बनता है, काश! मुझे एक मौका मिलता यह साबित करने के लिए मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं? पर वह मौका में लाने की पूरी कोशिश करूंगा। तुम्हारे इलाज के लिए अगर मुझे अपने आप को भी बेचना पड़े तो भी, मैं पीछे नहीं हटूंगा
दीपा अतुल के इस बात पर, उसके कानों में जाकर कहती है, पर आपको खरीदेगा कौन? अतुल उसे हैरानी से देखने लगता है, तभी वह ज़ोर से हँस पड़ती है, अतुल सोचता है शायद अपने मरने की खबर जानकर यह अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है।
फिर दीपा कहती है, मैं कहीं नहीं जाने वाली, वह तो यह सब मैंने आपको सबक सिखाने के लिए किया था। वह डॉक्टर मेरा दोस्त है और सारे रिपोर्ट फर्जी। अनु के मौत ने मुझे एक सबक सिखाया, हम औरतें पूरी उम्र अपने परिवार के लिए जीती है और उन्हीं के लिए मर भी जाती हैं। हमारे जाने के बाद कुछ दिन तो शोक मनाया जाता है। फिर हमारी जगह किसी और को दे दिया जाता है। इसमें भी गलती हमारी ही है। जब हम ही खुद की परवाह नहीं करेंगे तो दूसरे क्यों करेंगे? तो अब मैंने भी ठाना है, अब अपनी जिम्मेदारी खुद ही उठाऊंगी
अतुल: सच कहो दीपा यह सब मजाक ही था ना? मेरी तो जान ही निकाल दी थी तुमने! तुम नहीं जानती इन दिनों में पल-पल मर रहा था। आज जान में जान आई। बड़ी खतरनाक पत्नी हो तुम यार! सबक ऐसे सिखाया जाता है क्या? उफ्फ, कैंसर? वह भी लास्ट स्टेज और कोई बीमारी का नाम नहीं मिला तुम्हें?
दीपा: आप पति भी तो कम खतरनाक नहीं हो, मेरे इतना कहने पर भी मेरा बस मज़ाक ही उड़ाते थे, तो बदला तो लेना ही था ना? फिर दोनों गले मिलकर हंसने लगते हैं…
दोस्तों, हर इंसान प्रभु की हाथ की कठपुतली ही होता है। पर वह हमारे निर्माता है, उनका हक बनता है हमें चलाना और वह हमारी भलाई के लिए ही हमें अपनी दिशा में चलाते हैं, पर औरतें तो हर किसी की हाथ की कठपुतली बन जाती है और अपने सुख-दुख की चाबी, कभी इस हाथ तो कभी उस हाथ देकर खुद ही अपने अस्तित्व को विलुप्त कर देती है। इसके दोषी हम खुद हैं, मौका तो हमने ही दिया ना? आपकी क्या राय है इस विषय में? बताइएगा ज़रूर
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
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