और वह नहीं गई – शिव कुमारी शुक्ला 

रोज की भांति झुमकू भी अपना उदास चेहरा लिए घड़ा उठा पनघट की ओर चल दी। ठंड के दिन थे। सूर्य अपनी प्रखर किरणों के साथ आसमान में कुछ ऊपर चढ़ आया था किन्तु सर्दी के कारण उसकी निस्तेज किरणें आंगन में बिखर गईं थीं। हवा की ठंडी लहरें कलेजे को चीर रहीं थीं। ग्रामीण महिलाओं के सिर पर रखे पीतल के घड़े ऐसे चमक रहे थे मानो स्वर्ण कलश जगमगा रहे हों। कुंआ गांव के बाहर था। जैसे ही महिलाओं के समूह ने गांव में प्रवेश किया कुछ दूर चलने पर ही पोस्टमेन ने झुमकू के हाथ में किशन का तार कहते हुए लिफाफा थमा दिया।

किशन का तार देखते ही झुमकू के दिल की धड़कन तेज हो गई और उसके साथ ही उसके कदम भी तेजी से उठने लगे।वह क्षण मात्र में ही घर पहुंचना चाहती थी।साथिनों को छोड़ वह अकेली ही आगे बढ़ गई। इस समय उसकी मनोदशा बेकाबू हो रही थी।कभी उसके मन की वीणा के तार झनझना उठते शायद वो आ रहे हों या उनकी युद्ध में जीत हुई हो या मुझे बुलाया हो।मन में तरह-तरह के विचार आकर पानी की लहरों के समान बनने बिगड़ने लगे।उसका रोम-रोम खिल उठा था।तार में उसे साक्षात किशन छुपा लग रहा था जो खोलते ही बोल पड़ेगा।

घर पहुंचते ही द्वार पर से ही आवाज लगाई मां जी, मां जी उनका तार आया है चौपाल जाकर जरा मास्टर जी से पढ़वा लो क्या लिखा है अपनी ही रौ में झुमकू बोले जा रही थी 

क्या है बहू,? धन्नो की आवाज ने उसकी विचारधारा तोड़ी। एक साठ वर्षीय वृद्धा अपने असक्त पैरों पर अपने शरीर के 

भार को लगभग ढोते हुए आई।

तार मां जी।

किसका।

और किसका हो सकता है। चौपाल जाकर जरा जल्दी पढ़वा लाईए।मेरा मन आशंकित हो रहा है।

तार किशन का तार कहती हुई मां जी आईं।उन्होंने झुमकू के हाथ से तार का लिफाफा छीन लिया और खोई सी वहीं बैठ गईं।

झुमकू को तो जल्दी थी तार खोलने की पर मां जी थीं कि वहां से उठने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। मां जी की सांस जैसे रूक रही थी और झुमकू का एक -एक पल कटना मुश्किल हो रहा था।

भावनाओं की सरिता मर्यादा के किनारों की परवाह नहीं करती। झुमकू की उत्सुकता आग्रह और अनुरोध में परिणित हो गई -मां जी जाइए ना तभी पांच बर्ष का बालक बिशन भी  खेलता हुआ वहां आ गया,वह कभी मां को देखता कभी दादी को देखता सहमा सा खड़ा हो गया।

किन्तु मां जी ***उनके स्मृति के पंख अतीत की ओर फड़फड़ा कर उड़ चले। और दादी मौन , उनकी आंखें अतीत की किताब के पृष्ठ पढ़ने में लग गईं।

आज से ठीक तीस बर्ष पूर्व शहनाई की गूंज के साथ इस घर में वह दुल्हन बन कर आई थी। उसे अच्छी तरह याद है वह इस घर में तारों की छांव में आई थी। हाथों में मेहंदी, पांव में महावर और तारों सी झिलमिलाती लाल‌ चूनर ओढ़े सकुचाई सी, शर्माई सी, और कुछ घबराई सी घर की ड्योढ़ी पर गृहप्रवेश के लिए खड़ी थी।

परिवार में बूढ़ी सास और पति जग्गू के सिवा कोई नहीं था। जग्गू भी उसके प्यार में सारी दुनियां को भूल सा गया था। जग्गू ने उससे कहा था सच धन्नो मैं तेरे बिना जीवित नहीं रह सकता। तेरे लिए संसार की हर चीज छोड़ सकता हूं।कितनी अधूरी थी यह जिंदगी तेरे बिना ।सच पूछो तो आज****।

झूठे कहीं के बातें बनना खूब आतीं हैं।

धन्नो के कानों में ये शब्द गूंज रहे थे उसे ऐसा लग रहा था कि अभी बात हो रही है।

जग्गू को पाकर धन्य हो उठी थी।पूरे गांव में उसके जैसा कोई भी तो नहीं था ऊंचा पूरा छः फुट का बलिष्ठ जवान, कंधे सिंह सरीखे, चौड़ी छाती। किसी भी काम को हाथ में लेता तो पूरा करके ही दम लेता।काला हुआ तो क्या हुआ दुनियां में दो ही तो रंग होते हैं। कृष्ण भी तो श्याम वर्ण थे।

स्मृति के पृष्ठ पलटते गये*****।  एक दिन फिर बाजे बज उठे धन्नो के आंगन में। पड़ोसी स्त्रीयों ने बधाई दी। धन्नो का मन नये अनुभव और पुलकन से भरता जा रहा था।सास खुशी से फूली-फूली फिर रही थी। बहुत दिनों बाद भगवान ने यह शुभ दिन देखने का मौका दिया। धन्नो मां बनने वाली थी। उनका प्रेम रूपी पुष्प फल में विकसित हुआ और उसकी गोद में किशन था। उसके अरमानों का साकार रूप, बूढ़ी दादी की लाठी का सहारा।उस दिन सुबह सुबह ही धन्नो के आंगन में थाली की गूंज उठी और पूरे गांव में फ़ैल गई । जग्गू चांद के टुकड़े से बेटे का बाप बन गया। धन्नो और जग्गू के सुखी संसार में एक खिलौना आ गया।समय पंख लगा कर उड़ने लगा।आंगन बच्चे की किलकारियों से गूंजने लगा। बच्चे को पाकर जैसे धन्नो के सारे सपने साकार हो गये।उसका स्त्री जन्म सफल हो गया क्योंकि हर स्त्री का जीवन तभी सफल है जब वह मां बने।हर नारी ममता और स्नेह का स्त्रोत होती है।वह चाहती है कि उसकी ममता फूले-फले,महके और महकाती रहे संसार को।

पृष्ठ पलटता गया*****एक साल बाद ही उसकी शांत स्थिर सागर सी जिन्दगी में एक तूफान आ गया जिसने उनके जीवन सूत्रों को तितर-बितर कर दिया।

उस समय संसार द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका में जल रहा था और भारत भी उसकी लपटों से अछूता नहीं बचा था क्योंकि वह ब्रिटिश शासन के अधीन था और उसकी आंच इस छोटे से गांव तक आई। गांव -गांव से लोग टिड्डीयों की तरह फौज में भर्ती करे जा रहे थे। जग्गू का गांव भी पीछे नहीं रहा लगभग पचास व्यक्तियों ने भर्ती के लिए नाम लिखवाया और कस्बे में जाकर जांच पड़ताल पूरी करवा आए। जग्गू इस सबमें अगुआ रहा।

मां मुझे फौज की ट्रेनिंग के लिए हुक्म आ गया है कल सुबह को जाना होगा।यह कहकर जग्गू ने शांत झील में एक बड़ा सा कंकड उछाल दिया। एक तीव्र हलचल सी हुई।

फौज कैसी बहकी-बहकी बातें करने लगा है। क्या अपने खानदान में किसीने बन्दूक चलाई है। तुझे यह फौज का भूत कैसे सवार हुआ। बेटा तूने कभी बन्दूक भी हाथ में नहीं उठाई तू लाठी को पकड़ने वाला बन्दूक उठाना क्या जाने।

मां, वहां पहले मुझे बन्दूक और दूसरे हथियार चलाना सिखायेंगे और फिर मैं लड़ूंगा ।

तुझे हथियार चलाना सीख कर क्या लेना-देना, चुपचाप अपना काम कर मां ने झिड़कते हुए कहा।

पर जग्गू ने उत्साह से कहा था हथियार चलाना इसलिए सीखूंगा कि अभी तो अंग्रेज़ खुद सिखा रहे हैं क्योंकि उन पर विपदा आन पड़ी है।जब हम सीख जाएंगे तब उन्हीं से लड़कर उन्हें देश से बाहर निकाल कर अपने देश को आजाद कराएंगे।

तब मां ने व्याकुल स्वर में कहा था नहीं बेटा मैं तुझे नहीं जाने दूंगी।तू मेरी बूढ़ी आंखों का तारा है नहीं मैं लड़ाई पर नहीं जाने दूंगी। मेरे पास बुढ़ापे में कौन है।

जग्गू ने कितने आत्मविश्वास से कहा था -मां तेरे पास धन्नो है तेरी सेवा करेगी और मैं भारत मां की सेवा में जाऊंगा।

नहीं बेटा जैसे -तैसे मेरे तू ही तो एक बेटा है। भगवान न करे तुझे कुछ हो गया तो मैं***आगे के शब्द उसके गले में अटक गये थे। आंखों से अश्रुओं की धार बह निकली थी।वे उसके मुंह पर पड़ीं झुर्रियों के बीच रास्ता ढूंढती हुई बह रही थीं। उसके आंसू उसके आंचल को गीला कर रहे थे।

जग्गू ने फिर ढांढस बंधाते हुए कहा था मां तू रोती है। तुझे एक अपनी चिंता है। एक अपनी धन्नो के सुहाग की चिंता है पर मां यहां तो सवाल तेरा नहीं, धन्नो के सुहाग नहीं भारत मां का है। मां यदि वह सुरक्षित है तो भारत की सब माताएं सुरक्षित हैं। भारत की सब सुहागिनों का सुहाग अमिट है,अमर है मां।

बेटा तुझमें इतनी शक्ति है, अपने देश के लिए यह तो मैं आज जान सकी मां ने कहा था।

मां तू एक बहादुर बेटे की मां होकर भी अपने बेटे को नहीं पहचान सकी। मां तू रोती क्यों है सब लड़ते हैं कोई सब मर थोड़े ही जाते हैं और यदि मर भी गया तो किशन है ना तेरे पास।

जग्गू ने कितना साहस बंधाने का प्रयत्न किया था। धन्नो भी वहीं पास में खड़ी सब सुन रही थी।लड़ाई पर जाने की बात सुन उसका कलेजा मुंह को आ रहा था। चुप खड़ी किशन को गोद में लिए भविष्य की आशंका से कांप रही थी। जैसे ही जग्गू उसके पास आया आंसुओं का बांध टूट गया।

जग्गू ने उसे रोते देख कहा तू रोने लगी मेरी बात तो सुन।

नहीं मुझे कुछ नहीं सुनना उसकी बात को काट कर धन्नो बीच में ही बोली मैंने सब सुन लिया है, मैं नहीं जाने दूंगी।

मेरी बात तो सुन अपने कंधे पर रखे उसके आंसू से भरे चेहरे को ऊपर उठाते जग्गू बोला था।

नहीं मैं नहीं जाने दूंगी। मैं इस घर में अकेली नहीं रह सकती।

अकेली क्यों है, मां है, किशन है। इसे सम्हालने में, इसके साथ खेलने में ही तेरा सारा समय व्यतीत हो जाएगा।

नहीं भगवान ना करे तुम्हें कुछ हो गया तो*****आगे वह बोल ना सकी।

यह सुन जग्गू भी एक क्षण चुप रहा।ना जाने कितने विचार उसके हृदय में उठे और बिखर गए उस एक क्षण में ही। फिर किशन को उसकी गोद से लेते हुए कहा यह मेरी निशानी तो तेरे पास रहेगी। बिल्कुल मेरा ही प्रतिरूप है इसे ही सम्हालना। हिम्मत रख धन्नो मैं शीघ्र ही लौट आऊंगा। सरकारी हुक्म के पहले हमें बफादारी दिखाने दो। जानती है तू एक सेना के बाहदुर जवान की पत्नी बनने जा रही है। तुझे स्वयं पर नाज होना चाहिए और फिर मैं जल्दी आ भी तो जाऊंगा तब तक के लिए किशन तुम्हारे साथ है।देखो उसे रूलाना मत आजकल बडा ही जिद्दी हो गया है और सुन इस दीवाली पर शहर से उसके लिए पटाखे मंगाना मत भूलना। शायद तब तक मैं ना आ सकूं 

धन्नो चुपचाप सुनती रही उसका साहस जबाब दे चुका था धैर्य आंसुओं में डूब चुका था।तो क्या दीवाली पर भी छुट्टी नहीं मिलेगी वह बड़ी कठिनाई से बुदबुदाई। धन्नो का सिसकना बंद नहीं हो रहा था।

रो मत धन्नो मेरे सामने मेरी भारत मां का प्रश्न है केवल तेरे जीवन का नहीं। मैं इस युद्ध में जाकर वह सब सीखूंगा जो मुझे बाद में मेरी मां को आजाद कराने में मदद करेगा।तू भी भारत मां की आजादी के बारे में सोच।उन पत्नियॉ की ओर देख जो अपने पतियों को इस मुहिम पर भेज चुकी हैं। तुम एक नारी हो और उन नारियों के दुख को मुझसे ज्यादा समझ सकती हो अपने आंसू बहा कर अपनी कायरता मत दिखाओ। धन्नो सिसकती रही।

दूसरी प्रातः ही जग्गू तोपों की गड़गड़ाहट और गोलीयों की बरसात में अपने जीवन की बाजी लागाने चल दिया।गाड़ी आ गई थी अन्य लोगों के साथ जग्गू भी छोटा सा बिस्तर और टूटी सी टीन की पेटी रखकर जाने को तत्पर था।

मां ने भारी दिल से,पर धन्नो ने

सिसकते -सिसकते विदा किया था किशन इन बातों से अनजान अपनी ज्ञान शून्य आंखों से देख रहा था। मुस्करा रहा था। जग्गू उसे चूम कर चल दिया।

उसे विदा करते समय धन्नो की आंखों में जो भाव था वह शब्दों में वर्णन से परे है। पत्र लिखने का आश्वासन वह मां और धन्नो को देकर चल दिया।वे दोनों खड़ी-खड़ी अपलक उसे जाते तब तक निहारतीं रहीं जब तक गाड़ी उसे लेकर आंखों से ओझल नहीं हो गई। क्रमशः 

शिव कुमारी शुक्ला 

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

जोधपुर राजस्थान 

लेखिका बोनस प्रोग्राम 

कहानी संख्या एक

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