अस्तित्व- मनीषा सिंह

अजी•• सुनते हो! कल मुझे निकलना है आपको याद तो है ना••? 

स्वाति किचन से ऑफिस  के लिए तैयार होते हुए शेखर से बोली।

 हां-हां•• मुझे याद है तुम्हें अपनी पैकिंग आज ही करनी होगी! 

 हां वो तो मैं कर लूंगी पर••

पर क्या? चश्मा लगाते हुए शेखर ने पूछा। 

  आप मुझे अकेले ‘भोपाल’ भेज रहे हैं•• क्या आप मेरे साथ नहीं जा सकते ? कितने साल हो गए हमें साथ गए हुए! 

तब बच्चों की वजह से हम साथ नहीं जा पाते कभी आपको मौका मिलता तो आप अकेले ही निकल जाते और जब मुझे मिलता तो मैं आपके बगैर जाना नहीं चाहती लेकिन अब तो जा सकते हैं ना?

स्वाति उदास होते हुए बोली।

“कमाल है! शायद तुम डरपोक हो इसलिए अकेले जाना नहीं चाहती! कब तक “स्पून फीड” लेती रहोगी? अब खुद भी तो अपनी जिम्मेदारियों को समझो!

जूते की लेसेज को बांधते हुए शेखर स्वाति से बोला।

 क्या कहा आपने कि मैं अपनी जिम्मेदारियों से भागती हूं और डरपोक हूं इसलिए अकेले जाना नहीं चाहती••?

तो ये आपकी गलत सोच है!  

” मैं अकेली कहां थीं “•••जब बच्चे हमारे साथ थे

चाहती तो किसी एक को साथ ले जा सकती थी परंतु नहीं ••मुझे तो आपकी उपस्थिति और आपका साथ दोनों चाहिए था !

सोचती•• जब आप फ्री होंगे तब हम इकट्ठे पूरे परिवार••साथ चलेंगे और यात्रा का मजा लेंगे पर आपने तो मुझे डरपोक की उपाधि दे डाली!

 स्वाति शेखर के लंच बॉक्स को बैग में डालते हुए बोली।

 ठीक है•• चलो सॉरी! पर अपनी जिम्मेदारियां खुद लेना सीखो! बच्ची नहीं हो!

 कहते हुए शेखर ऑफिस के लिए निकल गया।

 शेखर के जाते ही स्वाती अपने अतीत में खो गई।

शादी के पहले दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे।

जान-पहचान बढ़ते ही दोनों में दोस्ती और फिर बात शादी तक आ गई। परंतु शेखर के परिवार वालों को एक सिंपल बहू चाहिए थी और इधर स्वाति के मम्मी-पापा  को यह कतई पसंद नहीं था कि स्वाति अपनी जॉब से कोई कंप्रोमाइज करें। 

“यार” मैं क्या करूं? मॉम-डैड एकदम तैयार नहीं है कि मैं जाब छोड़ू!

और तुम•••? शेखर स्वाति के उलझे बालों को सुलझाते हुए बोला।

” मैं तो तुम्हारे लिए जॉब क्या दुनिया भी छोड़ सकती हूं”!

बस-बस आइंदा इस तरह की बात मत किया करो! शेखर स्वाति के होंठों पर अपनी उंगली रखते हुए बोला।

 तो फिर क्या करूं तुम ही कुछ बताओ? स्वाति थोड़ी विचलित सी होते हुए बोली।

 चलो कोई बात नहीं अभी सब कुछ ऐसे ही चलने देते हैं! शादी के बाद तुम जॉब छोड़ देना!तब तक मैं अपने मां-पापा को समझा दूंगा!

थैंक्स शेखर! तुम्हारे सुझाव के लिए! चहकते हुए स्वाति शेखर से लिपट गई।

 शादी के कुछ महीने बाद ही परिवार के दबाव में आकर उसने ने जॉब छोड़ दीं। 

बेटा यह तूने अच्छा नहीं किया••? क्या इसलिए हमने तुझे इतना पढ़ाया- लिखाया कि तू दूसरों पर निर्भर रहे? 

स्वाति की मम्मी उर्मिला जी बेटी से फोन पर बात कर रही थीं। 

“मां’! मैं जानती हूं कि•• आप लोगों को मेरा जाब छोड़ना पसंद नहीं आया होगा! 

पर अब मुझे इन लोगों के पसंद का भी  ख्याल रखना होगा ना? क्या आप अपनी बेटी को सुयोग्य बहू के रूप में देखना नहीं चाहेंगी ? स्वाति इठलाते हुए बोली।

हां-हां हमारी बेटी अब बड़ी हो गई है!

कहते हुए उर्मिला जी हंस पड़ी।

 समय के साथ स्वाति दो बच्चों की मां बनी। दोनों बच्चों में महज 2 साल का अंतर था इस वजह से वह घर गृहस्ती में उलझती चली गई। कभी सास-ससुर की तबीयत तो कभी बच्चों का पालन-पोषण। धीरे-धीरे बच्चे भी स्कूल जाने लग गए। 

अब शेखर की ट्रांसफर बेंगलुरु हो गई थी सो वह भी सास-ससुर सहित बेंगलुरु आ गईं। नई जगह ,नए अनुभव के साथ वह वहां भी अपनी गृहस्थी की नाव को आगे बढ़ाने में लग गई ।

 समय बितता गया बच्चें भी अब सेटल हो गए और सास-ससुर भी इस दुनिया को अलविदा कह गए।

मैंने जिंदगी के २२ साल इन्हें और इनके परिवार को समर्पित कर दिया! अपनी जाब और अपनी करियर सब कुछ छोड़कर वह सब करती रही जो इन्होंने चाहा!

 बदले में मैंने अपना #अस्तित्व तो गवाया ही साथ में “डरपोक” की उपाधि से मुझे सुशोभित किया जा रहा है!

 आंखों में आये आंसू को पोंछते हुए वह मन में एक फैसला ले, कल की तैयारी में लग जाती है।

शाम में शेखर जब घर लौटा तो-  स्वाति! आज तुमने दिन भर में एक बार भी कॉल नहीं किया? शाम तक तो तुम्हारा मुझ पे कई कॉल्स आ जाते कि रात में डिनर क्या बनेगा••यह तो तुम जरूर पूछती हो!

 ‘ हां आज मुझे जो समझ आया वह मैंने बना दिया सोचा रोज-रोज तुमसे क्या पूछना! स्वाति खाने का प्लेट शेखर के सामने रखते हुए बोली।

 हां हां बिल्कुल सही किया थोड़ी देर सोचते हुए शेखर बोला ।

स्वाति किचन की सफाई करने लगी तभी शेखर किचन में आता है-

 पैकिंग हो गई ?अगर नहीं तो लाओ मैं पैकिंग में तुम्हारी मदद कर दूं!

 वह सब मैंने कर लिया है स्वाति दूध का गिलास उसे थमाते हुए बोली।

 अच्छा! वेरी गुड! 

कल 12:00 बजे ही तुम्हें निकलना होगा क्योंकि 1:00 बजे तुम्हारी ट्रेन है! मैं कल जल्दी ऑफिस के लिए निकल जाऊंगा ताकि मेरा ड्राइवर मुझे पहुंचा कर तुम्हें स्टेशन छोड़ आए!

 इसकी भी जरूरत नहीं मैंने गाड़ी बुक कर ली है वह कल 11:30 में आ जाएगा कहते हुए स्वाति किचन की लाइट्स ऑफ कर बेडरूम में चली आई।

 वो मैंने स्कूल में जॉब के लिए अप्लाई कर दिया है!

आने के बाद ज्वाइन कर लूंगी!

 शेखर स्वाति को टकटकी निगाहों से देखता रहा शायद शब्द नहीं थे उसे बोलने के लिए•• लेकिन ग्लानि जरूर थी ।

दोस्तों अक्सर हस्बैंडस वाइफस  की भावनाओं और उसके इमोशंस को समझ नहीं पाते जैसा कि स्वाति के साथ  हुआ।

 हम औरतें अपना सब कुछ परिवार के लिए सैक्रिफाइस करतीं हैं  तो  उनको भी चाहिए कि वह हमारे इमोशंस की कद्र करें। उनकी वैल्यू समझे •• ना की ससुराल की लायबिलिटीज को पूरा करते-करते  उन्हें डरपोक की उपाधि दी जाए कि वह अकेले कुछ नहीं कर सकतीं। 

 यह सब को पता है कि औरत हर काम करने में सक्षम हैं अगर वह घर ‘सजाना’ जानती हैं तो ‘कामना’ भी जानती हैं।

 इसलिए भावनाओं को  समझे साथ चलने की कोशिश करें ताकि कोई मिसअंडरस्टैंडिंग्स पैदा ना हो! 

दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स कमेंट्स और शेयर जरूर कीजिएगा ।

 धन्यवाद ।

मनीषा सिंह

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