अस्तित्व – सुनीता परसाई ‘चारु’ : Moral Stories in Hindi

नीलू अलसाते हुए बिस्तर पर पड़ी थी। उसका उठने का मन नहीं कर रहा था।तभी चाय लेकर आते हुए भावना बोली -”आज उठना ही नहीं है क्या मैडम नीलू ! सोते ही रहना है क्या?चलो उठो गरम-गरम चाय पी लो।”

नीलू अंगड़ाई लेते बोली’ “क्यों परेशान कर रही है सुबह-सुबह। आज मैं पहली बार अपने अस्तित्व को समझ पायी हूंँ, और जी भर के शांति से जीना चाहती हूँ। मुझे मेरी मर्जी  से तू तो जीने दे। उठ जाऊंँगी तब पी लूंँगी चाय।”

 भावना बोली,” ठीक है जैसी तेरी मर्जी मैं तो पी रही हूंँ “।नीलू की भी नींद तो खुल गई थी, वह भी उठकर चाय की चुस्की लेते हुए बोली,”वाह भावना क्या चाय  बनाई है। चाय पी कर मजा आ गया। नींद भाग गयी। ताजगी आ गई। नीलू और भावना बचपन से साथ पढ़ी थी। पक्की सहेली थीं।एक ही कालोनी में रहती थी।

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नीलू की शादी जल्दी हो जाने से उसकी पढ़ाई रुक गई थी। भावना पीएचडी करके एक कॉलेज में लेक्चरर बन गई थी।

नीलू होशियार सुंदर सुशील कन्या थी। वह पीएचडी कर रही थी तभी उसके लिए एक अच्छा रिश्ता आया। लड़का इंजीनियरिंग था, सरकारी नौकरी में था। माँ पिताजी ने शादी करवा दी।नीलू बोलती रही गई “मुझे पढ़ लेने दो” पर उसकी किसी ने नहीं सुनी।

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  शुरूआत में सब अच्छा चलता रहा,नीलू बहुत  खुश थी । सासू मां  उसे पीएचडी  करने के लिए प्रोत्साहित करती थी। परन्तु पति को पसंद नहीं था उसका पढ़ना। “माँ को मदद करो” यही कहता। क्या करोगी पढ़-लिख कर।कौन सी नौकरी करना है”। धीरे-धीरे सब कुछ बदलता गया।नीलू के पति नरेंद्र को शराब पीने की लत लग गई। ऊपरी कमाई में खूब पैसा आने लगा था। नीलू का पति उससे मारपीट व गाली गलोच करने लगा। नीलू समझाती पर वह नहीं मानता था।

नीलू का जीवन दो साल में ही नर्क बन गया था।

सासु माँ जो उसे प्यार करती थी। उनकी अचानक हार्ट अटैक में चली गई।ससुर तो नीलू की शादी के पहले ही दुनिया से चले गये थे।

रोज-रोज की पति की मार से परेशान हो वह मायके आ गई थी।

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 जब नीलू ससुराल से मायके वापस आ गयी थी तब भावना ने उसे बहुत समझाया  पीएचडी करने के लिए, फॉर्म भरने को कहा था। तब नीलू की माँ कहने लगी “शादी में ही इतना पैसा खर्च हो गया है।” तभी भाभी बोली,”और यह फिर हमारे ऊपर बोझ बनकर आ गई है हमारे अपने क्या कम खर्चे हैं दो बच्चों की पढ़ाई,घर का किराया। माताजी की दवाई,अब हम लोग और कहां से पैसे लाये”।तब नीलू से भावना  ने कहा मैं तेरा खर्चा उठाऊंगी, तू चिंता मत कर।

भावना एक बड़े घर की बेटी थी। वह शादी नहीं करना चाहती थी कॉलेज में पढ़ाती थी और 10-12 अनाथ बच्चों की वह माँ बन गयी थी। उसका बचपन बिन माँ के बीता था।इस लिए उसने बिन माँ के बच्चों को सम्हालने का निश्चय किया था।

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समय के साथ नीलू की एचडी हो गई और नीलू  भावना के साथ अनाथालय में हाथ बंटाने लगी थी। बेटी की उजड़ी गृहस्थी  देख कर नीलू की माँ चिंता में बिस्तर लग गई और तीन महीने में नीलू का साथ छोड़ गयी। मम्मी के गुजरने के बाद से नीलू बहुत बुझी-बुझी सी रहने लगी थी।वह होशियार थी, उसने कड़ी मेहनत कर पीएचडी कर ली।

उसे एक अच्छे कॉलेज में लेक्चरर का पद मिल गया था। भावना उसे अपने साथ रहने के लिए कह रही थी। परन्तु नीलू ना-नुकुर कर रही थी। नीलू प्रतिदिन भावना के अनाथाश्रम जाने लगी थी। सब बच्चे उससे बहुत खुश रहते थे।उसे देखते ही “नीलू मौसी आ गई”कहते हुए लिपट जाते थे। नीलू उनके साथ घुल-मिल गयी थी।

 दो महीने के इन्तजार के बाद नीलू को लेक्चरर पद का नियुक्ति पत्र मिला था।

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  कल नीलू की नौकरी का पहला दिन था। उसने निर्णय किया कि अब मैं भावना के साथ ही रहूंँगी। रात को ही वह अपना सब सामान लेके भावना के घर आ गई थी। भाभी को आते समय  उसने कहा,” भाभी आपने मुझे बहुत सहारा दिया, मैं आपका यह एहसान कभी चुका नहीं पाऊंगी, बस एक छोटा सा मेरा निवेदन है मना मत करना।

 “मन्नू की पढ़ाई का पूरा खर्चा अब मैं दूंँगी।” 

भाभी स्तब्ध सी नीलू को जाते देखती रह गई।

 सुनीता परसाई ‘चारु’

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