“अस्तित्व ” – सुदर्शन सचदेवा : Moral Stories in Hindi

असली अस्तित्व  वही होता है , जो हमारे अंदर की पहचान से जुड़ा होता है , न कि बाहर की पहचान से | जैसे पैसा, नाम या नौकरी |

कोई कहे मेरा अस्तित्व खत्म हो गया है, यानि मेरी पहचान  मेरी अहमियत समाप्त हो गई है | 

अस्तित्व की तलाश :

शहर की भागती दौड़ती जिंदगी में अनु एक साधारण और सीधी सादी लड़की एम एन सी में काम करती है | नौ से छ: तक आफिस था , लेकिन हमेशा थकी थकी सी लगती थी | उसके जीवध में सब कुछ  था , पैसा, मकान और सोशल मिडिया में लाइकस | 

खुश धहीं थी वो खुद से| खुद को देखती , तो ऐसे लगता जैसे मुंह पर मास्क पहन रखा हो | एक दिन खुद से सवाल किया कि ”  मैं कौन हूं “, जो दिख रही हूं , क्या मैं वो हूं |

उस रात उसने फोन साइलेंट पर रखा और लेपटॉप  बंद कर , पुराने स्कैच बुक निकाली और उसको घूर रही थी , # अधुरी # ” अधुरी सी तस्वीर,  जैसे उसका जीवन ही अधुरा ! उसने स्केचिंग शुरु कर दी | न ई प्रोफाइल बनाई ” soul:by:Anu.

स्केचिंग पूरी की उसे फिर सकून मिला | फ्रेम करवा कर है़ग कर दी | 

उसकी पहचान नौकरी से नहीं, उसकी सोच में है|

पहली बार उसने अस्तित्व का मतलब पाया |

जब उसने दूसरों की नज़रों से देखना छोड़ दिया और खुद को पहचाना , तब अस्तित्व का असली मतलब पहचाना , थोड़े दिन पहले कह रही थी # मेरा तो अस्तित्व ही नहीं है ,अब कहती है मेरे जैसा कोई नहीं है |अब उसमें आत्मविश्वास था |

अस्तित्व  सिर्फ  “होने”  में नहीं है , बल्कि जैसे हम हैं ” वैसे” बने रहने में हैं 

सुदर्शन सचदेवा

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