असली अस्तित्व वही होता है , जो हमारे अंदर की पहचान से जुड़ा होता है , न कि बाहर की पहचान से | जैसे पैसा, नाम या नौकरी |
कोई कहे मेरा अस्तित्व खत्म हो गया है, यानि मेरी पहचान मेरी अहमियत समाप्त हो गई है |
अस्तित्व की तलाश :
शहर की भागती दौड़ती जिंदगी में अनु एक साधारण और सीधी सादी लड़की एम एन सी में काम करती है | नौ से छ: तक आफिस था , लेकिन हमेशा थकी थकी सी लगती थी | उसके जीवध में सब कुछ था , पैसा, मकान और सोशल मिडिया में लाइकस |
खुश धहीं थी वो खुद से| खुद को देखती , तो ऐसे लगता जैसे मुंह पर मास्क पहन रखा हो | एक दिन खुद से सवाल किया कि ” मैं कौन हूं “, जो दिख रही हूं , क्या मैं वो हूं |
उस रात उसने फोन साइलेंट पर रखा और लेपटॉप बंद कर , पुराने स्कैच बुक निकाली और उसको घूर रही थी , # अधुरी # ” अधुरी सी तस्वीर, जैसे उसका जीवन ही अधुरा ! उसने स्केचिंग शुरु कर दी | न ई प्रोफाइल बनाई ” soul:by:Anu.
स्केचिंग पूरी की उसे फिर सकून मिला | फ्रेम करवा कर है़ग कर दी |
उसकी पहचान नौकरी से नहीं, उसकी सोच में है|
पहली बार उसने अस्तित्व का मतलब पाया |
जब उसने दूसरों की नज़रों से देखना छोड़ दिया और खुद को पहचाना , तब अस्तित्व का असली मतलब पहचाना , थोड़े दिन पहले कह रही थी # मेरा तो अस्तित्व ही नहीं है ,अब कहती है मेरे जैसा कोई नहीं है |अब उसमें आत्मविश्वास था |
अस्तित्व सिर्फ “होने” में नहीं है , बल्कि जैसे हम हैं ” वैसे” बने रहने में हैं
सुदर्शन सचदेवा