अस्तित्व – रेखा सक्सेना : Moral Stories in Hindi

संध्या एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थी। वह दिन भर ऑफिस की भागदौड़ और घर की जिम्मेदारियों में खुद को झुलसता महसूस करती, पर फिर भी हिम्मत नहीं हारती। सुबह 6 बजे उठकर बच्चों का टिफिन, सास-ससुर की दवाइयां, पति के नाश्ते की तैयारी… सब कुछ समय पर निपटाकर वह खुद जल्दी-जल्दी तैयार होती और भागते हुए ऑफिस जाती।

ऑफिस में वह एक कुशल अधिकारी मानी जाती थी। उसकी मेहनत, समझदारी और नेतृत्व क्षमता की तारीफ सभी करते थे। लेकिन घर और समाज की नजरों में वह सिर्फ एक ‘कामकाजी औरत’ थी, जिससे अपेक्षा थी कि वह नौकरी के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी भी पूरी तरह निभाए — बिना थके, बिना शिकायत किए।

शाम को ऑफिस से लौटते समय जब वह थकी-हारी घर पहुंचती, तो सास का ताना सुनने को मिलता – “काम तो बहू करती है, लेकिन घर के कामों में ध्यान नहीं देती। पहले की औरतें नौकरी नहीं करती थीं, फिर भी घर संभालती थीं।”

पति विनय भी अक्सर उसकी थकावट को अनदेखा करते हुए कहते, “तुम्हें तो ऑफिस में AC में बैठना होता है, फिर इतनी थकी-थकी क्यों लगती हो?”

संध्या चुप रह जाती। उसे समझ नहीं आता, जब वह ऑफिस के मीटिंग्स में सीनियर्स से प्रशंसा पाती है, तो घर में क्यों उसे हमेशा कमतर आंका जाता है?

एक दिन बच्चों की स्कूल में ‘मदर्स डे’ पर बुलावा आया। संध्या ने छुट्टी ली, बच्चों के साथ स्कूल गई और उनकी परफॉर्मेंस देखकर भावुक हो गई। बच्चों ने कहा, “मां, आप सुपरहीरो हो, जो ऑफिस और हमारा घर दोनों संभालती हो।”

उसकी आंखें भर आईं। यही तो था उसका असली पुरस्कार।

उसी शाम घर लौटकर उसने निर्णय लिया – अब वह सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठाएगी, अपने अस्तित्व के लिए भी खड़ी होगी।

रात के खाने के बाद संध्या ने परिवार के सामने खुलकर बात की –

“मैं इस घर की बहू, पत्नी और मां हूँ, लेकिन सबसे पहले मैं एक इंसान हूँ। मेरी भी थकावट होती है, मेरी भी भावनाएं होती हैं। आप सबकी जरूरतों का ध्यान रखती हूँ, पर मेरी जरूरतों को भी समझा जाए। अगर हम सब मिलकर एक-दूसरे का साथ दें, तो यह घर और भी सुंदर बन सकता है।”

विनय को पहली बार अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने शर्मिंदा होकर कहा, “माफ करना संध्या, मैं तुम्हें समझ नहीं पाया। अब से घर के कामों में मैं भी हाथ बंटाऊंगा।”

सासू माँ भी थोड़ी नरम पड़ीं – “तू सही कहती है बहू, हम तुझे बहू बनाकर अपने पुराने मापदंडों में तौलते रहे, लेकिन अब समझ में आता है कि कामकाजी महिला होना कोई अपराध नहीं, बल्कि साहस है।”

धीरे-धीरे घर का माहौल बदल गया। विनय बच्चों के होमवर्क में मदद करने लगे, सासू माँ रसोई में सहयोग देने लगीं। संध्या अब न केवल ऑफिस बल्कि घर में भी सम्मान और सहयोग का अनुभव करने लगी।

Rekha saxena

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