अन्वी ने एमबीए किया था और गुरुग्राम की एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर मार्केटिंग मैनेजर काम करती थी। स्मार्ट, आत्मनिर्भर और संवेदनशील सोच वाली अन्वी ने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद उसकी ज़िंदगी एक बिल्कुल अलग मोड़ ले लेगी। जब उसका रिश्ता रोहन से तय हुआ, तो सबने कहा, “लड़का तो समझदार है, लेकिन परिवार थोड़ा पारंपरिक है।” अन्वी को लगा कि समझदारी और संवाद से सब ठीक हो जाएगा।
शादी के बाद जब वह रोहन के घर आई, तो सबने उसका खुले दिल से स्वागत किया। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीते, वो ‘स्वागत’ धीरे-धीरे ‘उम्मीदों’ और ‘परंपराओं’ के बोझ में बदलने लगा। सुबह जल्दी उठकर पूरे घर के लिए चाय बनाना, नाश्ता तैयार करना, सासु माँ के मंदिर की पूजा में शामिल होना, सास-ससुर के कपड़े प्रेस करना — और फिर ऑफिस निकलने की तैयारी।
कई बार ऑफिस देर से आने पर ताने मिलते, “बहू को तो घर की ज़िम्मेदारी पहले निभानी चाहिए। नौकरी तो लड़कों के लिए होती है।” अन्वी सुनती रही, लेकिन झुकती नहीं थी। वह जानती थी कि जवाब बहस से नहीं, व्यवहार से दिया जाता है।
उसने एक नई रूटीन बनाई — घर के काम में सास-ससुर और रोहन को शामिल किया। रोहन को चाय बनानी सिखाई, सासु माँ के साथ मिलकर हर शनिवार को बाजार जाना शुरू किया, और ससुर जी की दवाइयों को मोबाइल ऐप्स पर ऑटो-रिमाइंडर सेट किया। धीरे-धीरे घर के लोग भी उसके साथ बदलने लगे।
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एक दिन सासु माँ ने देखा कि अन्वी ऑफिस के बाद एक NGO के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास ले रही थी। उन्होंने चुपचाप दरवाज़े से देखा और कहा, “इतनी थकान के बाद भी दूसरों के लिए समय निकाल लेती हो?” अन्वी ने मुस्कुराकर कहा, “थकान तो तब होती है जब काम में दिल न लगे। जब काम और सेवा दोनों साथ हों, तो सुकून मिलता है।”
धीरे-धीरे अन्वी का “अस्तित्व “परिवार की नज़रों में ‘केवल एक बहू’ से बहुत आगे बढ़ गया। अब घर के किसी फैसले से पहले उसकी राय ली जाती। ऑनलाइन बिजली बिल से लेकर पोते की स्कूल ऐडमिशन तक, हर बात में उसकी सलाह ली जाने लगी |
एक दिन मोहल्ले में किसी महिला ने सुमित्रा देवी से कह दिया, “आपकी बहू को तो हमेशा मोबाइल पर ही देखा है, खाना बनाने का वक़्त मिलता है क्या?”
सुमित्रा देवी ने बिना गुस्से के जवाब दिया, “वो उसी मोबाइल से ही मेरा ब्लड प्रेशर चेक करती है, दवाई मंगवाती है, हमारे लिए हेल्थ इंश्योरेंस भी करवाया है। खाना हम सब मिलकर बना लेते हैं, पर उसकी सोच और मेहनत से हमारा घर टिका है।”
रोहन को भी अब अपनी पत्नी की काबिलियत पर गर्व था। वह दोस्तों से अन्वी की बात करता और बताता कि किस तरह उसने सब कुछ संतुलित रखा है
अन्वी की कहानी हमें सिखाती है कि “स्वयं को खोए बिना भी, परंपरा और आधुनिकता का मधुर संगीतमय संतुलन संभव है।”
विचार देकर, व्यवहार सीखाकर, और अपने आप पर भरोसा रखकर वह न सिर्फ घर में बल्कि समाज में अपनी एक चित्रित पहचान बनाने में सफल हुई।
प्रीती श्रीवास्तवा