अस्तित्व – प्रीति श्रीवास्तवा : Moral Stories in Hindi

शारदा देवी की आँखें मंदिर के सामने बैठे-बैठे भर आई थीं। उनकी हथेलियों में जपमाला थी, पर मन जप में नहीं, अपने बिखरे हुए घर में उलझा हुआ था। हर दिन जैसे एक ही वाक्य उनके होंठों से निकलता – “हाय राम! मेरी तो तक़दीर ही फूट गई जो ऐसी बहू इस घर में आई।”

एक समय था जब शारदा देवी का घर एक आदर्श घर माना जाता था। पति स्वर्गवासी हो चुके थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे रवि को बहुत ही मेहनत से पाला, उसे इंजीनियर बनाया, संस्कार दिए, और अपनी सारी इच्छाएं कुर्बान कर दीं ताकि बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो सके। शारदा का सपना था कि रवि की शादी एक ऐसी लड़की से हो जो इस घर को और रोशन कर दे।

और फिर आयी नीलम…

शादी बहुत धूमधाम से हुई। रिश्तेदारों ने तारीफों के पुल बांधे – “क्या बहू लाई है शारदा! रूप भी है, पढ़ाई भी है, और आधुनिक भी दिखती है।”

पर समय के साथ जैसे नीलम का असली चेहरा धीरे-धीरे सामने आने लगा। शुरू-शुरू में तो शारदा ने सोचा, “नई-नई लड़की है, समय लगेगा ढलने में।” लेकिन नीलम की बातें कुछ अलग ही इशारा करने लगीं।

उसने आते ही घर के नियमों को बदलना शुरू कर दिया – “माँ जी, सुबह-सुबह उठकर पूजा करना अब पुराना तरीका है…,” “मैं रसोई में अकेले नहीं करूंगी, रवि भी हाथ बंटाएगा…,” “आपको हर बात में बोलने की क्या ज़रूरत है माँ जी?” और धीरे-धीरे, वह रवि को भी अपनी बातों में लेने लगी।

रवि, जो कभी माँ के बिना एक दिन नहीं रह सकता था, अब माँ की बातों को नज़रअंदाज़ करने लगा। अगर शारदा कुछ कहतीं, तो नीलम उसे “पुराने ख्यालों की औरत” कहकर हँस देती।

“माँ, तुम हर बात में टोकती क्यों हो? नीलम जो करती है, ठीक ही करती है,” रवि एक दिन चिल्ला पड़ा था।

शारदा का दिल टूट गया था। वो मां थी, जिसने अपने हिस्से का दूध छोड़कर बेटे को दूध पिलाया था, वो मां जिसने सर्दी-गर्मी नहीं देखी, बस बेटे की भलाई सोची थी। और आज वही बेटा… उसी मां की आँखों में तिरस्कार दिखा रहा था।

नीलम ने रसोई पर भी कब्जा जमा लिया। जो खाना पहले शुद्ध देसी घी में बनता था, अब उसमें विदेशी सॉस और मिर्चें मिलने लगीं। सुबह की आरती, तुलसी पूजन, सब धीरे-धीरे खत्म हो गया। घर में अब ना घंटी की आवाज़ आती, ना भजन बजते।

शारदा को सबसे ज्यादा चोट तब लगी जब नीलम ने शारदा देवी से अलग होने की मांग की।उसने रवि से कहा “ मुझे माँ जी के साथ नहीं रहना lमुझे, हर समय टोका-टाकी करती हैं।”

रवि ने बिना एक पल सोचे माँ के आंसुओं को नजरअंदाज करते हुए उनकी रसोई से लेकर कमरा तक छीन लिया।

अब शारदा देवी का दिन मंदिर में बीतता था। वहीं बैठकर वो भगवान से सवाल करती थीं – “क्या यही वो बहू थी जिसके लिए मैंने व्रत किए थे? क्या यही वो घर था जिसे मैंने अपने खून-पसीने से सींचा था?”

रिश्तेदारों का आना-जाना भी बंद हो गया था। सब कहते, “अब इस घर में पहले जैसी बात नहीं रही।” कुछ ने तो सीधे कह दिया – “बहू बड़ी तेज है।” लेकिन शारदा अब किसी से कुछ नहीं कहती थीं। उन्होंने अपनी तक़दीर को चुपचाप स्वीकार कर लिया था।

एक दिन पड़ोस की माला चाची आईं और बोलीं, “शारदा बहन, अब तो ज़माना ही बदल गया है, बहुएं अब सास को सास नहीं, बाधा समझती हैं।”

शारदा ने एक फीकी मुस्कान दी और कहा, “बात ज़माने की नहीं है बहन… बात तो उस संस्कार की है जो अब मिटते जा रहे हैं।”

और शारदा देवी… वो अब बस हर सुबह मंदिर में बैठकर यही कहती हैं –

“हाय राम, मेरी तो तक़दीर ही फूट गई जो ऐसी बहू इस घर में आई….

लेकिन किस्मत को कौन जानता है?

एक दिन अचानक नीलम के पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई। अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। रवि ऑफिस के काम से दस दिन के लिए बाहर चला गया था इसलिए शारदा देवी नीलम के साथ अस्पताल गई। अस्पताल में पहुंचकर शारदा ने ही सारा कागज़-पत्तर संभाला, दवाइयाँ लाईं, डॉक्टर से बात की।

पापा की अचानक तबियत खराब होने के वजह से नीलम का दिमाग बिल्कुल सुन्न सा हो गया था | उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे ,वो तो बस सिसकती रही। पहली बार शारदा ने उसकी आंखों में बेबसी देखी। उन्होंने नीलम को दिलासा दिया तुम चिंता मत करो बेटी तुम्हारे पापा को कुछ नहीं होगा हम लोग है ना | वो बिल्कुल ठीक हो जाएंगे|

रात को जब नीलम के पापा की तबिया थोड़ा संभली और वो होश में आ गए , तो नीलम ने शारदा के पैरों पर गिरकर कहा, “माँजी, आज अगर आप न होतीं तो मैं टूट जाती। मुझे माफ़ कर दीजिए, मैं इस घर को कभी समझ ही नहीं पाई।” उसके आंसुओं में सच्चाई थी।

शारदा ने उसे गले लगाते हुए कहा, “बेटी, घर तेरा भी है। मैं चाहती थी तू बेटी बनकर रहे, पर तू तो ••••।” उस दिन के बाद से सब बदल गया”।

एक महीना बीता। घर में खुशियों ने फिर से दस्तक दी। नीलम ने एक दिन शारदा के पास बैठाकर कहा, “माँ, मैं कुछ बताना चाहती हूँ।”

“क्या बात है बेटी?”

“मैं प्रेग्नेंट हूँ।”

शारदा देवी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन तभी नीलम ने कुछ और कहा, “लेकिन मम्मी, मेरी एक शर्त है। मैं चाहती हूँ कि मेरा बच्चा उसी तरह की परवरिश पाए जैसी आपने रवि को दी है। और मैं आपसे सब कुछ सीखना चाहती हूँ।”

ये सुनकर शारदा के आँखों से आंसू बह निकले। जिसे शारदा अपनी किस्मत का दुख मान रही थी, वही बहू उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई।

आज वही नीलम जो सुबह नौ बजे तक बिस्तर से नहीं उठती थी, अब सुबह उठ कर पूजा करती है , शारदा देवी को चाय लाकर देती है। रसोई में शारदा के साथ खड़ी होकर उनकी रेसिपी लिखती है। और हर त्यौहार पर खुद से सारे घर की सजावट करती है

एक दिन शारदा अकेले बैठे_ बैठे यह सोच रही थी कि परेशानियां भी 

 हमें कुछ सिखाने आती है। मेरी बहू नीलम ने मुझे ये सिखाया कि इंसान बदल सकता है — बस उसे अपनाने की और समझने की ज़रूरत होती है।

अब तो शारदा भगवान से यही कहती है कि

 “मेरी किस्मत फूट नहीं गई थी”… बल्कि भगवान ने मुझे एक बेटी दी थी, बस थोड़ा समय लग गया उसे बहू से बेटी बनाने में ।”

प्रीति श्रीवास्तवा

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