अस्तित्व –  लक्ष्मी त्यागी : Moral Stories in Hindi

तुम कहाँ तक पढ़ी हो ?कामायनी जी ने अपने घर में काम कर रही, लड़की से पूछा। 

ज्यादा कुछ नहीं ,आठवीं तक पढ़ाई की है। 

क्यों, आगे क्यों नहीं पढ़ पाईं ? उन्होंने उत्सुकता से पूछा। 

कुछ देर वह चुप रही और पोछा लगाती रही,कामायनी जी ने अपने आपको ही समझाया ,रही होगी इसकी कोई मजबूरी !तभी तो यहाँ काम करने आने लगी। उसे देखकर सोच रहीं थीं -वैसे बड़ी समझदार है, किसी के घर जाएगी, उसके तो भाग्य ही खुल जायेंगे। जब पहली बार मेरे यहाँ काम के लिए आई थी। तब भी बड़ी साफ -सुथरी लग रही थी और इसे देखकर लग रहा था,इसकी कोई मजबूरी ही होगी ,तभी काम मांगने आई है। मैंने पूछा था -और कहीं भी काम करती हो ?

हाँ , शर्मा जी के यहाँ ,आपके पीछे जो घर है, उनके यहाँ ,आप उनसे पूछ सकती हैं ,बातचीत से तेज सी लगी तभी मन में डर हुआ कहीं चोरी -चकारी न करे। एक बार उन लोगों से पूछना ही बेहतर है ,जब उन्होंने बताया -लड़की ,अच्छा काम करती है ,अच्छी है ,तब मैंने भी इसे रख लिया था।बात तो सही थी ,आते ही सब संभाल लिया।  

अभी मैं ये सब सोच रही थी ,तब  वो बोली -मैडम !आप तो खूब पढ़ी -लिखी हैं। 

हाँ ,मैंने अपने विषय में मास्टरी की है ,मैंने शोध किया है ,अपनी योग्यता पर उस समय थोड़ा अभिमान सा  आ गया ताकि उसे लगना चाहिए मैंने जीवन में क्या हासिल किया है ?

उसके पश्चात क्या किया ?उसने  फिर से पूछा। 

फिर क्या ?मैं कॉलिज में पढ़ाने लगी ,मुझे बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता था।

 कुछ देर वो यूँ ही चुपचाप रही और उसने पूछा- इतनी पढ़ाई के पश्चात भी ,आपको पैसे कमाने के लिए किसी की नौकरी करनी पड़ी। 

हाँ ,तो शिक्षा एक अलग चीज है ,उससे ज्ञान मिलता है और पढ़ाना ,ये रोज़गार है ,कोई भी व्यक्ति हो पढ़ा -लिखा हो या कम पढ़ा -लिखा ,अपने जीवन यापन के लिए, सबको परिश्रम करना पड़ता है ,कमाना पड़ता है ,मैंने उसे समझाते हुए कहा। 

क्या क़िताबी ज्ञान ही जरूरी है ?जीवन भी तो पल -पल हमें बहुत कुछ सिखाता रहता है ,जो किताबों में नहीं होता।

 मैं उसे देख रही थी ,वो कहना क्या चाहती है ?

 हो सकता है ,किताबी ज्ञान दफ्तरों में काम आता हो किन्तु आजकल के बच्चे न जाने क्या पढ़ रहे हैं ? मकान नंबर २०३ में उनके बच्चे ठीक से हिसाब नहीं लगा पाते ,सुना है ,बड़े -बड़े सवाल हल करते हैं किन्तु कुछ हिसाब जो मैं अँगुलियों पर गिन लेती हूँ उसके लिए वो लोग “कैल्कुलेटर “का इस्तेमाल करते हैं,वो व्यंग्य से बोली।  

उसके मुख से यह शब्द सुनकर मैं चौंक गयी ,अब आप सोच रहीं हैं ,मैं यह शब्द कैसे बोल पाई ?इसमें कोई विशेष बात नहीं है। मैं सभी पढ़े -लिखे परिवारों में ही ,काम करती हूँ। मैं आगे नहीं पढ़ पाई क्योंकि मुझे पढ़ना ही नहीं था। पढ़ -लिखकर भी वो लोग अपने आपको समझ नहीं पाते ,वे जीवन में क्या चाहते है ? चाहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मैं ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी। हर इंसान भाग रहा है ,पता नहीं ,नौकरी के लिए या अपने आपको पहचानने का प्रयास कर रहा हैं। मैं जानती हूँ ,जैसा वो करता है या करना चाहता है वो हो नहीं पाता। किन्तु मुझे पता है, मुझे क्या करना है ? मुझे अब तक के जीवन ने जो कुछ भी सिखाया है ,वो मेरे जीवन में ,आगे काम आने वाला है। आप लोगों से शिक्षा का महत्व समझा इसीलिए कुछ किताबें इम्तिहान के लिए नहीं, ज्ञान के लिए पढ़ती हूँ किन्तु उससे पेट नहीं भरता। पेट तो परिश्रम से और कुछ नया करने से ही भरेगा।” हम सभी को अपने -अपने अस्तित्व की तलाश है।”

 क्या पढ़ -लिखकर बाहर चले जाना ,माता -पिता को भूल जाना ,अथवा उन्हें जरूरत पर याद करना ,क्या यही हमने अपनी शिक्षा से सीखा ? मैंने आपको पढ़ते -लिखते देखा है ,उन कहानियों में आप अपने आपको ढूंढती हैं ,क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ? मैं ज्यादातर ऐसे घरों में ही काम करती हूँ ,जहाँ पढ़े -लिखे बच्चे, माता -पिता को छोड़कर चले गए ,जब उनकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है। हो सकता है ,उनकी भी मजबूरियां रहीं होंगी किन्तु मैं अपने लिए पढ़ी किसी कम्पनी के लिए नहीं ,ज्यादा पढ़ -लिख जाती तो अपने घर -परिवार से दूर हो जाती।

 मैं भी कमा रही हूँ ,सुबह छह बजे से दोपहर बारह बजे तक मेरी ड्यूटी होती है,अपने  हिसाब से काम करती हूँ। चौदह -पंद्रह हजार कमा लेती हूँ ,हाँ ये बात अलग है ,मैं दफ्तर की कुर्सी पर नहीं बैठती ,मेरी शुरुआत छोटी है किन्तु सपने बड़े !मैं हर उस जगह  होती हूँ ,जहाँ मेरी जरूरत होती है।

पढ़ -लिखकर बीस बरस के पश्चात जब बच्चे सोचते हैं ,अब हमें क्या करना है ?तब तक मैं एक मंजिल तय कर चुकी होंगी ,वो विश्वास से बोली।  

मैं उसे गरीब और नादान समझ, सोच रही थी- इसे समझाउंगी किन्तु आज उसने मुझे जीवन का बहुत बड़ा पाठ समझा दिया था ,सच ही तो है ,जीवन उसकी पाठशाला है ,उसकी सोच उसकी लगन ,करने का जज़्बा अवश्य ही वह जीवन में कुछ करना चाहेगी तो करके रहेगी। लग रहा था ,जैसे उसने अपने आपको  ढूंढ़ लिया है ,तब वह अपना लक्ष्य पाकर रहेगी। 

कई बार हम पढ़े -लिखे होकर भी ,उस गहराई को समझ नहीं पाते ,जो” जीवन ज्ञान” समझा देता है ,अपने उस अधिकार के लिए लड़ नहीं पाते क्योंकि हम सभ्य हैं ,ज्ञानी हैं किन्तु आज भी उस ‘अस्तित्व’ की तलाश है जो वास्तव में होना चाहिए।   

        स्वरचित – लक्ष्मी त्यागी

#अस्तित्व

Leave a Comment

error: Content is protected !!