आज अचानक मीना ने अपनी मालकिन अनुराधा के पास आकर कहा, “मैडम मैं कल से काम पर नहीं आऊंगी।”
अनुराधा ने बड़े ही चिंतित स्वर में पूछा, “अरे मीना क्या हो गया? क्यों नहीं आएगी?”
“मैडम मैं गाँव जा रही हूँ, मेरे मायके।”
“लेकिन इस तरह अचानक? क्या कोई इमरजेंसी …?”
“नहीं मैडम जी मेरा पति मुझे हर रोज़ मारता है,” कहते हुए वह बेचारी रो दी।
“मारता है …क्यों मारता है?”
“बिना किसी गलती के, बस शराब पी लेता है और फिर नशे में आकर मारने लगता है। कल रात भी उसने मुझे बहुत मारा। मैं कोई उसकी मार खाने के लिए थोड़ी उसके साथ रहती हूँ। उसकी नजरों में मेरा कोई मान सम्मान नहीं है। बच्चों के सामने मुझे मारता है। गाली भी बकता है। तब मुझे लगता है उसकी नज़रों में मेरा तो वजूद ही नहीं है। मैं कोई नहीं हूँ … कुछ भी नहीं हूँ।”
“हाँ बिल्कुल ठीक कह रही हो तुम। इस तरह हाथ उठाने का हक़ किसी को नहीं होता। परंतु तुम्हारे बच्चे मीना …? बच्चों का क्या …?”
” बच्चों को मैं उनके बाप के पास ही छोड़ कर जा रही हूँ। करने दो उसे सब कुछ। मैं किस तरह काम करके चार पैसे कमाती हूँ। कैसे घर चलाती हूँ और कैसे बच्चे पालती हूँ, उसे पता ही नहीं है। पता चलने दो उसे। तब उसे आटे दाल का भाव पता चलेगा।”
अनुराधा ने पूछा, “क्या वह कुछ भी नहीं कमाता जो तुम्हें इतने घरों में काम करना पड़ता है।”
“मैडम वह जो भी कमाता है ज़्यादातर शराब में ख़र्च कर डालता है। यदि पैसे मांगो तो लात और घूसों से मारता है। बच्चे उसके भी तो हैं ना मैडम जी, उसका भी फ़र्ज़ है ना उन्हें कमा कर खिलाने का?”
“हाँ तू ठीक कह रही है मीना पर तेरे इतने सारे काम है वह सब छूट नहीं जाएंगे?”
“छूट जाने दो मैडम जब घर परिवार ही छूट रहा है तो काम का क्या रोना रोऊँ? काम तो आगे पीछे मिल ही जाएगा।”
“ठीक है मीना तू अपना ख़्याल रखना और कुछ काम हो तो कहना। यह ले ₹1000 रख ले तेरे काम आएंगे।”
मीना पैसे लेते समय और भी फफक कर रोने लगी।
उसने कहा, “मैडम क्या मेरी कोई औक़ात ही नहीं है? क्या मैं उसके हाथ से पिटने के लिए उसके साथ रहूँ? आप पढ़ी-लिखी हैं मैडम जी, आप ही बताइए मेरा निर्णय सही है या ग़लत?”
” मीना तेरा निर्णय एकदम सही है। दरअसल जब उसने तुझे पहली बार मारा था तभी तुझे उसे चेतावनी दे देनी चाहिए थी। पर खैर कोई बात नहीं जब जागे तब सवेरा। तू सच में किसी की मार खाने के लिए नहीं है, तू चली जा।”
अनुराधा की बात सुन कर मीना ने अपने इरादे को और अधिक पक्का कर लिया। वह अपने गाँव जहाँ से ब्याह कर आई थी वहीं वापस चली गई।
उसके माता-पिता अपनी बेटी के लिए सुख और दुख के बीच कहीं खो गए थे। वे दुखी इसलिए थे कि उनकी बेटी का परिवार टूट रहा है और ख़ुश इसलिए थे कि मार खाकर उनकी बेटी ससुराल में आख़िर क्यों रहे? अच्छा ही हुआ जो वह वापस आ गई। यदि उसके पति को ज़रूरत होगी तो वह ख़ुद उसे लेने आएगा।
मीना के पिता ने अपनी पत्नी से कहा, “अरे पारो हमारी मीना का अच्छी तरह से ध्यान रखना। उसे यहाँ किसी भी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए समझी।”
पारो ने कहा, “यदि आप नहीं कहते तो भी मैं वही करती”
उधर मीना का पति शम्भू अब अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ अकेला था। आज सुबह जब वह सो कर उठा तो घर में दोनों बच्चे सो रहे थे। पत्नी तो घर पर थी नहीं, उसने सोचा चलो चाय बनाता हूँ। उसने अपने लिए चाय चढ़ाई ही थी कि उसका 3 साल का बेटा जाग गया। वह जागते ही रोने लगा। शम्भू घबरा गया। उसने लपक कर उसे गोदी में उठाया तो वह अपनी माँ को पुकार कर और भी ज़्यादा ज़ोर से रोने लगा।
अपने बेटे को संभालने के चक्कर में चाय पूरी गैस पर गिर पड़ी। शम्भू को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? कैसे करे? इसी तरह सुबह से रात तक उसका काम काज जारी रहता। कुछ काम हो पाते, कुछ नहीं।
अब धीरे-धीरे उसे अपनी पत्नी मीना की कमी महसूस होने लगी। जिसे वह अपने सामने कुछ समझता ही नहीं था। जिसकी इज़्ज़त शम्भू की नजरों में दो कौड़ी की थी, आज उसकी वही इज़्ज़त उसे लाखों की लग रही थी। वह ना तो अपनी नौकरी ढंग से कर पा रहा था, ना ही बच्चों की देख भाल ठीक से हो रही थी। वह बहुत परेशान रहने लगा।
आज उसे अपनी पत्नी की ज़रूरत महसूस हो रही थी। उसका महत्त्वपूर्ण योगदान उसे याद आ रहा था। वह समझ गया था कि अपनी पत्नी के ऊपर अत्याचार करके उसने कितनी बड़ी गलती की है। उसे मीना पर इस तरह से हाथ नहीं उठाना चाहिए था। उसने तो बच्चों के सामने ही उसे मारा है, गाली तक बकी है। वह मीना के प्यार को,
उसके त्याग और मेहनत को हमेशा केवल उसकी मजबूरी समझता रहा। लेकिन आज जब वह घर में नहीं है तो उसकी कमी पता चल रही है। उसने सोचा अब अपना अहं छोड़कर उसे मीना को मना कर वापस ले आना चाहिए। बहुत देर हो जाए उससे पहले ही अपनी गलती सुधार लेना चाहिए। यह विचार आते ही वह अपनी पत्नी को लेने उसके गाँव पहुँच गया।
अपने ससुर को आँगन में खड़ा देखकर उसके हाथ पांव कांप रहे थे।
शम्भू को देख कर मीना के पिता को बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह जानते थे कि एक स्त्री के बिना घर चलाना कितना मुश्किल और दुःखदायी होता है।
उन्होंने शम्भू से पूछा, “अब यहाँ क्यों आए हो?”
शम्भू ने हिम्मत की और दोनों हाथ जोड़कर उनसे कहा, “बाबूजी मुझे माफ़ कर दीजिए। मेरे अंदर पति और पुरुष होने का घमंड था। मैं मीना को कुछ समझता ही नहीं था किंतु आज उसके बिना, उसकी अहमियत मेरे सामने आ गई है। मुझे माफ़ कर दीजिए मैं आपसे वादा करता हूँ आगे से ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं होगी। मैं समझ गया हूँ की पत्नी का स्थान भी पति के बराबर ही होता है। अब से मीना को भी घर में उतना मान सम्मान मिलेगा जितने की वह हक़दार है।”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)