रूपा की आँखें खुली , तो देखा सुबह के आठ बज गए थे ….उसकी अभी भी नींद पूरी नहीं हुई थी ।
एक हफ़्ते पहले ही उसके बेटे सम्राट की शादी हुई है । दोनों बच्चे पदफेरों के बाद वहीं से हनीमून के लिए निकल गए थे ।
रूपा को महसूस हो रहा था …. बेटे की शादी से भी ज़्यादा, बेटी की शादी करना आसान है ।
बेटे की शादी फिर मुँह दिखाई , पूजा , रिसेप्शन इन सबके होते तक पूरा शरीर थकान से बेहाल हो गया था । आज भी थकान से उसकी आँखें खुल ही नहीं रही थी ।
उसी समय रसोई से मनोज ने आवाज लगाई …. रूपा फ्रेश होकर आ जाओ चाय बन गई है ।
रूपा के शरीर में चाय का नाम सुनते ही फुर्ती आ गई …… वह जल्दी से फ्रेश होकर आई , देखा …. बालकनी में मनोज ने चाय ,बिस्किट रख दिया है ।
दोनों चाय पीने लगे तब मनोज ने कहा ….. रूपा मैंने लक्ष्मी से कह दिया है दो दिन तक दाल, सब्जी हमारे घर भेज दे , तुम सिर्फ़ चावल बना लेना।
रूपा सोचने लगी कि…. मेरे बिना कहे ही मनोज …. सब कुछ कैसे समझ जाते हैं ।
बालकनी में मनोज के साथ बैठकर …. रूपा को बहुत अच्छा लग रहा था । वैसे हर सुबह उनकी दिनचर्या यह नहीं होती थी…… मनोज ऑफिस जाने की तैयारी में लगे रहते थे …… वह मनोज के लिए टिफ़िन बनाने, लंच बनाने में व्यस्त रहती थी ।
इस तरह से पति के साथ बैठने का मौका कभी नहीं मिल पाता था।
इसलिए मनोज भी कोई कम नहीं थे…….. हर साल कम से कम दो बार ….. तो कहीं न कहीं घूमने का प्रोग्राम बना ही लेते थे। वहाँ से आकर हम लोग चुस्त हो जाते थे।
रूपा ने मनोज की तरफ मुस्कुराते हुए देखा उनके बालों में सफेदी आ गई थी …. उसे हँसते हुए देख मनोज ने कहा क्या बात है ….. मेडम जी मुझे देख कर….. हँसी आ रही है…. मुझे बताओ तो मैं भी हँस लेता हूँ!!
रूपा ने कहा—- जी कुछ नहीं मैं सोच रही थी…. हम बूढ़े हो रहे हैं!
हाँ हम बड़े हो गए हैं रूपा …. पहले हम तीन ही रहते थे । बेटे की शादी के बाद हमारे घर में भी बहुत सारे बदलाव आने वाले हैं ।
तुम्हें याद है , जब हमारी नई-नई शादी हुई थी , हम दोनों ऐसे ही बैठकर अपनी थोड़ी सी तनख़्वाह से कई प्लान बनाते थे …… माँ का ग़ुस्सा, पिता का प्यार, बच्चों की पढ़ाई, बहनों की ज़िम्मेदारी …. एक नहीं कई समस्याओं का सामना हमने मिलकर किया …. फिर भी हम उन सबसे उभर कर आगे बढ़ते गए ….. इस मुकाम पर पहुँच गए हैं।
मेरी माँ से एडजस्ट करने में तुम्हें कितना वक़्त लगा ….. मुझे याद है । रूपा को लगा मनोज यह सब अब क्यों कह रहा है ।
उसने आगे कहा ….. जैसे उस समय तुम नई बहू बनकर ….. इस घर में आई थी ….. ठीक वैसे ही आज हमारी बहू दीपा भी नई बहू बनकर हमारे घर आई है …. याद रखना उस छोटी सी बच्ची को हमें प्यार देना है ।
हमारे घर की शांति भंग ना …… हो इसका ख़याल भी तुम्हें ही रखना होगा।
इसलिए उनके कामों में दखलंदाजी ना करना , उनको कोई दिक़्क़त न हो इसका ख़याल रखते हुए प्यार से उनके साथ आगे बढ़ेंगे तो घर में शांति , समृद्धि आएगी ।
रूपा को लगा जैसे मनोज उसका इंनसेल्ट कर रहे हैं ….. पूछा आपको मुझ पर भरोसा नहीं है ।
मनोज ने घबराकर …. अरे ! नहीं , रूपा तुम बहुत अच्छी हो ….. तुम्हारा व्यक्तित्व भी अच्छा है।
मेरा कहना है कि हम थोड़ा प्रिपेयर हो जाएँगे तो अच्छा है। हमारा एक पड़ाव पूरा हो गया है …….. हम दूसरे पड़ाव पर पहुँच गए हैं ।
रूपा को वह दिन याद आए …… जब वह नई बहू बनकर इस घर में आई थी ….. उसे खाना बनाना नहीं आता था …… सासु माँ उसके हर काम में नुक्स निकालती थी।
उसी वातावरण में रहते हुए ….. उसने दो बच्चों को जन्म दिया , ख़र्चे बहुत थे …. आमदनी कम थी …….. इसलिए वह बच्चों के ही स्कूल में पढ़ाने लगी ताकि …… कुछ पैसे कमा लें तो घर के लिए काम आ जाए उन लोगों ने लोन लेकर…… कुछ बचाए हुए पैसों से ही एक इंडिपेंडेंट घर ख़रीद लिया ।
बच्चे बड़े हो गए रम्या की शादी हो गई है वह अमेरिका में रहती है….. छुट्टी नहीं मिली इसलिए शादी के बाद ही वापस चली गई है ।
उसके मौन रहने से मनोज ने कहा सुबह-सुबह प्रवचन दे रहा हूँ…. मुझ पर ग़ुस्सा आ रहा है ?
रूपा ने कहा, ऐसा कुछ नहीं है ….. सही है, हमें थोड़ा सा सँभलकर रहना चाहिए ।
उसे मनोज का इस तरह से उसे समझाना अच्छा नहीं लग रहा था ।
रूपा मनोज की बातों को चुपचाप सुन रही थी । चाय ख़त्म करते ही वह उठ खड़ी हुई । मनोज ने समझ लिया…. उसे ग़ुस्सा आया है ।
मनोज की छुट्टी होने के कारण वह ऑफिस नहीं गया ….. रूपा के स्कूल में छुट्टियाँ चल रही थी । उसने मनोज से बात करना बंद कर दिया था सुबह दोनों के बीच जितनी बातें हुई उससे भी अभी कम हो गई थी । बिटिया रम्या अमेरिका में रहती है , रात को उसका फोन आया ….
पहले मनोज से बातचीत की ख़त्म होते ही….. रूपा से बात करने लगी बातचीत करते हुए ….. कहने लगी माँ भाभी को कुछ मत कहना मुझसे जैसे बात करती थी वैसे बात बिलकुल भाभी से नहीं करना ….… जल्दी से नहाओ, नहाने के बाद नाश्ता करो , नाइटी में क्यों घूम रही हो …. तैयार होकर रहा करो आदि…….
वह जब भी उठे जैसे भी रहे रहने देना अपनी तरफ से कोई एडवाइस नहीं देना ।
हमारा तो माँ बेटी का रिश्ता है …… लड़ भी लेंगे तो , लोग कुछ नहीं कहेंगे ! पर भाभी के साथ ऐसा अच्छा नहीं लगेगा।
रूपा को ग़ुस्सा आ रहा था …… “ सुबह तुम्हारे पिता ने लेक्चर सुनाया था । अब तुम सुना रही हो ,मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम लोग मुझे समझते क्या हो अगर आप दोनों समझते हो कि …… मैं अच्छी नहीं हूँ , राक्षसी हूँ , बहू पर अत्याचार करने वाली हूँ ….. ठीक है! फोन रख , मुझे किसी से बात नहीं करनी है। “
वह फोन बंद करके फूटफूटकर रोने लगी ।
मनोज उसे रोते हुए देख सोचता है … रूपा बात को क्यों नहीं समझ रही है? ….. आजकल सब बदल गया है , बच्चों को एडजस्ट होने में समय लग रहा है .…… कुछ भी ऊँच नीच हुई …. तो बात तलाक तक पहुँच जाती है ।
घर में छोटों और बड़ों को फूँक फूँककर कदम बढ़ाना चाहिए बड़ों के लिए तो यह परीक्षा का समय है ।
मनोज धीरे से उठकर रूपा के बगल में बैठ कर कहता है …… देखो रूपा तुम गलत हो यह कोई भी नहीं कह रहा है। आज घर में जो बदलाव हो रहा है , उसे समझ कर हमें आगे बढ़ना है । अब तक हमारे घर जैसा चलता था …. वह अलग है ! आगे जो होने वाला है …. वह अलग होगा । रूपा के हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा ! हमारे घर के बारे में उस बच्ची को कुछ नहीं मालूम है , हमें उसको साथ लेकर चलना है ….. बस उससे ज़्यादा मैं कुछ कहना नहीं चाहता था।
रूपा ने आँसू पोंछ कर कहा- “ मुझे तो अब बहू आ रही है … इस बात को सोचकर ही डर लग रहा है । एक काम करते हैं … उन्हें अलग रहने के लिए भेज देते हैं ।
रूपा यह गलत है …. हमें ही अपने आप को समझाना है ….. तुम अपनी बेटी को हर बात पर टोकती थी ….. परंतु अपनी सहेली की बेटी को कुछ कहोगी क्या? नहीं ना ।
ऐसे ही बहू को अपनी सहेली बना लेना , हमें संयम बरतना सीखना है , बात-बात पर उसे ना टोकें, ….. उसकी स्वतंत्रता में बाधक ना बने …. उनकी बातों में टाँग अड़ाना छोड़ दें … तो सब कुछ बेहतर हो जाएगा ।
रूपा ने मनोज से कहा – “ आप कुछ दिन ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर रहेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा ।”
रूपा तुम किसी भी काम को आसानी से कर लेती हो… फिर भी मैं देखता हूँ अगर हो सके तो छुट्टी ले लेता हूँ । मैं और रम्या तुम्हें आगाह कर रहे थे और कुछ नहीं समझ गई है ना ।
मनोज की बातों को सुनकर रूपा में थोड़ी सी हिम्मत आई ….. उस रात को वह सो नहीं पाई थी ।
चार दिन बाद बेटा, बहू हनीमून से वापस लौट आए …. उनसे बातें कर रही थी …. मस्ती मजाक चल रहा था लेकिन दिल में डर बैठा हुआ था कि कहीं कुछ गलत ना बोल दूँ ।
रूपा दूसरे दिन सुबह उठकर नाश्ता और खाना बना रही थी कि दीपा आई और रूपा की तरफ हँसते हुए देखा और कहा- “ मैं आपकी मदद कर दूँ “ ….,, उसने सब्ज़ी काटकर दिया और अपने घर की बातें बताने लगी थी ।
वह नौकरी ढूँढ रही थी…. इसलिए इंटरव्यू के लिए प्रिपेयर हो रही थी ।
रूपा धीरे-धीरे अपने स्कूल के कामों में इतनी व्यस्त हो गई थी …. रात को सोने के लिए घर पर आती थी।
सम्राट और दीपा कहाँ जा रहे हैं ? क्या कर रहे हैं ? किसी पर उसका ध्यान नहीं था ।
मनोज ने ही उसकी व्यस्तता पर ध्यान दिया क्योंकि पहले वह उसके आगे पीछे घूमकर सब बातें बताती थी, लेकिन आज ! वह उससे भी कटी हुई रहने लगी …. जिससे मनोज अकेलापन महसूस करने लगा ।
एक दिन बच्चे लाँग वीकेंड है तो घूमने गए हुए थे तो मनोज जल्दी उठकर चाय बनाता है ।
रूपा को भी चाय पीने के लिए बुलाता है …. चाय पीते हुए कहता है , चलो! रूपा आज छुट्टी है तो हम पार्क में जाकर थोड़ी देर बैठते हैं ।
रूपा बिना कुछ बोले तैयार हो कर आई । दोनों पार्क में चल रहे थे…. ठंडी हवा चल रही थी ….. मनोज रूपा का हाथ पकड़कर चलते हुए कहने लगा …. इन दिनों तुम्हारा ध्यान मुझसे हट गया है , पहले के समान मुझसे बात नहीं करती हो ? क्या बात है ? मुझसे नहीं कहोगी?
रूपा बच्चे अच्छे से हैं , पहले मैं डर गया था और तुम्हें बहुत सारी हिदायतें दे दी थी ….. तुम इतना हर्ट हो जाओगी मैंने सोचा नहीं था ।
रूपा ने मनोज की आँखों में उदासी देखी । मनोज का हाथ धीरे से छुडाकर वहीं एक बेंच पर बैठ गई । मनोज भी उसके साथ बेंच पर बैठ गया ।
बिना किसी भूमिका के कहने लगी, मैं आपकी पत्नी बनकर आई , बहू बनकर घर सँवारा, बच्चों की माँ बनकर उन्हें संस्कार दिए । मुझे लगता है कि मैंने अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया है।
सास से डरते हुए, कम पैसों में भी घर चलाना, बच्चों की अच्छी परवरिश करना, उन्हें गलत राह पर जाने से रोकना, अच्छे घरों में उनकी शादी कराना , इन सबसे कदम – कदम पर मुझे टेंशन होता था …. आप मेरे साथ थे , मैं मना नहीं कर रही हूँ …. आखिर बहू के घर आने पर भी मुझे ही टेंशन क्यों लेना है ? मेरा अस्तित्व क्या है ? मुझे समझ में नहीं आ रहा है …. यहाँ भी मुझे ही एडजस्ट होना है ?
इतना करने के बाद भी … इस घर में मेरी क्या हालत है …. आपको पता है अगर बदक़िस्मती से बेटे बहू के बीच तलाक हो गया तो वह टीकरा भी मेरे ही सर पर फोड़ दिया जाएगा ।
वहाँ भी मुझे ही दोषी ठहराया जाएगा । मैं इस टेंशन को झेल नहीं पा रही हूँ ऐसा लगता है …. आप सब लोगों से दूर चली जाऊँ , यहाँ रहने में तकलीफ़ हो रही है ।
लड़की जात होने के कारण बचपन से ऐसा नहीं करना , वैसा नहीं करना यही सब सुनती आ रही हूँ ।
इस जमाने की लड़कियाँ खुशनसीब हैं उन्हें ज़िम्मेदारियाँ नहीं सिखाई जाती हैं, सिर्फ़ अपना हक जमाना सिखाया जाता है। हमारे जनरेशन को ही अभी भी ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबना पड़ता है। मैं इन सबसे दूर रहना चाहती हूँ इसलिए बातें कम और काम ज़्यादा करने लगी हूँ ।
मनोज कुछ कहते , उसके पहले ही पीछे से सम्राट और दीपा ने रूपा को गले लगाकर कहा कि आप जैसे पहले रहतीं थीं वैसे ही रहिए , टेंशन वाली कोई बात नहीं है ।
दीपा रूपा के गले लग कर कहती है , माँ मेरी वजह से आपको बदलने की जरूरत नहीं है , हम दोनों वैसे ही रहेंगे जैसे हम चाहते हैं ।
एक दूसरे की भावनाओं की कदर करते हुए आगे बढ़ते हैं । दीपा मनोज से कहती है , घर की शांति की ज़िम्मेदारी हम सबकी है सिर्फ़ माँ की नहीं है ।
( सम्राट और दीपा टूर ना जाकर घर आते हैं …. माता-पिता को पार्क की ओर जाते देख खुद भी पीछे- पीछे जाते हैं और उनकी बातों से उन्हें सब पता चल जाता है ।)
पूरा परिवार उस साँझ की बेला में हँसते हुए घर के अंदर आते हैं । रूपा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है ।
के कामेश्वरी
हैदराबाद