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आज मधुरा को पार्टी में सुजीत और उसकी मॉ कामिनी जी मिले। तलाक के बाद मधुरा और सुजीत की यह पहली मुलाकात थी। सुजीत ने तो देखकर अनदेखा लेकिन आज मधुरा चुप नहीं रह सकी। गोद में नन्हीं सलोनी को लेकर जाकर खड़ी हो गई उन दोनों के पास – ” पहचाना मिसेज कामिनी देवी?”
कामिनी और सुजीत चौंककर खड़े हो गये – ” तुम?”
” हॉ, मैं… वही बॉझ….. जिसके नारीत्व और मातृत्व क्षमता पर प्रश्न लोग आप लोग दिन – रात प्रताड़ित करते रहते थे। मुझे न जाने कितने डॉक्टरों के पास तो ले गये लेकिन मेरे और डॉक्टर के बार बार कहने पर भी सुजीत को डॉक्टर के पास नहीं ले गये थे क्योंकि आप लोगों का कहना था कि मर्द में कोई कमी नहीं होती है ।
आप लोग कहा करते थे कि मैं बॉझ हूॅ ,कभी मॉ नहीं बन सकती और मॉ बने बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं होता है, उसका जीवन निरर्थक होता है। इसीलिये आप लोगों ने मुझसे घर छोड़ने के पहले जबरदस्ती तलाक के कागजातों पर हस्ताक्षर करवा लिये थे। मुझे तो आप दोनों से इतनी नफरत हो गई थी कि मैंने तलाक का जरा भी विरोध नहीं किया था। मैं स्वयं ऐसी नीच मानसिकता वाले लोगों की सूरत तक नहीं देखना चाहती थी।”
सुजीत और कामिनी फटी फटी ऑखों से मधुरा को देखते रह गये और मधुरा के होठों पर एक विद्रूप मुस्कुराहट आ गई –
” आशा करती हूॅ कामिनी देवी कि मेरे आने के बाद आपके बेटे ने तो अब तक आपको कई बच्चों की दादी अवश्य बना दिया होगा या संसार की सभी स्त्रियॉ आपकी नजर में बॉझ है?”
फिर उसने गोद की बेटी सलोनी को दिखाते हुये कहा – ” देख लीजिये अभी मेरी शादी को अठ्ठारह महीने हुये हैं और मेरी गोद में आठ महीने की बेटी है। आज मैं आपसे कहती हूॅ मिस्टर सुजीत कि मैं नहीं आप बॉझ हैं। आप कभी पिता नहीं बन सकते,
आप अस्तित्व हीन हैं, आपका जीवन निरर्थक है।”
तभी मधुरा के पति ने आकर उसका हाथ थाम लिया – ” क्या जरूरत है ऐसे लोगों से बात करने की जिनके लिये तुम अस्तित्व हीन थीं। मेरे लिये तुम्हारा अस्तित्व ही पूरी दुनिया है।”
सुजीत और कामिनी बेटी को गोद में लिये गर्व से आगे बढ़ती मधुरा को देखते रह गये।
बीना शुक्ला अवस्थी