श्रुति! तुमने बहुत दिनों से लौकी के कोफ़्ते नहीं बनाए , इस संडे बना लो …मैं लौकी घिसने में मदद कर दूँगा ।
श्रुति ने पति वैभव की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वह सोने के कमरे में चली गई । उसने अलमारी से कंबल निकाला । वैसे रसोई का काम करते समय वह सोच रही थी कि ऑफिस का थोड़ा काम करेगी पर अब मन बुझ सा गया ।
पूरे अठाइस साल हो गए भाई हीरेन से बात किए…. कितना शौक़ था भैया को मेरे हाथों से बने लौकी के कोफ़्ते खाने का । अब तो मन ही नहीं करता कोफ़्ते बनाने का । भैया घर में आँगन के कोने में दो – चार लौकी की बेल लगाते हुए कहते थे —-
देख श्रुति! एक बेल तो चलेगी ही … खूब कोफ़्ते खाएँगे इस बार…
रोज़ कोफ़्ते कौन खाता है भैया! बेल की क्या ज़रूरत है, बाज़ार में से नहीं आ सकती क्या लौकी? छिः मुझसे तो रोज़ नहीं खाए जाएँगे ।
तो तुम लोग अपने लिए कुछ और बनवा लेना अम्मा से …. हाँ सुन , थोड़े सूखे कोफ़्ते भी रख लिया कर मेरे लिए…. दही में डालकर चटपटी चाट बन जाती है ।
पता नहीं.. ये लड़का किस पर गया है बस तली- भुनी चीजों में तो जान बसी है इसकी । छोटा सा तो आँगन है , उसी में बेल लगा देता है , लौकी का अकाल पड़ा है क्या बाज़ार में?
बचपन की बातें याद आते ही श्रुति का मन भर आया । आख़िर उसका क्या क़सूर था? भैया ने ही तो वैभव को उसके लिए पसंद किया था । उन दिनों भैया की पोस्टिंग देहरादून में थी । एम०ए० के फ़ाइनल पेपर के बाद वह उनके पास गई हुई थी । एक दिन भाभी ने श्रुति से कहा—
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श्रुति! तुम्हारे भैया के ऑफिस में जूनियर इंजीनियर के पद पर मि० तोमर हैं । उन्हीं के बेटे को हीरेन ने तुम्हारे लिए पसंद किया है ।उसने रुड़की से बी० ई० की है और पहली पोस्टिंग
यहीं हुई है । आज तोमर साहब अपनी पत्नी और बेटे के साथ शाम को आएँगे ।
उसी दिन श्रुति और वैभव की लंबी बातचीत और चेहरे की प्रसन्नता देखकर वैभव की मम्मी ने हीरेन से पूछा था —
अगर आपकी सहमति हो तो मैं शगुन करके श्रुति को अपनी बहू बना लूँ क्या?
इतनी जल्दी ? इत्मीनान से घर जाकर वैभव जी से बात कर लीजिए । मैं भी श्रुति से बात कर लूँगा । ये औपचारिकता तो बाद में भी हो जाएँगी ।
हमारी तरफ़ से तो बात एकदम पक्की है पर अगर आपको अपनी बहन से बात करनी है तो बाद में बता देना ।
तभी भाभी ने भैया को इशारे से बुलाकर बता दिया कि श्रुति ने आख़िरी फ़ैसला हम दोनों के ऊपर छोड़ दिया है, बाक़ी उसे वैभव और उसके घरवाले बहुत अच्छे लगे हैं ।
यह सुनते ही वैभव की माँ ने अपने पर्स से दो जड़ाऊ भारी कंगन उतारकर श्रुति को पहनाते हुए कहा—-
आज से आपकी बहन हमारे घर की बहू हो गई, राणा साहब!
विवाह की तारीख़ छह महीने बाद की निकली । भैया ने मम्मी , बड़ी दीदी और छोटे भाई को देहरादून बुलाकर सगाई कर दी । सगाई होने के बाद श्रुति और वैभव को मिलने तथा बातचीत करने का लाइसेंस मिल गया था । वे हर रोज़ कभी पार्क में तो कभी किसी रेस्टोरेन्ट में मिलने लगे ।
इधर रिश्तेदारी जुड़ते ही तोमर साहब तो ऑफिस में ऐसे रोब जमाने लगे जैसे वे ही वहाँ के उच्चाधिकारी हों । हीरेन को रोज़- रोज़ उनकी शिकायतें मिलने लगी । उसने बहन के होने वाले ससुर को अप्रत्यक्ष रूप से समझाने की कोशिश की पर वे जानकर भी अनजान बने रहे ।
आख़िर एक दिन तोमर साहब रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़े गए और एक बड़े घोटाले के मामले में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया । अंतिम तारीख़ के दिन हीरेन की गवाही के आधार पर ही उनकी सज़ा तय होनी थी पर हीरेन ने अपने दिल की सुनी और तोमर साहब को जेल भेज दिया गया । तक़रीबन एक महीने के बाद और भारी रक़म खर्च करके उनकी ज़मानत हो गई ।विवाह की तारीख़ भी नज़दीक थी पर तोमर साहब ने रिश्ते के लिए साफ़ इंकार कर दिया ।
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पापा ! इस मामले में श्रुति का क्या दोष है और फिर आपने ग़लत कार्य क्यों किया ? हीरेन भाई साहब भी तो मजबूर थे । जब सारे सबूत मौजूद थे तो वे झूठी गवाही देकर खुद फँस जाते । मैं हरगिज़ इस रिश्ते से इंकार नहीं करूँगा ।
तो क्या वो लड़की , मेरे सम्मान से ज़्यादा ऊपर हो गई?
नहीं पापा , ऐसी बात नहीं है । आप शांति से सोचिए प्लीज़ ।
वैभव की ज़िद को देखकर माता-पिता ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा—-
यह शादी केवल इस शर्त पर होगी कि श्रुति को हमेशा के लिए अपने परिवार से संबंध समाप्त करना पड़ेगा ।
जब श्रुति ने यह अजीबोग़रीब शर्त सुनी तो वह हकदम रह गई । हीरेन ने भी विवाह तोड़ने का फ़ैसला कर लिया पर भाभी ने श्रुति को समझाते हुए कहा —-
इन दोनों की लड़ाई में तुम और वैभव क्यों पिसोगे भला ? मान लो शर्त । दो- चार साल में सब ठीक हो जाएगा पर वैभव जैसा नेक लड़का आसानी से नहीं मिलता ।
शायद भगवान ने यह जोड़ी स्वर्ग से बनाकर भेजी थी इसलिए भाई के सामने कभी ज़बान न खोलने वाली श्रुति ने विवाह की शर्त मान ली । दो दिन तो हीरेन ने श्रुति को समझाने की कोशिश की पर बहन की जिद देखकर उसने भी जी कड़ा करते हुए कहा—-
ठीक है…जब श्रुति को हमसे रिश्ता ख़त्म करने में कोई दुख नहीं तो हम क्यों मरे जा रहे हैं?
हीरेन ने बहन की शादी में जी खोलकर खर्च किया । छोटी से छोटी चीज का ख़्याल रखा पर अपने मन की पीड़ा को मन में दबाकर , विदाई के समय सिर पर हाथ तो रखा पर भावशून्य चेहरे के साथ । ना पगफेरे की रस्म हुई और ना पहली बार मायके आकर सखी- सहेलियों से हँसी- ठिठोली की ।
उसके बाद श्रुति की पूरी दुनिया अपने ससुराल में ही सिमटकर रह गई । वैभव उसका बहुत ख़्याल रखता था । पर अपनी पत्नी के अनकहे दर्द को समझते हुए भी वह उसे दूर न कर सका ।
चार साल पहले सासू माँ भी चल बसी । वह खुद दो बच्चों की माँ बनकर एक आदर्श बहू की परिभाषा में आती थी । ससुर , ननद -देवर और ससुराल की सारी रिश्तेदारी से उसे खूब प्रेम और सम्मान मिला पर दिल की टीस ज्यों की त्यों बनी थी ।
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वक़्त गुज़रता जा रहा था और श्रुति ने मन ही मन यह बात स्वीकार कर ली थी कि शायद इस जन्म में मायके का सुख उसके जीवन में नहीं है । माँ और भाभी से बात करती थी पर छिपकर …. अक्सर भाभी भी पछताते हुए कहती—
मुझे माफ़ कर दे श्रुति! मैंने ही तेरी हिम्मत बँधाई थी पर मुझे विश्वास था कि शायद दो- चार साल में सब ठीक हो जाएगा ।
नहीं भाभी…. आपकी गलती नहीं, सब नसीब का खेल है ।
सोचते-सोचते श्रुति की आँख लग गई और सुबह पापाजी की चीख सुनकर खुली । वैभव के पिता बाथरूम में फिसलकर गिर पड़े थे । एक तो बड़ी उम्र और ऊपर से कूल्हे की हड्डी में चोट । डॉक्टर ने कड़ी निगरानी में बेडरेस्ट के लिए कह दिया , अगर ज़रा सी भी लापरवाही हुई तो हमेशा के लिए बिस्तर पर ।
वैभव को लंबी छुट्टी मिलनी असंभव थी । देवर अलग शहर में नौकरी करता था । दोनों ननदें दो-दो , चार-चार दिन रहकर चली गई । ले- देकर सबकी आँखें श्रुति पर टिकी थी ।
वैभव, मेरी छुट्टियाँ मंज़ूर हो गई है । तुम फ़िक्र मत करो । अगर ज़्यादा छुट्टियों की ज़रूरत पड़ेगी तो अवैतनिक हो जाऊँगी ।
श्रुति सुबह से शाम तक बैठकर नहीं देखती थी । पापाजी का हर कार्य अपनी निगरानी में करवाती । एक दिन पापाजी को सूप देने गई तो क्या देखा कि उनकी आँखों में आँसू है—-
क्या हुआ पापाजी ? आपकी आँखों में आँसू क्यों ? क्या आपको मुझसे या वैभव से कोई शिकायत है? या अपनी सेहत के कारण ? आप चिंता मत कीजिए पापाजी, कुछ दिनों की बात है….आप पूरी तरह से ठीक हो जाएँगे । आपके बच्चे आपके साथ हैं, क्यों घबराते हैं ?
नहीं बेटा , मुझे कोई चिंता नहीं । आज मैं अपने व्यवहार, अपनी ग़लतियों और तेरे साथ किए अन्याय के कारण शर्मिंदा हूँ । बेटा, तुम्हारी सास समझाते- समझाते चली गई पर मैं झूठी अकड़ में अड़ा रहा । मैं खुद तुम्हारी माँ को फ़ोन करके माफ़ी माँगना चाहता हूँ । हीरेन जी से भी बात करुँगा । क्या तुम्हारे पास तुम्हारी माँ का नंबर है?
ससुर की बात सुनकर श्रुति को एकाएक विश्वास नहीं आया । कहीं पापाजी ने उसे माँ से बात करते हुए सुन तो नहीं लिया और वे इसी बात को जाँचने के लिए उनका नंबर पूछ रहे हो । पर झूठ भी कैसे कहें कि उनका नंबर नहीं है । इसलिए श्रुति ने बात को बदलते हुए कहा —-
पापाजी, आप पहले ये गर्म- गर्म सूप पी लीजिए अभी , ये बातें बाद में कर लेंगे । मैं भी ज़रा दाल चढ़ाकर आती हूँ ।
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श्रुति ने सारी बात वैभव को बताई और ये बता दिया कि वह इन बीते सालों में भाभी और माँ से बातें करती रही है ।
कोई बात नहीं श्रुति, अगर उन्हें पता भी चल गया तो तुमने कौन सा कोई अपराध किया है? अरे इतने सालों से तुम तो बेक़सूर होते हुए भी सजा काट रही हो । अगर पापाजी बात करना चाहते हैं तो माँ से बात करवा देना ।
दो दिन बाद फिर से श्रुति के ससुर ने कहा —-
बेटा, अगर तुम्हारे पास तुम्हारी माँ का नंबर है तो फ़ोन मिला दो , बड़ी बेचैनी रहती है बेटा !
आज श्रुति ने फ़ोन मिलाकर माँ से कहा—-
मम्मी, पापाजी आपसे बात करना चाहते हैं…. लो पापाजी बात कीजिए ।
नमस्ते बहनजी ! जी …मैं वैभव का पापा …. बल्कि यूँ कहना चाहिए कि आप सबका और विशेष रूप से श्रुति बिटिया का असली मुजरिम बोल रहा हूँ । मैं आपसे, हीरेन बेटे से और आपके पूरे परिवार से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगना चाहता हूँ । बहनजी, मैं तो वहाँ आकर माफ़ी माँगने की हालत में नहीं हूँ , बड़ी मेहरबानी होगी, अगर एक बार आप यहाँ मेरे सामने हीरेन बेटे को लेकर आ जाएँ , अगर वो माफ़ कर देंगे तो दिल को तसल्ली मिल जाएगी , फ़ोन रखता हूँ बाक़ी बातें मिलने पर करेंगे । जी नमस्ते!
परंतु अगले दिन श्रुति की माँ ने बेटी को फ़ोन पर रोते हुए कहा—
बेटा , हीरेन किसी भी तरह वहाँ आने को तैयार नहीं है, मैंने तो बहुत समझा लिया पर …..
कोई बात नहीं मम्मी…. उनकी कोई गलती नहीं ।
अगले दिन इतवार होने के कारण श्रुति देर तक बिस्तर पर लेटी रही क्योंकि इतवार को पापाजी के सुबह के कार्य वैभव देख लेते थे । तभी गेट की घंटी बजी । श्रुति ने घंटी की आवाज़ सुनी पर सोचा कि शायद दूधवाला जल्दी आ गया होगा और वैभव देख लेंगे ।
क़रीब दस मिनट के बाद वैभव ने कमरे में आकर कहा—-
श्रुति! तुमने किसी को बुलाया था क्या ?
मैंने ….. नहीं तो ? गेट की घंटी बजी थी , कौन है ?
वही … जिनको तुमने बुलाया था । जाओ मिल लो , मैं चाय बनाकर लाता हूँ ।
इतने में श्रुति के दिल से आवाज़ आई—-
कहीं भैया तो नहीं….. और वो ड्राइंगरूम की तरफ़ दौड़ी ।
बरसों बाद अपने हट्टे- कट्टे जवान भाई के स्थान पर एक सफ़ेद बालों के अधेड़ व्यक्ति को देखकर उसकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह निकली , वह भाई के गले जा लगी । दोंनो भाई- बहन को रोते देखकर तोमर साहब सिर झुकाए बैठे रहे पर आँसुओं से भीगे उनके दोनों जुड़े हाथ इस बात के गवाह थे कि सालों बाद उन्हें अपनी गलती का सच्चा अहसास हो चुका है ।
करुणा मलिक
# अनकहा दर्द