पी..हु, पी …. हु
आवाज सुनते ही पीहू दादी के पास आ गई ।
दादी जोर जोर से श्वास ले रही थी।
डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब प्लीज़ देखिए ना दादी को क्या हुआ?
पीहू ने जोर जोर से आवाजें लगाई।
एक ७५ ८० साल की बुजुर्ग महिला अस्पताल के जनरल वार्ड में प्लग पर लेटी थी।
फटाफट नर्सिंग स्टाफ आया और इंजेक्शन लगा दिया।
थोड़ी देर में दादी की आंख लग गई।
पीहू पलंग के पास ही अपनी बुक लेकर पढ़ने लगी।
सामने के बेड पर एक बुजुर्ग महिला ये सब देख कर आनंदित हो रही थी।
तुम्हारा नाम पीहू है?
पीहू ने चौक कर उनकी तरफ देखा
ओर बोली :” जी आपको कुछ चाहिए?
बेझिझक बोल दीजिएगा मैं आपका भी ख्याल रख लूंगी।
पीहू के स्नेहशील शब्द सुन दादी ने उसे अपनी तरफ आने का इशारा किया।
पीहू ने किताब एक तरफ रखो और उनके पास चली गई।
जी कहिए।
पानी पिला दु
या खाना खाना है?
टायलेट जाना हो तो भी बता दीजिएगा।
अब दुर्गा जी ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली :” तुम बहुत प्यारी ओर अच्छी हो ।”
तुम्हारी दादी बहुत भाग्यशाली है जिनके पास तुम जैसे बच्चे है।
पीहू मुस्कुराई और बोली ;” ओर आपके पास?
दुर्गा जी ने फीकी मुस्कान बिखेरी और बोलो :” दो बेटे है अमेरिका में मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते है वहीं शादी कर ली ओर परिवार सहित सेटल है।
उन्हें मेरे हाल जानने की भी फुरसत नहीं।
पोते पोती तो मुझे पहचानते भी नहीं होंगे।
शुरू शुरू में तो 2 वर्ष में एक बार आ जाते थे पर जब से बच्चे हुए है उन्होंने आना जाना छोड़ दिया बुलाती हु तो कहते है लेंग्वेज प्रॉब्लम रहेंगी इसीलिए बच्चो का मन नहीं लगेगा
फिर इतनी सुविधाएं भी तो नहीं है।
प्रॉपर्टी की कमी नहीं है पर अकेलापन खलता है।
तुम्हे देख कर मन खुश हो जाता है।
पीहू ने दुर्गा जी के हाथ पर अपना हाथ रखा और बोली :” चिंता ना कीजिए मैं हु ना?
आज से आप मेरी मै आपकी बोलिए दोस्ती पक्की?
दुर्गा जी जोर से हस दी फिर एकाएक चुप हो गई।
क्या हुआ?
मैने कहा ना आज से ही मैं आपकी पोती हु कोई आपके पास रहे या ना रहे :” ये दोस्ती ….
गाना गुनगुनाने लगी।
तभी दुर्गा जी के पास एक स्मार्ट सा लड़का सूट बूट पहने
टाई पहन कर शृंगारित आ खड़ा हुआ।
कैंटीन से खाना आ गया था ना?
मै सब व्यवस्था कर के गया था।
अभी भी वो लोग ध्यान रख लेंगे सुविधाओं में
कमी लगे तो फोन कर दीजिएगा मैं फोन से सेट कर दूंगा।
फिर जेब से मोबाइल निकाला टाइम देखा ओर बोला चलता हु अब आने में दो तीन दिन या उससे भी अधिक समय लग सकता है ।
चिंता मत करना
वो हाथ हिलाता हुआ फुर्ती से बाहर निकल गया।
दुर्गा जी आंखे भर आई।
पीहू ने अपने रुमाल से उनकीआंखे पोछी ओर बोली दादी ;” मै हु ना?
दुर्गा जी ने उसे गले से लगा लिया।
ओर सोचने लगी “अपनों से गैर ही भले”
फिर पीहू से बोली
तुम मेरे साथ रहोगी?
दुर्गा जी ने दूसरे पल ही एक दृष्टि पीहू पर डाली ओर पूछा?
पीहू ने अपनी दादी की तरफ देखा ओर बोली ;” रह तो लेती पर इन दादी की तरह ओर दादी ओर दादा भी मेरे साथ रहते है।
मै उन्हें नहीं छोड़ सकती आप मेरे साथ रह सकती है
बड़ा तो नहीं पर छोटा सा घर है।
मिलकर खाना बनाते है और जिनको सिलाई आती है वो सिलाई करती है।
कुछ दादा जी तो दुकान पर हिसाब किताब का काम करते है।
कहते है काम में शर्म कैसी?.
हम किसी भी निर्भर नहीं है।”
मतलब ये .. ये तुम्हारी दादी नहीं है।
पीहू ;” नहीं कौन कहता है ये मेरी दादी नहीं है
मै इन सबसे हु ओर ये मुझसे।
मै तो सिर्फ इनकी सेवा पानी करती हु
मेरे पालनहार तो ये ही है।
अबकी परीक्षा पास हो जाऊंगी ना तो सीधी बड़ी ऑफिसर बनूंगी मतलब कलेक्टर समझी ।?
अभी तो मैं बैंक में क्लर्क हु।
सरकारी बैंक में।
पीहू को स्वयं पर गर्व महसूस हो रहा था।
लेकिन अगले ही पल दुर्गा जी ने उसका प्रस्ताव को स्वीकार कर उसे चोका दिया।
पीहू मै तुम्हारे काम में तुम्हारा सहयोग करूंगी
पर जानना चाहती हु
ये संस्कार तुम्हारे पास कहा से आए।
पीहू पहले सकुचाई फिर बताना शुरू किया
एक दिन हम स्कूल टूर के लिए निकले
स्कूल बस वृद्धाश्रम के सामने रुकी। बच्चे हँसते-बोलते उतरे, हाथों में बिस्कुट के पैकेट और फूल थे। छोटी-सी पीहू भी उनमें थी। टीचर ने कहा, “बच्चो, आज हम दादियों-दादाओं से मिलेंगे और उनका मन बहलाएँगे।”
पीहू उस वक्त अपनी दादी को बहुत मिस कर रही थी।
घर पर उससे कहा गया था कि दादी गाँव रिश्तेदारों के यहाँ गई हैं।
जैसे ही वह हॉल में पहुँची, उसकी नज़र एक दुबली-सी बुज़ुर्ग पर पड़ी। सफेद साड़ी, काँपते हाथ और आँखों में गहरी उदासी…
अचानक उसके कदम थम गए। दिल ज़ोर से धड़क उठा।
“द… दादी?” उसके मुँह से बस इतना ही निकला।
बुज़ुर्ग ने सिर उठाया। पल भर में पहचान की चमक आई।
“पीहू!” कहकर उन्होंने उसे सीने से लगा लिया।
वहाँ मौजूद हर आँख भर आई।
पीहू सिसकते हुए बोली, “आप तो गाँव गई थीं ना?”
दादी की आवाज़ काँप गई, “नहीं बिटिया… मुझे यहाँ छोड़ दिया गया।”
बच्ची का मासूम मन टूट गया।
“दादी, आप मेरे बिना कैसे रह सकती हो?”
उस पल जैसे दादी की सूनी दुनिया में फिर से उजाला आ गया।
घर लौटकर पीहू ने माँ-बाप से कहा,
“अगर दादी घर नहीं आईं, तो मैं भी नहीं जाऊँगी स्कूल।
जिस घर में दादी नहीं, वो घर नहीं होता।”
बच्ची की बात ने पत्थर दिलों को भी पिघला दिया।
शाम होते-होते दादी फिर अपने घर में थीं—उसी चौखट पर, जहाँ से उन्हें निकाला गया था।
दादी ने काँपते हाथों से पीहू का सिर सहलाया।
“आज तूने मुझे ही नहीं, इस घर को भी बचा लिया, बिटिया।”
उस दिन सब समझ गए—
बुज़ुर्ग बोझ नहीं, परिवार की जड़ होते हैं।
कहते कहते पीहू चहक उठी बस उसी दिन मैने मेरे जहन ने ये बिठा लिया था।
मै किसी भी बुजुर्ग को अकेलापन महसूस नहीं होने दूंगी।
ऐसे मेरी बात कोई नहीं मानता इसीलिए खूब पढ़ाई करने
लगी।
जब जॉब लग गई तो तब मैने मेरे जहन में बैठे हुए सपने को सच करने की ठानी।
ओर अब इसी तरह सेवा कार्य करती हु।
दादी कहती थी :” आजकल के पेरेंट्स बच्चो को बुजुर्गों के पास रहने नहीं देते उन्हें लगता है वे पिछड़ जाएंगे वे ये नहीं सोचते वे सुधर जाएंगे।
दुर्गा जी :” पीहू आज तुम्हारी इस मुलाकात ने मेरी किस्मत बदल दी।”
अब में भी पश्चाताप करूंगी।
फिर सोचने लगी मैने भी तो ये पाप किया है बच्चो को उनके दादा ,दादी से दूर रखा शायद इसीलिए आज मैं……
पीहू ;” अब पुरानी बात मत दोहराइए।”
आपको पीते पोतियों की खिलखिलाहट चाहिए ना तो आपके घर में हम उन बच्ची को रखेंगे जो पेरेंट्स की लापरवाही के कारण अकेले है।
क्यों मंजूर?
दुर्गा जी ;” मंजूर
आज दुर्गा जी को जीने की नई राह मिल गई थी
दूसरों की खुशी में ही सच्ची खुशी मिलती है।
दीपा माथुर