मुसीबत में ही असली चेहरा दिखता है
इनाया, शांतनु और अभिषेक , दो दो साल के अंतराल में पैदा हुए तीनों भाई बहन माँ रेवती और पिता आलोक की जान थे। लड़ते , झगड़ते , रूठते, मानते लेकिन फिर एक हो जाते।बचपन होता ही इतना प्यारा है,दुःख सुख सांझे, कुछ पता नहीं घाटा, नफा क्या होता है।
इनाया बड़ी थी तो शादी पहले होनी थी, अभी बारहवीं पास ही की थी कि अच्छा रिशता मिल गया। उसे सिलाई कढ़ाई का बहुत शौक था, अपना बुटीक खोलने की इच्छा भी रखती थी। उसने कोई व्यवसायिक कोर्स तो नहीं किया लेकिन उसने काफी कुछ सीख लिया था।
अच्छी बिजनैस मैन फैमिली थी , नौकरी वगैरह करने का कोई विचार नहीं था, लड़किया नौकरी करे तो भी ठीक न करे तो भी ठीक ।वैसे भी हर परिवार के अपने नियम होते है। बीस साल की उम्र में ही शादी हो गई और जल्द ही वो दो बच्चों एक बेटी और एक बेटा की मां भी बन गई। शांतनु और
अभिषेक ने भी कुछ ज्यादा पढ़ाई नहीं की। वैसे भी छोटे शहर में एक ही कालिज था। ग्रेजुएशन के बाद अभिषेक का मन था बड़े शहर जा कर कोई अच्छा कम्पयूटर कोरस कर ले, बेसिक जानकारी तो थी लेकिन अपने बिजनैस का अच्छे से हिसाब किताब रखने के लिए बहुत ज्ञाण चाहिए।तो वो दो साल लगा कर कोर्स कर आया।
इन्की फैकटरी थी जिसमें मशीनों के पुर्जे वगैरह बनाए जाते है। होलसेल सप्लाई का काफी अच्छा काम था। इनाया की ससुराल में दो बहनें और पुनीत यानि कि इनाया का पति था। इनाया के ससुर और चाचा ससुर का फल सब्जियों का सांझा बिजनैस था। आढ़त टाईप कुछ काम था। इस काम में चाचा उसके दो बेटे पुनीत और उसके पापा , यानि कि सभी उसी में कार्यरत थे। उनके पुरखों से ही यह काम चला आ रहा था। चाचा की एक बेटी भी शादी शुदा थी
इनाया की शादी काफी धूमधाम से की गई थी। शांतनु और अभिषेक की शादी भी हुई। इनाया को मां बाप के इलावा भाई भाभियों से भी बहुत इज्जत मिलती। हर दिन त्यौहार पर तोहफे, सौगाते या जो भी लड़कियों का नेग बनता है, वो देते ही रहते।
समय की गति कहां रूकती है। इनाया के ससुर की हार्ट अटैक से मौत हो गई। पहले करोना और फिर आन लाईन सप्लाई के चलते सब्जियों वगैरह का काम भी कम हो गया। पिता की बीमारी के कारण पुनीत भी काम की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया। पुनीत के चाचा और दो बेटे थे तो इधर
पुनीत अकेला। अपने अपने घर तो थे परतुं दुकान एक ही थी, क्योंकि उनके काम में ट्रकों से ही होलसेल में सप्लाई होती थी। समय की मार कुछ ऐसी पड़ी की पुनीत के स्कूटर को किसी ने टक्कर मार दी , छः महीने के इलाज के बाद वो छड़ी के सहारे कुछ चलने लायक हुआ।
अपने भाई के परिवार के हालात चाचा से छुपे न थे। अभी तक तो सब खर्च आढ़त के काम से ही होता था। पुनीत अब यहां वहां जा नहीं सकता था,बाप रहा नहीं, चाचा की भी उम्र हो चली थी, लगभग सारा काम चाचा के दोनों बेटे ही संभाल रहे थे और वो चाहते थे कि बंटवारा हो जाए।जमा पूंजी भी कम थी। कोई और काम होता तो इनाया भी कर लेती, लेकिन ये काम करना उसके बस में नहीं था।
उधर इनाया के मां बाप भी बेटी के लिए परेशान , अच्छे खाते पीते परिवार पर मुसीबत आन पड़ी। पुनीत भी ज्यादा काम करने लायक नहीं रहा।लगभग तीन चार साल निकल गए, इनाया के भाई भी बहाने से कुछ मदद कर देते थे। इनाया के मन में कई बार आया कि वो मायके से अपना हिस्सा मांग लें, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई।
फिर वो ये भी सोचती की उसके ससुराल में भी तीन बेटियां है, दो उसकी ननदें और एक चाचा की बेटी। मकान तो अपने अपने थे लेकिन काफी बड़ी दुकान दादा के नाम थी। अगर वो भी अपना हिस्सा मांग लें तो दुकान के भी कितने ही हिस्से हो जाऐगें और फिर तो दुकान बेचनी ही पड़ेगी।
समय को देखते हुए अब फल सब्जियों की दुकान खोलने का ही फैसला हुआ।घर में चाचा जी ही बड़े थे, पुनीत की मां ने तो कभी दखलअंदाजी की ही नहीं थी। फैसला चाचा जी को ही करना था। पुनीत और उसकी दोनों बहने और चाचा के दोनों बेटे और बहन सब इकट्ठा हुए। सम्पति के नाम पर एक दुकान यानि कि काफी बड़ा प्लाट ही था।तीन चार पुराने कमरे और बाकी खाली जगह पर तो फलों सब्जियों के ट्रक या पेटियां वगैरह पड़ी रहती।
इनाया को हमेशा घबराहट रहती, बी. पी. बढ़ा रहता, सास बीमार, बच्चों की कालिज की पढ़ाई और पुनीत कुछ कर न पाते। अगर बेटियों ने भी हिस्सा मांग लिया तो क्या होगा।मीटिंग हुई, किसी भी बेटी ने हिस्सा नहीं लिया, सबने कहा कि उनहें तो मायके से प्यार और इज्जत चाहिए। प्लाट को तीन
हिस्सों में बांट दिया गया। चाचा के दोनों बेटों ने अपनी फल सब्जी की दुकान कर ली, इधर इनाया ने अपनी बुटीक की दुकान और साथ में रेडीमेड और ड्रैस मैटिरियल भी रख लिया।वो तो काम भूल चुकी थी लेकिन कारीगर रख लिए। कुछ पूंजी ससुराल से मिली और दोनों भाईयों ने भी बहन की पूरी मदद की।
यानि कि सब हंसी खुशी से हो गया।सच में ही अपनों की पहचान मुसीबत में ही होती है।
दोस्तों सरकार ने भले ही बेटियों के जायदाद में हिस्से का कानून बना दिया है, लेकिन क्या करना है और क्या नहीं करना यह समय और जरूरत के हिसाब से ही तय करना चाहिए, ताकि आपसी प्यार भी बना रहे और सबकी जरूरत भी पूरी होती रहे।
विमला गुगलानी
चंडीगढ।
वाक्य- अपनों की पहचान।
विमला गुगलानी