निशी बेटा कब आ रही हो फोन उठाते ही बुआ की आवाज सुनाई दी।
बस बुआ जितनी जल्दी हो सके निकलने की कोशिश करती हूं।
हां बेटा जल्दी आ जा भाई की शादी में आकर थोड़ा हाथ बंटा शापिंग भी करनी है।
हां बुआ आती हूं।
हां सब आना समीर को भी साथ ले आना।
जी बुआ देखती हूं कहते फोन कट गया।
निशी के मन में भाई की शादी में जाने का अथाह उत्साह था।बुआ के दो बच्चे थे बेटी की शादी अभी लगभग दो बर्ष पूर्व ही की थी।तब कितने मजे किए थे सबने उसके बच्चे भी छोटे थे किन्तु मम्मी ने सबको सम्हाल उसे पूरी आजादी दे दी थी और अब बेटे सचिन की बारी थी।
शादी में क्या -क्या पहनेगी अपने कपड़े , बच्चों के, पति समीर के सब उसने निकाल सूटकेस में इकट्ठे करने शुरू कर दिए कहीं जल्द बाजी में कुछ छूट ना जाए। फिर कुछ शापिंग भी करनी, गिफ्ट भी तो लेना था।
उसके उत्साह को देख समीर बोला आजकल तो बहुत खुश नजर आती हो भाई की शादी की इतनी खुशी है।
क्यों न हो मेरा भाई मुझे बहुत ही प्यारा है। बचपन से साथ खेले , बड़े हुए हैं भाई की शादी का सपना देखा है सुन्दर सी भाभी आएगी।
बस-बस भाई मैं तो यूं ही मजाक कर रहा था कब तक निकलने की तैयारी है।
मैं सोच रही थी कि कम से कम आठ दिन पहले तो चलें।बुआ का फोन आया था उन्हें मेरे साथ कुछ शापिंग भी करनी है।
मैंआठ दिन पहले से नहीं चल पाऊंगा तुम बच्चों के साथ चली जाओ मैं तीन-चार दिन पहले आ जाऊंगा।
नहीं साथ ही चलते हैं बुआ आपको भी बुला रहीं हैं।
समझने की कोशिश करो मैं इतने दिन पहले नहीं चल पाऊंगा मुझे इतना अवकाश नहीं मिलेगा। इसलिए तुम बच्चों के साथ जब चाहो चली जाओ, मैं बाद में आता हूं।
निशी सब तैयारी कर बच्चों के साथ आठ दिन पूर्व चली गई। मायके जाने की खुशी अलग ही होती है।सब भाई बहन मिले वही पुराने दिन याद आ गये मौज मस्ती, धूम मचाना, एक दूसरे की टांग खींचना।
बुआ जी उन्हें देख बोलीं तुम सब तो इकट्ठे होकर बच्चे बन गये हो। अरे बड़े हो गए हो घर में शादी है कुछ काम काज करो जिम्मेदारी समझो।
बच्चों का अपना ग्रुप था खेलना खाना मस्ती करना।नानी,मामी,मौसी सब थीं उनका ख्याल रखने के लिए भूख लगने पर कोई खाना दे देता।सब तरफ खुशी का माहौल था।
चार दिन रह गये थे शादी को समीर भी पहुंच चुके थे और बुआ जी की बेटी के पति शिशिर भी आ गये।अब शादी के फंक्शन होने शुरू हो गये हल्दी, मेंहदी, महिला संगीत और भी छोटे-मोटे ।
सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक सबकी खुशियों को ग्रहण लग गया। उधर निकासी की तैयारी हो रही थी और इधर नियति ने असाधारण क्रूर चक्र रच दिया जिससे पूरे परिवार पर बज्रपात हो गया।सारी खुशियों पर मातम का गहरा साया पड़ गया था।सबके चेहरों से रौनक जा चुकी थी। सभी गुस्से में थे और साथ ही मायूस भी। किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े थे कि अब क्या प्रतिक्रिया दें सोचने समझने की शक्ति जबाब दे चुकी थी।
सारे छोटे बच्चों की मम्मीयों ने बच्चों को तैयार कर बहार भेज दिया और स्वयं तैयार होने लगीं। बच्चे खेलने लगे।तभी निकासी का समय हो गया तो सभी सदस्य घर के बाहर घुड़चढ़ी का आंनद ले रहे थे। बच्चे भी आस-पास मंडरा रहे थे।कब बच्चे खेलते -खेलते बपस घर के अंदर गये कब बाहर आए किसी को पता नहीं था।सब कार्यक्रम और नाच गाने में व्यस्त थे। तभी ना जाने कब से घात लगाए शिशिर ने निशा की आठ वर्षीय पुत्री को घर में अकेला पाकर दबोच लिया।जिस तरह से हाथ पकड़ कर शिशिर ने उसे कमरे की ओर खींचा वह घबरा गई और चिल्लाने लगी मुझे छोड़ो मुझे बाहर जाना है पर शिशिर गलत इरादे से उसे कमरे में ले गया
घर में उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था सो शिशिर पूर्ण रूप से आश्वस्त था। जैसे ही एक हाथ आगे बढ़ा उसने दरवाजा बंद करना चाहा कि अनु जोर से चिल्लाई बचाओ-बचाओ बाहर जाना है। तभी संयोग से फूफा जी कुछ लेने अंदर आए आवाज सुन वे कमरे की ओर बढ़े दरवाजे को धक्का दिया तो वह अंदर से बंद था। अंदर कौन है खोलो और जोर से दरवाजे को पीटा अंदर अनु चिल्ला रही थी मुझे छोड़ो बाहर जाना है। मम्मी के पास जाना है।
लगातार दरवाजा खटखटाने पर शिशिर को दरवाज़ा खोलना पड़ा।वह दरवाजा खोल जल्दी से बाहर की ओर बढा तभी फूफा जी ने उसका हाथ पकड़ कर पूछा क्या कर रहे थे और कहां भाग रहे हो।तब तक घबराई हुई अनु फूफाजी से लिपट गई। उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रहीं थीं। फूफाजी ने कहा यहीं खड़े रहो और अनु को गोद में लेकर प्यार से बोले बेटा शांत हो जाओ मैं हूं ना घबराओ मत।
तब तक फूफाजी को ढूंढते समीर भी वहां आ पहुंचे। पापा को देख अनु उनसे लिपट गई। शिशिर को गर्दन झुकाए खड़ा देख सब कुछ समझते समीर को देर नहीं लगी। गुस्से में समीर ने एक झापड़ शिशिर को लगाते हुए कहा बच्ची के साथ क्या किया। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतनी छोटी बच्ची के साथ यह सब करने की।
शिशिर मौन खड़ा था।
फूफाजी बोले शुक्र है भगवान का कि मैं समय पर आ गया और एक बड़ी अनहोनी होते-होते रह गई नहीं तो तुम्हें क्या मुंह दिखाता। मेरे ही घर में मेरे ही दामाद द्वारा तुम्हारी बेटी का जीवन बर्बाद हो जाता।
दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें। बाहर बारात की निकासी होने को है और इधर यह कुकृत्य जब वे दोनों बाहर नहीं पहुंचे तो नाना उन्हें ढूंढते घर में आए। सबको इस हालत में देख कर वे भी सकते में आ गए।अनु को घबराई हुई पिता से लिपटी देख माजरा समझते देर नहीं लगी फिर उन्होंने फूफाजी की ओर देखा।जब सारी बात उन्हें पता चली तो सिर पकड़ लिया। कुछ देर मौन रहने के बाद वे बोले बेटा अभी तुम सब शांत रहो बाहर सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं चलो। घर की बात है फैलाने से कोई फायदा नहीं इसका निर्णय हम बाद में करते हैं। हिम्मत एवं शांति से काम लो। इसने मेरे घर की दो-दो बेटीयों का जीवन बर्बाद किया है इसकी सजा तो इसे मिलेगी किन्तु अभी सब बाहर चलो।
सभी जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास कर रहे थे पर आघात इतना बड़ा था कि चेहरे से मायूसी जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।अनु मम्मी से लिपट कर रो पड़ी । निशी की सवालिया निगाहें समीर के चेहरे पर जम गईं जहां उसे क्रोध और निराशा के बादल मंडराते दिखे।
समीर ने उसे चुप रह बच्ची को सम्हालने को कहा। शादी संपन्न हो गई।दूर के
रिश्ते दार एक एक कर विदा हो गए। शिशिर ने भी रोमा से कहा मैं चलता हूं तुम रुकना चाहो तो रुक जाओ।
रोमा बोली एक- दो दिन रुककर चलते हैं।
कोई कहीं नहीं जाएगा नानाजी की रौबदार आवाज कमरे में गूंजी। फैसला अभी बाकी है उसके बिना तुम यहां से कैसे जा सकते हो।
यह सुन रोमा बोली कैसा फैसला,किसका फैसला नाना जी।
समय पर सब जान जाओगी। शिशिर खड़ा रोमा से नजरें चुरा रहा था।
जब घर के सदस्य ही रह गए तब फैसले की घड़ी आई। फूफाजी बोले मैं तो इतना शर्मिन्दा हूं कि घर बुलाये बच्चों के साथ बदसलूकी हुई आप सबको जो उचित लगे करो।
तब नाना जी बोले दो ही रास्ते हैं एक तो यह इसे पुलिस के सुपुर्द कर दिया जाए जहां जेल की हवा खाए तो दिमाग दुरूस्त हो जाए । दूसरे घर की बात घर में ही रहने दी जाए। इसने तो मेरी दो-दो बेटीयों का जीवन बर्बाद किया है। रोमा की शादी को अभी समय ही कितना हुआ है और इसने उसकी खुशियों में ग्रहण लगा दिया। रोमा की खुशी इसके साथ जुड़ी है तो इसे हिदायत देकर छोड़ा जाए कि यह कभी भी इस घर में किसी भी फंक्शन में कदम नहीं रखेगा। रोमा का जीवन भी अब वह नहीं रह जाएगा मन में गांठ जो पड़ चुकी है। दूसरे अनु का जीवन खत्म करने का प्रयास किया जो माफी योग्य नहीं है किन्तु रोमा को देख कर एवं परिवार की बदनामी से बचने के लिए इसका दिया दंश हमें झेलना पड़ेगा।हम ऐसे दोराहे पर खड़े हैं कि इसकी उपस्थिति ना तो निगलते बन रही है और ना ही उगलते। नाना जी दुखी होते हुए बोले इस गरल को कैसे पिएं ।
परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे। सबने नाना जी की बात पर गौर किया और उसे माना।समीर और निशी भी लौट आए।निशी जितना खुश हो कर गई थी उतनी ही मायूस होकर लौटीं। कहीं बेटी के साथ अनहोनी घट जाती तो समीर को क्या मुंह दिखाती । सभी महिलाएं उसके कृत्य से दुखी थीं। बुआ जी फूफाजी अपने आपको निशी और समीर का गुनहगार समझ रहे थे और उनसे बार-बार माफी मांग रहे थे।इस सबमें सबसे ज्यादा दुखी थी तो रोमा जिसका वैवाहिक जीवन तार-तार हो चुका था।वह विश्वास टूट चुका था जो वैवाहिक जीवन का आधार होता है। उसकी अंतरात्मा उसे ऐसे पति की पत्नी होने से धिक्कार रही थी जिसने अपनी हवस के लिए रिश्तों की बलि चढ़ा दी।वह अपने आपको बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी कि मायके में पति ने उसकी बहन के साथ ही ऐसा घिनौना काम करने की कोशिश की। फिर उसने एक कठोर निर्णय लेते हुए अपने पापा से कहा कि मैं अब इस व्यक्ति के साथ एक पल भी नहीं रह सकती सो अब मैं इससे रिश्ता तोड़ती हूं। मैं इसके साथ नहीं जाऊंगी। इसे कहो मेरी आंखों के सामने से दूर हो जाए।
वह बोला रोमा ऐसा मत करो एक बार माफ कर दो।
माफी गल्ती की दी जाती है गुनाह की नहीं,दूर हो जाओ मेरी नज़रों के सामने से।
सब दुखी थे कि बेटी का घर बसने के पहले ही उजड़ गया।
निशी अपनों के ही द्वारा दिए गए दंश को झेल नियमित दिनचर्या में व्यस्त होने का प्रयत्न कर रही थी किन्तु मन अस्थिर रहता।अनु के मन से डर निकाल उसे भी सामान्य करने में प्रयत्नशील रहती।
समय बलवान है बड़े से बड़े चाव को भर देता है सो सब समय पर छोड दिया यह कसम खाते कि अब कभी बच्चों को आंखों से ओझल नहीं होने दूंगी।
शिशिर अपने किए पर शर्मिन्दा था बार-बार सबसे माफी की भीख मांग रहा था।
तब नाना जी बोले इस वक्त तुम जाओ। यदि वक्त ने मौका दिया तो इस मसले पर विचार करेंगे अभी कुछ नहीं।
शिव कुमारी शुक्ला
जोधपुर राजस्थान
25-10-25
लेखिका बोनस प्रोग्राम
कहानी संख्या 7