अपनत्व तो अनमोल है – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

 निमन्त्रण पत्रों के वितरण का कार्य चल रहा था । परमानन्द ने सुमित को कहा ” ध्यान रखना, कुटुबं, परिवार और रिश्तेदारों में से किसी को कार्ड देना भूल मत जाना ।”

                  सुमित की माँ सुलक्षणा अलमारी खोलते हुए बोली “हाँ, बाद में कोई यह शिकायत नहीं करें कि हमें याद नहीं किया । “

                   सुमित इंडियन एयरलाइंस लाइन्स में आफिसर था और उसने देश विदेश की अनेक शादियां अटेंड की है । वह निमंत्रण पत्रों की छंटाई करते हुए बोला ” माँ, कार्ड देने पर लोगों को तो शिष्टाचार वश आना ही पड़ेगा , परन्तु सोचो आने वाले को क्या नहीं लगता? फिर कितना मुश्किल से समय निकालना पड़ता है उनको! भाभी के पीहर परिवार को कार्ड देने पर उनको अपनी बेटी, जंवाई, नाति नातियों के कपड़े-लत्ते ,  सुखी के लिए ड्रेस, बान के नगदी, कुछ न कुछ उपहार लेकर आएंगे । परेशानी के साथ आर्थिक बोझ वो क्यों भोगे! 

                  सुलक्षणा कहने लगी ” फिर क्या हो गया ? हमें भी तो हमारी बेटी और उनके परिवार वालों को बहुत कुछ देना पड़ेगा?”

                     परमानन्द बोले “भारतीय रीति रिवाज की परम्परा से अपनापन बढता है । यह हमारा प्रेम और उनके प्रति सम्मान ही है कि हम बहन बेटियों व उनके परिवार वालों को विवाह या किसी उत्सव पर कुछ उपहार देकर विदा करते हैं ।” सुमित ने कहा ” समर्थ को दोष न गुसाईं ।’ पर असमर्थ के लिए तो यह दण्ड ही है माँ!”

                         सुलक्षणा ललाट में बल डालते हुए बोली ” कौन है हमारे परिवार में कमजोर । “

                         परमानन्द  कुछ सोचकर चिंतन करते हुए बोले ” बात धन की नहीं है वरन सिद्धांत की है । परिवारों में रिश्तेदार तो सभी एक समान सम्माननीय है । कहीं कहीं एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए लोग रुपये लगाकर कम्पीटीशन करने लग जाते हैं, और कम लेने देने वाले के मन में हीन भावना आ जाती है । जिस कारण रिश्तेदारों में खटास आ जाती है । जो बहुत ही गलत है ।” सुमित ने कहा “पिताजी अगर आप सहमत हों तो हम हमारे घर से ही यह रुढिवादिता बदल दें । बड़े बड़े घरों में ये सब बन्द हो चुका है, और विदेशों में तो लोग पता ही नहीं चलता कि इस घर में शादी है ।”

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                       “वो तो उनकी सभ्यता और संस्कार वो ही जाने । हम हमारी संस्कृति, रीतिरिवाज व संस्कारों का सम्मान करते हैं । परन्तु रूढिवादिताओं का हम निरन्तर त्याग करते आएं हैं । उसमें एक लेने देने से खुश होने की बुराई और है । इसे भी इस बार त्याग देंगे ।”

        ” क्या आप अपने रिश्तेदारों से सुखी के विवाह पर कोई उपहार नहीं देंगे और उसे वस्त्राभूषण, ससुराल वालों को कपड़े सोने चांदी की वस्तुएँ नहीं देंगे ।” सुलक्षणा ने पूछा । 

           “नहीं !”

                         “अब ये कैसे सम्भव है, पिताजी?” सुमित ने पूछा । 

                         पिताजी ने कहा ” निमंत्रण पत्रों पर नाम ही लिख रहे हो या पढा भी है, कार्ड के लास्ट में मैंने साफ लिखवा दिया है कि किसी भी रिश्तेदार या मित्र से बान के नगदी, वस्त्राभूषण और उपहार नहीं लिये जायेंगे । आपका आशीर्वाद ही हमारे लिए सबसे महंगा तोफा है ।”

                    रामानंद की छोटी बेटी सुखी का विवाह बहुत ही हर्षोल्लास से हुआ । 

                     विदाई से पहले ही छोटा मोटा सामान बक्से में बन्द करके भेज दिया । किसी को पता ही नहीं लगा की विवाह में क्या कुछ दिया है ।  

            सभी बारातियों व रिश्तेदारों का पुष्प वर्षा करके भव्य स्वागत किया । व मंगलगीत गा कर विदाई दी । रामानंद के परिवार द्वारा की गयी आवभगत व मान सम्मान से सभी आत्मविभोर हो गये । सभी रिश्तेदार व बाराती रामानंद व सुमित के गले लगकर गद्-गद् हो गये । निस्वार्थ भाव के सहज प्रेम को देखकर लोगों की आंखें भावुकता वश डब डब होने लगी । आज लेने देने से खुश होने की प्रवृत्ति पर विराम लग गया ।

    नेमीचन्द गहलोत

                   नोखा, बीकानेर (राज.)

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