अपनत्व की छांँव – निभा राजीव”निर्वी”

सत्रह वर्षीया किशोरी राशि के केश तेज हवा के झोंकों से उड़ रहे थे। वह होठों को भींचे हुए रेलवे प्लेटफार्म पर खड़ी थी। उसकी डबडबाई हुई दृष्टि पटरियों की ओर जमी हुई थी। तभी दूर से रेल की सीटी सुनाई थी और रोशनी चमक उठी। राशि दो कदम और पटरियों की ओर बढ़ गई। सुपर फास्ट रेल पूरी गति से बढ़ती हुई आ रही थी। इस स्टेशन पर वह नहीं रुकती थी अतः गति बहुत द्रुत थी। रेल के पास आते ही राशि उसके सामने छलांग लगाने के लिए तत्पर हो गई कि अचानक दो हाथों ने उसे पीछे की ओर खींच लिया और रेल धड़धड़ाती हुई आगे चली गई। राशि पीछे की ओर गिर पड़ी। राशि का पूरा शरीर पत्ते की तरह काँप रहा था। उसने दृष्टि उठाकर देखा तो पाया कि स्टेशन पर चने बेचने वाली एक बूढ़ी अम्मा ने उसकी बांह पड़कर खींचकर उसकी छूटती जा रही जीवन डोर के सिरे को थाम लिया था। उनकी बूढ़ी हथेलियां के बीच अभी भी राशि की बांह पड़ी थी। उसने हौले से अपनी बाँह छुड़ाई और हताश सी वहीं पास रखे बेंच पर बैठ गई और फूट-फूट कर रो पड़ी। अम्मा भी उठकर पास आ गई और रोती हुई राशि का सिर स्नेह से सहलाने लगी। जब राशि थोड़ा संयत हुई तो अम्मा ने स्नेहपूर्वक पूछा, “-तुम कौन हो बिटिया और ई कदम काहे उठाने जा रही थी??”

           उनके इस प्रश्न पर राशि की फिर से रुलाई फूट पड़ी, “-आपने मुझे क्यों बचाया अम्मा! मुझे मर जाने दिया होता!” 

         अम्मा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, “- ऐसा नाहीं बोलते बिटिया! ई जिनगी तो बहुत अनमोल है और ऊपर वाले का प्रसाद है। का हुआ है तुमको ?

तुम तो हमको नाहीं जानत हो, तो मन की बात हमको बोल दो मन हल्का हो जाएगा। हम थोड़े ही ना किसी को बोलेंगे..”

        पता नहीं उनके स्नेह भरी बातों में कैसा सम्मोहन था कि राशि पिघल गई। और उसने अपने एक-एक करके अपने जीवन के सारे पन्ने अम्मा के सामने खोलने प्रारंभ कर दिए। 

              राशि के पिता एक विद्यालय में शिक्षक थे, और मांँ एक सुघड़ गृहिणी! तब राशि बहुत छोटी थी। बहुत प्यार भरी दुनिया थी उन तीनों की। परंतु उनकी हंँसती खेलती इस दुनिया पर काल की कुदृष्टि पड़ गई। एक दिन विद्यालय से आते समय राशि के पिता सड़क दुर्घटना की चपेट में आ गए और घटनास्थल पर ही उन्होंने दम तोड़ दिया। एक क्षण में सब कुछ उजड़ गया। राशि और राशि की मांँ के जीवन में जैसे एक बवंडर सा आ गया। चारों ओर दुख का अथाह समुद्र और उससे उबारने के लिए कहीं कोई हाथ दृष्टिगत नहीं हो रहा था। परंतु राशि की माँ ने हिम्मत नहीं हारी। उन्हें सिलाई कढ़ाई आती थी तो उन्होंने लोगों के कपड़े सीकर गुजारा करना प्रारंभ कर दिया और राशि की पढ़ाई भी चलती रही। राशि शुरू से ही बहुत मेधावी छात्रा थी और हर कक्षा में बहुत ही अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होती रही जब तक कि वह कक्षा ग्यारहवीं मैं नहीं आ गई और उसकी मुलाकात हिमांशु से नहीं हो गई। हिमांशु उसकी कक्षा में नया-नया आया था। उसके उच्च पदस्थ पिता का स्थानांतरण किसी दूसरे शहर से इस शहर में हुआ था। हिमांशु पढ़ाई लिखाई में तो साधारण ही था परंतु उसके पिता काफी समृद्ध और प्रभावशाली थे, जिसकी छाप उसके पहनावे और हाव-भाव में स्पष्ट दिखाई देता था। उसकी हर बात में एक अलग ही अदा होती थी। कक्षा कि प्रत्येक लड़की उससे बहुत प्रभावित हो गई और उसका सान्निध्य पाना चाहती थी। केवल राशि ही थी जो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिए रहती थी। उसे इन बातों से कोई मतलब नहीं था और उसकी यही बात हिमांशु को भा गई। अब वह किसी न किसी बहाने से राशि के आसपास मंडराता रहता था कभी नोट्स के बहाने तो कभी पढ़ाई में सहायता के बहाने। और हर तरह से राशि का ध्यान रखने का प्रयास करता था। धीरे-धीरे राशि को भी पता नहीं चला कि कब उसका मन भी हिमांशु की ओर खिंचने लगा और वह हिमांशु के प्रेम में आकंठ डूब गई। उसने अपना सब कुछ हिमांशु पर न्योछावर कर दिया। और उसकी इस मन:स्थिति का प्रभाव उसकी पढ़ाई लिखाई पर भी पड़ने लगा। परीक्षाओं में उसका प्रदर्शन पूर्व की अपेक्षा बहुत ही निम्न हो गया। और यदि माँ भी कुछ समझाने का प्रयास करती तो राशि की प्रतिक्रिया बहुत तीखी हो जाती थी। राशि की मां को भी समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या होता जा रहा है। परंतु राशि पर इन सब बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। उसके मन पर तो केवल और केवल हिमांशु ही छाया हुआ था। 

             उस दिन भी हिमांशु ने उसे विद्यालय की छुट्टी के उपरांत पास वाले पार्क में बुलाया था। वह मन ही मन पुलक उठी। छुट्टी होते ही उसने अपना बस्ता उठाया और तेजी से आगे बढ़ी। वह शीघ्रातिशीघ्र घर पहुंचना चाहती थी ताकि वह जल्दी से कपड़े बदलकर हिमांशु से मिलने जा सके। वह अपनी साइकिल के पास पहुंची और साइकिल की चाबी ढूंढने लगी पर चाबी उसके बस्ते में कहीं नहीं थी। अचानक उसे याद आया कि उसने कक्षा में अपनी कॉपी ढूंढते समय चाबी निकाल कर बाहर रखी थी और शायद वह उसे वापस बस्ते में रखना भूल गई। याद आते ही वह तुरंत वापस कक्षा की ओर मुड़ गई वह कक्षा तक पहुंची थी कि अंदर किसी की फुसफुसाहट की आवाज सुनकर उसने बाहर से ही खिड़की से भीतर झांका। अंदर का दृश्य देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। 

अंदर उसकी कक्षा में ही पढ़ने वाली माला और हिमांशु खड़े थे। हिमांशु बड़े प्यार से माला के चेहरे पर झूलती हुई लटों को उसके कानों के पीछे फंसाते हुए बहुत प्यार भरी आवाज में उसे शाम को शहर के महंगे वाले मॉल और मल्टीप्लेक्स में मिलने के लिए बुला रहा था, जहां दोनों मूवी देखेंगे और साथ में समय व्यतीत करेंगे।

यह सब सुनकर राशि आपे से बाहर हो गई और उससे और सुना नहीं गया और वह धड़धड़ाते हुए अंदर पहुंच गई। उसने तड़प कर चीखते हुए कहा,”- यह सब क्या है हिमांशु??तुम माला के साथ क्या कर रहे हो??”

       उसे ऐसे अचानक सामने देख कर एक क्षण को तो हिमांशु अचकचा गया फिर उसने तुरंत संभलते हुए कहा, “-अरे मैं माला से कुछ नोट्स मांग रहा था, एग्जाम्स पास आ रहे हैं ना!”

   राशि फिर चीखी,”-झूठ मत बोलो हिमांशु! मैंने सब कुछ सुन लिया है! मुझे मालूम नहीं था कि तुम इतनी गिरे हुए इंसान हो, वरना मैं तुमसे कभी बात भी नहीं करती। छी: मुझे खुद से भी घिन आ रही है।” 

       उसकी बात सुनकर एक बार को तो हिमांशु स्तब्ध रह गया फिर अचानक उसके चेहरे पर निर्लज्जता और ढिठाई के भाव नाचने लगे। उसने विद्रूपता से मुस्कुराते हुए कहा, “- अब जब तुमने सब कुछ सुन ही लिया है राशि तो तुम समझ ही गई होगी कि हम अमीर लड़कों के लिए लड़कियों के साथ घूमना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है! और तुम भी मेरे लिए एक टाइम-पास ही थी। 

वह तो मैं तुम्हें इसलिए अपना टाइम दे रहा था क्योंकि जहां एक और सारी लड़कियां मेरा साथ पाने को बेचैन रहती थी वहीं तुम मुझ पर ध्यान नहीं दे रही थी तो तुम्हें जीतना मेरे लिए एक चुनौती बन गई थी। बस इतना ही.. और कुछ नहीं..! इसलिए अब जब तुमने सब कुछ सुन ही लिया है तो फालतू का कोई भ्रम मत पालो और अपने घर जाओ! “

         राशि को ऐसा लगा जैसे वह चक्कर खाकर गिर पड़ेगी, तभी हिमांशु ने उसे थामते हुए निर्लज्जता से मुस्कुराते हुए कहा, “-वैसे अगर तुम चाहो तो हम पहले की तरह सब कुछ जारी रख सकते हैं! इन सब बातों से क्या फ़र्क पड़ेगा और किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा! हम एंजॉय करते रहेंगे!”

            राशि का हृदय विदीर्ण हो गया और उसने वितृष्णा से हिमांशु को जोर का धक्का दिया और उसकी बाहों से छूटकर तेजी से साइकिल की चाबी उठाई और अपनी साइकिल की ओर दौड़ पड़ी।

               वह जैसे तैसे घर आई और कटे वृक्ष की भाँति अपने बिस्तर पर ढह गई। मांँ उससे बार-बार पूछती रही कि क्या हुआ है। लेकिन वह मां को कुछ भी बता कर उसे और दुखी नहीं करना चाहती थी। मांँ ने उसे इतनी दुख और तकलीफों से पालकर बड़ा किया और उसने क्या किया! ग्लानि और क्षोभ से उसकी आंखों के आंसू नहीं थम रहे थे। उसने माँ से सिरदर्द का बहाना किया और मुंह पर चादर रखकर सोने का नाटक करने लगी परंतु वह मन ही मन कुछ निश्चय कर चुकी थी। उसने सोच लिया था कि इस घृणास्पद जीवन का अब वह अंत कर लेगी। और इसीलिए वह यहां आई थी।” 

               पूरी कहानी बात कर राशि फिर से सिसक पड़ी, “- आपने तो मुझे मरने भी नहीं दिया अम्मा!” 

            अचानक राशि ने देखा कि अम्मा का पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ है। 

और वह पूरी तरह से कांप रही है। राशि ने घबराकर उन्हें थामते हुए पूछा,”- क्या हुआ अम्मा?? आप ठीक तो हैं??”

            “बिटिया, तुम्हरा बात सुनकर हमको आपन कहानी याद आ गया! हमरी एकहिं बिटिया थी। ऊ बहुते बीमार हो गई और हम गरीबों के कारण इलाज नाहीं कर पाए। और हमरी बिटिया हमको छोड़ कर चली गई। ऊके अलावा हमरा कोनो अउर सहारा नाहीं था। बिटिया को खोने का दर्द का होता है ई हम बहुते अच्छा से जानते हैं! मर मर के जिंदा है हम! घर दुआर तो हमारा है नाहीं। टेशने पर रहते हैं, यहीं सोते हैं और चना बेचते हैं। लगता है जैसे कुच्छो बाकी नाहीं रहा।”

    फिर गहरी सांस लेते हुए बोली,”- छोड़ो हमको… तुम बताओ तुम एक्को बार सोची कि तुम्हरे नाहीं रहने से तुम्हरी माई का का होगा! ऊ कितना तकलीफ से तुमको पाल पोस कर बड़ा की, तुम्हरा कुच्छो फर्ज है कि नहीं?? किसी का धोखा तुम्हरी माई के प्रेम से बड़ा है का?? तुम तो चली जाओगी तो ऊ जिंदा रह पाएगी का?? कउन संभालेगा उसको??”

        अम्मा की बात सुनकर अचानक राशि की आंखों के सामने उसकी मां का कृशकाय, निरीह और जीवन की झंझाओं से टूटा हुआ चेहरा घूम गया जिसकी सारी दुनिया राशि के चारों ओर ही घूमती थी। अचानक राशि को लगा कि वह कितनी बड़ी गलती करने जा रही थी। एक बार तो गलती कर ही चुकी थी और दूसरी गलती यह करने जा रही थी कि इस भरी दुनिया में वह अपनी मांँ को बेसहारा छोड़कर मात्र अपने विषय में सोच रही थी। 

        तभी अम्मा की आवाज पुनः उसके कानों से टकराई, “-देखो बिटिया रात बहुते हो चुका है! अब तुम अपने घर जाओ! तुम्हरी माई कितना परेशान होगी!” 

         राशि ने भरे गले से कहा, “-हां अम्मा, आज आपने मेरी आंखें खोल दीं। एक गलती तो मैं कर चुकी हूं, अब दूसरी गलती नहीं करूंगी।मैं अभी घर जा रही हूं मांँ के पास!”

        अम्मा ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ फिराया और अपनी टोकरी में से एक दोने में थोड़े चने निकाल कर देते हुए कहा,”- थोड़ा ई खा लो, भूख लगा होगा!”

         भूख तो राशि को सचमुच में लग रही थी लेकिन वह चने लेते हुए हिचकिचाने लगी तो अम्मा ने प्यार से कहा, “-अरे काहे इतना सोच रही हो! हम तुमको बिटिया बोले तो इतना तो हक हमरा बनता है कि नाही!हमको पइसा नाही चाहिए ।तुम ई चना खा लो और घर जाओ! अपनी मांँ का खूब ध्यान रखना और खूब मन लगाकर पढ़ाई करके बड़ा ऑफिसर बन जाना और अपनी मां को बहुते सुख देना!”

               मुस्कुरा कर राशि ने चने का दोना थाम लिया। 

              कई वर्ष बीत गए। कांपते हाथों से स्टेशन पर अम्मा ग्राहकों को चने के दोने पकड़ा रही थी। वृद्धावस्था ने उनके शरीर को और जर्जर कर दिया था। तभी किसी ने चने के दोनों के स्थान पर अम्मा के दोनों हाथ थाम लिए। अचकचाकर अम्मा ने ऊपर देखा और चेहरा देखकर पहचान का प्रयास करने लगी परंतु अब दृष्टि इतनी धुंधला गई थी कि कुछ ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। सुंदर और शालीन साड़ी में सजी एक युवा स्त्री मालूम पड़ रही थी। अम्मा ने उलझन भरे स्वर में पूछा,”- कउन हो बिटिया?? तुमको का चाहिए??”

           उसे स्त्री ने उनके बगल में बैठते हुए स्नेहपूर्ण स्वर में कहा,”- हमको हमारी प्यारी सी ये अम्मा चाहिए! आपने शायद मुझे नहीं पहचाना अम्मा! मैं राशि हूं ।आज से कई वर्षों पहले की बात है…”

       पूरा घटनाक्रम याद दिलाने के बाद राशि ने भावुक स्वर में कहा, “-अम्मा, यदि आप उस दिन नहीं होती तो पता नहीं क्या होता! आपने मुझे नए जीवन की दिशा दिखाई! मेरे टूटे हुए हौसले को फिर से जोड़ा और अपनी साधारण सी भाषा में मुझे असाधारण ज्ञान देते हुए नई प्रेरणा दी। आप नहीं होती तो अब तक सब कुछ बिखर गया होता! देखिए, आपने कहा था ना, बिटिया एक बड़ी ऑफिसर बन जाना तो आपकी यह बिटिया बड़ी अफसर बन चुकी है और अब आपके पास लौट आई है।”

             भावातिरेक अम्मा का गला भर आया। उन्होंने आशीष से देते हुए कहा, “- खूब खुस रहो बिटिया! खूब नाम कमाओ! आज तुमको देखकर हमारा कलेजा जुड़ा गया..”

          राशि में हंसते हुए कहा,”- ऐसे नहीं अम्मा! अब आप कल से यहां स्टेशन पर नहीं रहोगी। चलो मेरे साथ!”

          अम्मा ने हड़बड़ाते हुए कहा,”- ना..ना.. का कह रही हो बिटिया! अब हम अउर कहीं नहीं जाएंगे पूरा जिनगी! हमरा मन तो अब इसी टेशन से जुड़ गया है, बाकी का जिनगी भी यही काटेंगे! अब हम कहीं नहीं जाएंगे।”

       हंस पड़ी राशि,”- हां अम्मा, मुझे मालूम था आप यही कहोगी। इसीलिए मैं आपको स्टेशन से ले भी नहीं जाऊंगी! नहीं दूर करूंगी आपको आपकी जड़ों से! इसीलिए मैंने स्टेशन के पास ही आपके लिए एक कमरा ले लिया है जो सभी सुविधाओं से युक्त है। आप वहां रहोगी। और मैंने आपके लिए एक सहायक के लिए भी बात कर ली है जो आपके साथ रहकर चने बेचने में आपकी सहायता करेगा, आपकी नई दुकान पर जो मैंने बनवाई आपके लिए! यहीं स्टेशन के पास! आप पूरा दिन यहीं रहना! अब खुश! देखो अम्मा मना नहीं करना! याद है न वो बात, बिटिया कहा तो इतना हक तो बनता है। आपकी यह बिटिया जब जीवन के ताप में झुलस रही थी तो आपके अपनत्व की छांँव ने सब कुछ शीतल कर दिया था। अब उस छांव से मुझे वंचित मत कीजिए अम्मा। मैं आती रहूंगी आपके पास। आप समझ लो कि आपकी खोई हुई बिटिया आ गई है फिर से आपके पास।”

              भावों के उद्वेग से अम्मा की धुंधलाई आंखों से आंसू बहने लगे। राशि ने झट से उनके कांँपते हुए कृशकाय और जर्जर शरीर को अपने अंक में भर लिया। अपनत्व की छांँव और दूर तक पसर गई।

✍️निभा राजीव”निर्वी”

स्वरचित और मौलिक रचना

मुंद्रा, गुजरात

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