अपमान क्या? – लतिका पल्लवी 

टेलीविजन देखते देखते अचानक गुरुवारी अचानक चिल्लाते हुए बोली तुम क्या जानो अपमान क्या होता है? यह सुनकर उसकी चाची नें कहा अरे!बिटिया क्यों और किस पर चिल्ला रही हो?यहाँ तो कोई नहीं है! कुछ नहीं चाची वो नेता जो टी वीं मे बैठी है उसी की बात को सुनकर गुस्सा आ गया था।

गुरुवारी नें कहा। नेता पर! ऐसा क्या कह दी वह? और चिल्ला तो ऐसे रही हो जैसे वह तुम्हारी सुन ही रही है?चाची नें हँसी उड़ाते हुए कहा। वही तो बात है

चाची हमारी बात ही तो नहीं सुनते है यह नेता सब। तब भला ये हमारे भले के लिए क्या काम करेंगे? गुरुवारी नें दुख व्यक्त किया। पर वह बोली क्या? चाची नें फिर पूछा। चाची तुम्हे नहीं पता है आज सुबह जब प्रधानमंत्री जी नें झंडा फहराया तो अपने भाषण मे क्या कहा? नहीं मुझे क्या पता?

मै कौन जो तेरी तरह टी वीं मे चिपकी रहती हूँ। तु ही है जो दिनभर बैठकर टी वीं देखती रहती है मुझे तेरे जैसे फुरसत कहा रहता है।घर मे ढेरों काम रहते है।सुबह जल्दी जल्दी उठकर मैदान जाओ फिर घर के कामों मे लगी रहो। इसमें कब शाम हो जाता है

पता ही नहीं चलता है। चाची नें अपना दुखड़ा सुनाते हुए गुरुवारी के टी वीं देखने पर कटाक्ष किया। हमारे प्रधानमंत्री जी नें सभी के घरो मे शौचालय बनाने की बात की है। इसी पर सब लोग चर्चा कर रहे है। वही नेता कह रही थी कि स्वतंत्रता दिवस का अवसर हो या गणतंत्र दिवस का अवसर हमारे प्रधानमंत्री लाल किला

के प्राचीर से देश को सम्बोधित करते है और देश के लिए उनकी क्या योजनाए है उसे देश को बताते है। यह परम्परा आजादी काल से चलता रहा है। इस अवसर पर दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण पर देश विदेश के लोगो का ध्यान टिका रहता है।

इस बार प्रधानमंत्री नया क्या बोलेंगे? देश के भविष्य के योजनाओं को देश के साथ साँझा करेंगे। अब तक किए गए अपने कामों के बारे मे कुछ वक्तव्य देंगे।सभी प्रधानमंत्री नें यह किया है। हमारी पार्टी का राज इस देश पर कितने वर्षो तक रहा है। हमने आज तक कितने प्रधानमंत्री दिए है।

पर आज देश के एक प्रधानमंत्री नें जो योजना साँझा किया है वह कितना भद्दा है इसे बताया नहीं जा सकता।उन्होंने एक लज्जा के विषय को सार्वजनिक करके एक तरह से आधी आबादी को शर्मिंदा किया है। उन्हें अपने इस वक्तव्य के लिए देश की महिलाओं से माफ़ी मांगनी चाहिए।

टेलीविजन के एक समाचार चैनल पर डिबेट चल रहा था जिसमे यह वक्तव्य कांग्रेस पार्टी के साथ और कई पार्टी के लोग प्रधानमंत्री के इस भाषण का विरोध कर रहे थे जो उन्होंने लालकिला से कहा था कि मुझे तब बहुत ही शर्मिंदगी महसूस होती है जब सुनता हूँ कि इतने वर्षो की आजादी के बाद भी

हमारी माताओ, बहनो को खुले मे शौच के लिए जाना पड़ता है। मै तो यह सोच ही नहीं पा रहा कि इस तरह के जीवन जीने को मजबूर माता, बहन को कितनी शर्मिंदगी होती होगी? इस बारे मे सुनकर के जब मुझे इतना बुरा लग रहा है तो वे सब तो इसे झेल रही है।

इसलिए इस बार मेरी योजनाओं मे सबसे प्रमुख योजना है, हर घर मे शौचालय का निर्माण। मै अपने इस बार के कार्यकाल मे हर घर मे शौचालय निर्माण के लक्ष्य को पूरा करने की घोषणा करता हूँ।किसी भी योजना घोषणा करना सरकार का काम है और उसके कमियाँ उजागर करना विपक्ष का।

यह सब तो चलता रहा है और आगे भी चलता रहेगा। पर इस बार प्रधानमंत्री नें ऐसे विषय को छू दिया है जिसे समाज पर्दा का विषय समझाता रहा है और पर्दा के आड़ मे अपनी आधी आबादी के तकलीफो से मुँह मोड़ता रहा है।यह कार्यक्रम देश के एक सुदूर गाँव मे देखा जा रहा था

क्योंकि आज टेलीविजन लगभग हर घर मे है। भले ही घर मे शौचालय हो या ना हो।इस प्रोग्राम को देखने के क्रम मे उस घर की बेटी जिसे शौच के लिए खेत मे जाना पड़ता है का गुस्सा फूट पड़ा था। बाप रे बाप इतना बकर बकर क्या क्या टी वीं मे दिखाता है और तु यही सब देखकर इतना बोलने लगी है।

चाची नें आश्चर्य से गुरुवारी को देखा। मेरे बकर बकर पर ध्यान मत दो।यह बताओ कि प्रधानमंत्री के ऐसा कहने से हमारा अपमान हुआ? गुरुवारी नें चाची से पूछा।हमरा अपमान क्या और मान क्या? मान अपमान तो बिटिया बड़े लोगो का होत है।पर शौचालय की बात प्रधानमंत्री के द्वारा करना कुछ अजीब नहीं लगता?

चाची नें सवाल को सवाल से ही टाल दिया। तो चाची तुम कहना चाहती हो कि तुम्हे शौच के लिए खेतो मे जाने मे कोई दिक्कत नहीं है? गुरुवारी नें फिर प्रश्न किया। दिक्कत का क्या है बेटी हमें तो इसकी आदत है और हमारे तकलीफ होने से भी क्या है  जब इनके घरो मे शौचालय है तो इन्हे हमारी तकलीफ समझ आएगा?

चाची नें सवाल का जबाब सवाल से ही दिया। वही तो चाची इनके घरो मे ही नहीं इनके सोने वाले कमरों मे भी शौचालय होता है। गुरुवारी नें चाची को बताया।यह क्या कह रही हो बिटिया कमरा मे शौचालय!हाँ चाची कमरा मे। सोचो जब मन करे तब शौच के लिए चले जाओ कोई तरह की बंदीस नहीं।

बाहर का तो छोड़ो घर के मर्द भी नहीं जानते कि कब शौच कर के चली आई। और एक हमारा है कि ज़रा सा नींद खुलने मे देर हुई नहीं कि चिंता शुरू, लो आज तो ठीक से शौच कर भी पाएंगे कि नहीं, कभी दोपहर मे यदि जरूरत पड़ गई तो दिनभर छटपटाते हुए रात होने का इंतजार करो

और उसपर भी गाँव के मनचलो का ख़ौफ़। सबको देखते रहेंगे और अंदाजा लगाते रहेंगे कि किसके घर से निकली है और उसकी कौन हो सकती है। आपस मे बतियाएंगे कि फ़लाना की बेटी है तो दूसरा कहेगा नहीं बहू है तो बीबी है। बताओ तो चाची भला तब हम महिलाओं का अपमान नहीं होता है? गुरुवारी नें कहा।

वह तो ठीक ही कह रही हो बिटिया। आदमी जी भर के खाना भी नहीं खा पाता कि शौच ना लग जाए। कल ही मैंने इस डर से फेनुस नहीं खाया। चाची मे अपना दर्द साँझा किया।अब बोलो चाची प्रधानमंत्री जी नें सही किया कि नहीं।बोलो, बोलो चुप क्यों हो? वह तो सही ही किया। सच मे हमारे घरो मे शौचालय बन जाएगा तो हमें इन परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी। चाची नें इस बात को माना।

सोचो चाची आज जब सभी पढ़ने का मौका माँग रही है तो कोई नौकरी का मौका माँग रहा है कुछ लोग तो चाँद पर जाने का मौका माँग रहे है और हम आज भी शौच करने का एक और मौका माँग रही है और सोच रही है कि सूरज थोड़ा जल्दी डूबता तो हमें फिर से शौच जाने का मौका मिल जाता।

हम सभी लिखने और पढ़नेवाली लेखिका और पाठक पाठिका शायद उन औरतो का दर्द नहीं समझ पाए जिन्हे आज भी शौच के लिए खुले मे जाना पड़ता है क्योंकि हमने उस स्थिति को नहीं झेला है। मैंने आप सब से बस उनके दर्द को साँझा करने का एक प्रयास भर किया है। आप इस विषय पर अपने कमेंट्स जरूर दे।

विषय –एक और मौका 

लतिका पल्लवी 

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