राधेश्याम जी हाथ को पीछे किए लोन में चक्कर काटे जा रहे थे और मन ही मन बड़बड़ाने का सिलसिला जारी था।
तभी उनकी पत्नी मृदुला जी पानी का गिलास लेकर पहुंचीं ” ये लीजिए कम से कम कुल्ला तो कर लीजिए।”
हो सकता है ट्रेन लेट हो।
राधेश्याम जी ने घड़ी देखी फिर बोले ” वैसे ये ट्रेन लेट होती तो नहीं है फिर भी क्या पता?”
तुमने कनिका और विहुल के लिए उनके पसंद का खाना तो बना लिया ना ?
आते ही गुलाबजामुन मांगेगा ।
मृदुला जी बोली ” बेटे ,बहु और पोते की इतनी चिंता और मुझे कभी पूछा भी नहीं “
तभी मोबाइल में कॉल आई।
लगता है पहुंचने वाला है।
फोन उठाते ही आवाज आई ” पापा हम लोग दो दिन बाद आयेंगे।”
दरअसल विनीता बोली ” पहले मुझे मायके मिला लाओ फिर वहां चलेंगे।”
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आप इंतजार मत कीजिएगा ।और फोन काट दिया
राधेश्याम जी गुस्से में बोले ” देखा अपने बेटे को डायरेक्ट ससुराल चला गया मां,बाप इंतजार में भूखे प्यासे राह तक रहे है पर इन बच्चों को अपने पैरेंट्स की
बिल्कुल भी चिंता नहीं रहती ।
हमारे सम्मान को कहां,कब ठेस पहुचानी है बस ये ध्यान रखेंगे।
इस उम्र में इतना अपमान सहन करना पड़ेगा सोचा भी ना था?
मृदुला ;”ओफ हो कोई काम हो गया होगा आप भी नाहक ही परेशान हो रहे हैं?”
राधेश्याम जी का मन रखने के लिए मृदुलने बोल तो दिया पर मन ही मन तो रोना आ रहा था।
और बहु मायके रुक जाती तुम्हे रुकने की क्या जरूरत थी।
और कोई काम भी था तो मुंह से बता देना चाहिए।
मेरी कमर में दर्द है फिर भी जतन से तरह तरह के व्यंजन बना रही हूं।
पर इन लोगों को क्या परवाह ?
यहां नहीं आना था तो स्पष्ट बताते ?”
मन ही मन बुदबुदाते हुए अन्दर चली गई।
सिर्फ राधेश्याम जी के हिसाब का खाना बाहर रखा बाकी फ्रीज में रख दिया।
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फिर बाहर जाकर बोली ” अब थोड़ा आराम कर लो
आपके बीपी हाई हो जायेगा।
क्यों चिंता करते हो ?
आजकल के बच्चे हैं ज्यादा अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए
वर्ना जीवन में दुख ही दुख है।”
राधेश्याम जी ने एक लंबी श्वास ली और बोले हां तुम ठीक ही कह रही हो चलो थोड़ा लेट लेता हूं फिर खाना खाऊंगा।
और अपने कमरे में बेड पर जाकर लेट गए।
हालाकि मन बेचैन था ।
पर उपाय भी क्या था?
करीब दो घंटे बाद ही डोर बेल बजी।
राधेश्याम जी बुदबुदाते हुए उठने लगे ” कौन होगा इस वक्त चश्मा हाथ में लेकर लगाने ही वाले थे कि विनीता बोली ” रहने दीजिए मैं देखती हूं “
और गेट खोलने चली गई।
गेट खोलते ही दंग रह गई ” सामने पोता ( सिद्ध)) खड़ा था।”
तभी पीछे से कनिका और विहुल भी आ गए।”
सिद्ध तो दादी दादी करता हुआ चिपक गया और बेटे बहु पैर छूने लगे।
विनीता तो खुशी के मारे बोल ही नहीं पाई ।
बस मुख से सुनो जी,सुनो जी निकल रहा था।
राधेश्याम जी आवाज सुनकर बोले ” क्या हुआ आ रहा हूं” कहते हुए बाहर आ गए ।
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बच्चो को देखते ही उनका गुस्सा तो मानो फुर्र से उड़ गया।
और खुशियों को नए पंख मिल गए।
अरे वाह मेरे बच्चे आ गए तीनों को ढेरो आशीर्वाद देने लगे।
फिर अचानक पूछ बैठे ” विहूल तुम तो कल्याण जी के यहां चले गए थे फिर अचानक?
कनिका बोली ” हांजी पापा जी वो मम्मी की तबियत ठीक नहीं है हॉस्पिटल में आईसीयू में है इसीलिए पहले उन्हें देखने चले गए थे।
फिर पापा बोले ” जैसे मैं आज भी मेरे बेटे का इंतजार कर रहा हूं ठीक वैसे राधेश्याम जी भी तुम लोगों का बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे।
आईसीयू में तो वैसे भी किसी को जाने नहीं देते तो तुम
अपने ससुराल चली जाओ ।
सुनते ही राधेश्याम जी बोले ” इतनी बड़ी बात थी तो बताना चाहिए था न ?
हम तो यहीं थे थोड़ी मदद हो जाती अकेले परेशान होना पड़ा।
और फिर विनीता की तरफ मुंह कर बोले ” सुनो तुम बच्चों को फटाफट खाना खिलाओ और टिफिन में खाना पैक करो अभी हॉस्पिटल चलना है।
मेरे समधी जी मेरे यहां होते सोते परेशान हैं।
ये तो गलत बात है।
इतला तो करनी चाहिए ना?
विहुल बोला ” पापा आराम से “
आपकी तबियत भी ठीक नहीं रहती इसीलिए नही बताया होगा।
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चलिए पहले आप खाना खाइए फिर आपको पापा जी से मिला लाऊंगा।
राधेश्याम जी गुस्से में बिफर पड़े ” अरे तुम्हे यही दिन देखने के लिए इतना पढ़ाते लिखाते हैं कि तुम ज्यादा पैकेज का झांसा देकर हमे छोड़ कर चले जाओ।
सब चुप थे।
फिर अचानक राधेश्याम जी बोले ” विहुल कान खोल कर सुन लो जब तक समधन जी ठीक नही हो जाती तुम
हॉस्पिटल नही छोड़ोगे इस वक्त हमे नही तुम्हारी जरूरत उनको है।”
और कनिका तुम दिनभर अपने पापा के साथ रहो रात में उन्हें यहीं लेकर आओ ।
मेरे साथ रहेंगे तो मन हल्का रहेगा।
बाकी काम विहुल संभाल लेगा ।
तुम मेरी बहु हो तो ये भी उनका दामाद है।”
कनिका को पापा जी के इस फैसले की उम्मीद नहीं थी।
तुरंत राधेश्याम जी के पैर छुए और बोली ” थैंक यू पापा जी”
राधेश्याम जी बोले ” अपनी मम्मी का ध्यान रखो तुम्हे पता है?
बुजुर्गों की सेवा और आशीर्वाद में बहुत दम होता है।
और खाना खाकर तुरंत हॉस्पिटल निकल जाते हैं।
और सिद्ध दादी के साथ खेलने में व्यस्त हो जाता है।
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पर दादी साहब के मन में दादा साहब के चेहरे पर मुस्कान देख विचार कौंधने लगा ” अभी थोड़ी देर पहले तो बच्चों पर गुस्सा कर रहे थे और परिस्थितियां बदलते ही दृष्टिकोण भी बदल गया।
देखो तो हॉस्पिटल जाने को तैयार हो गए जो तो सही बेटे को भी हिदायत दे दी जब तक समधन जी ठीक न हो वही रहना।”
और फिर दूसरे पल ही गौरवांवित महसूस करने लगी।
तभी सिद्ध बोला ” अरे दादी साहब आपका ध्यान कहां है
आप तो आऊट हो गईं ।”
विनीता जी सोचने लगीं ” देखो तो बच्चे नही आए तो चिड़चिड़ा रहे थे ।
और अब ……….…?
पूरा दृष्टिकोण ही बदल गया।
तभी सिद्ध ने दादी साहब को झकझोरा ” दादी आप क्या सोच रही हो आप हार गई मुझसे।
दादी बुदबुदाने लगी ” इस हार में ही तो जीत नजर आती है।”
दीपा माथुर