अपनों की पहचान – मधु वशिष्ठ : Moral stories in hindi

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मैं अपने ही घर में  हूं और यहां सब मेरे अपने ही हैं परन्तु मां को ख्याल क्यों नहीं आ रहा कि वह कह क्या रहीं है? मैं 30 साल की होने को आई हूं,  परंतु वह कह रही हैं  कि शीतल जो कि।  मुझसे 4 साल छोटी है, क्यों ना उसका विवाह कर दिया जाए? शीतल ने पीछे वाली गली में रहने वाले श्रीधर के साथ शादी करने का फैसला किया है। मां लगातार कहे जा रही थी कि श्रीधर अच्छा लड़का है।  किसी प्राइवेट कंपनी में कंप्यूटर्स का काम करता है। शीतल भी ग्रेजुएशन के बाद एक दफ्तर में कंप्यूटर ऑपरेटर लगी हुई थी। ऐसे ही मैने मां को बोला शीतल तो अभी छोटी है। कहां छोटी है ?अभी 26 में लग जाएगी जाने फिर ऐसा रिश्ता मिले ना मिले ।

  अभी तो श्रीधर के माता-पिता भी तैयार हैं। आजकल दहेज की इतनी मांग है, वह लोग तो कुछ मांग भी नहीं रहे। इससे पहले कि लड़की अपने आप कुछ कर ले हम  2 महीने बाद नवंबर में इसका विवाह कर ही देते हैं।

        पवन की भी अगले साल तक बीटेक खत्म हो जाएगी और साथ ही तेरी जिम्मेदारियां भी, बेटा तूने इस घर के लिए बहुत किया है, हम तो तेरा एहसान भूल ही नहीं सकते। बस इसके बाद हमेशा के जैसे ही वह मेरी तारीफों के फुल बांधती रहीं।

      मैं शुरू से ही पढ़ने में होशियार थी और मेरा सपना आईएएस बनने का था। शीतल क्योंकि मां पर गई थी तो वह बहुत गोरी और सुंदर भी थी। मैं अपने पिता के जैसे बेहद बुद्धिमान थी। लेकिन आज के समय में लोगों को गोरी चमड़ी वाली अल्हड़ शीतल ही भाती थी।  मैंने अपना सारा ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर लगा रखा था यह समझ मुझे बचपन में ही आ गई थी कि जब भी कभी शीतल और उसकी तुलना होती है तो वह  खुद को नीचा पाती है और उसके ऊंचे उठने का सिर्फ पढ़ाई एक जरिया हो सकता है।जब मैं कॉलेज के सेकंड ईयर में ही थी तभी मेरे पिता की हार्ट अटैक के कारण मृत्यु हो गई थी। पापा भी  एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंट्स देखते थे। पापा के बाद घर की सारी अर्थव्यवस्था चरमरा गई। यह तो मेरी मेहनत का ही परिणाम था कि 19 साल में ही मुझे सरकारी क्लर्क की नौकरी मिल गई थी जिससे कि घर का खर्चा यथावत चलता रहा।

           उसके बाद से मैं घर की जिम्मेदारियां संभालती गई और शीतल अपनी अल्हड़ता की ओर बढ़ती गई। पवन भी अपनी जिम्मेदारी कहां समझता था। हालांकि मेरे लिए भी शादी के बहुत रिश्ते आए लेकिन मां हमेशा ऐसा ही कह कर मना कर देती थी कि यह रिश्ता तुम्हारे लायक कहां है? जतिन तो उसे भी बहुत अच्छा लगा था उसने जतिन से कहा भी था कि  उसके ऊपर घर की सारी जिम्मेदारियां हैं, जतिन तो यहां तक मान गया था कि जब तक पवन कमाने लायक ना हो तब तक तुम अपने  पैसे अपने घर में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए  देती रहना । मां को मैंने  यह बात बताई भी थी पर शायद मां को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था या कोई और भी कारण रहा हो लेकिन अब तक आते हुए रिश्तो को जब जाते हुए देखती थी तो मुझे यह समझ आ गया था कि मां मेरी शादी करना ही नहीं चाहती। मां मेरी अपनी है और यह मेरा परिवार है, क्या अपनों की पहचान सिर्फ यही है कि उनसे तुम्हारा खून का रिश्ता है?

         आज उन्हें शीतल की 26 साल की उम्र बहुत बड़ी लग रही है और मेरी 31 साल की उम्र भी कम है।  पिछले 12 साल से मैने अपने घर की तन मन और धन से सेवा करी है लेकिन घर में कोई  भी मेरे बारे में क्यों नहीं सोच रहा।

     मेरे स्कूल कॉलेज की  सहेलियां भी  आराम से घूमती थी और मस्ती से भरी हुई बातें करती थी। लेकिन मुझे तो शायद जवानी आई ही नहीं थी। मुझे  इस बात का कोई दुख नहीं था कि शीतल की शादी होगी। मुझे तो अब केवल अपने  भविष्य के लिए सजाए हुए सब सपने बिखरते हुए और अंधकारमय ही लग रहे थे।

        माना   अच्छा होना अच्छा है लेकिन अपने साथ में ही बुरा करना अच्छा है क्या? आखिर मैंने भी तो 19 साल में ही घर संभाल लिया था लेकिन पवन 24 साल का भी हो कर भी बच्चा है। आज मुझे महसूस हो रहा था 12 साल बहुत होते हैं जिम्मेदारी संभालने के लिए।

  मैं अपने सपनों को बिखरने नहीं देना चाहती थी। जतिन ने कल भी मुझसे पूछा था और वह मेरे लिए ही इंतजार करने को भी तैयार था, बस वह अपनी मां के कारण थोड़ा परेशान था,            इसलिए मैंने भी कुछ दृढ़ निश्चय करके जतिन को फोन मिलाया। जतिन के साथ सिर्फ उसकी मां ही रहती थी और जतिन अपनी पत्नी के रूप में केवल एक मुझ जैसी जिम्मेदार लड़की ही चाहता था।आज जब मां ने मेरे ऑफिस से आने पर मुझसे  कहा कि शीतल के विवाह की तारीख 24 नवंबर निकली है , हमको सारी तैयारियां भी करनी है ।पवन भी नई ड्रेस के लिए जिद कर रहा है क्या तुम अपने ऑफिस से कुछ लोन नहीं ले सकती? हां, मां। ले सकती हूं, मैंने जवाब दिया। आप शीतल के विवाह की बिल्कुल चिंता मत करो उसका इंतजाम हो जाएगा लेकिन उसके बाद आप पवन से कह देना कि उसकी ड्रेस अब तो मैं खरीदवा दूंगी बाकि अब घर चलाने की सारी चिंताएं वह खुद संभाले।

          जतिन और मैं भी नवंबर में ही विवाह के बंधन में बंध जाएंगे। किसी पर भी व्यय का भार ना हो इसलिए हम दोनों तो कोर्ट मैरिज के लिए भी तैयार है। वैसे अगर आप चाहो तो हम औपचारिक शादी भी कर सकते हैं।

         लेकिन तुम्हारी शादी के बाद बाद घर कैसे चलेगा? मां और पवन एक दूसरे की ओर देखते हुए बोले? पता नहीं, पवन को तो अब जिम्मेदार होना ही पड़ेगा ना ! मैंने जवाब दिया। वैसे आपकी जिम्मेदारी हमेशा मेरी भी रहेगी लेकिन अब आपको अपने भी विचारों में परिवर्तन लाना होगा और सब बच्चों को समान ही समझना होगा।

         मां और पवन दोनों चुप थे वह समझ चुके थे कि अब मैं नहीं मानूंगी। पाठकगण आपकी जानकारी के लिए बता दूं 24 नवंबर को दोनों बहनों का ही एक ही मंडप में विवाह हुआ और उसके बाद पवन ने भी पहले पार्ट टाइम और बाद में अच्छी कंपनी में नौकरी करना शुरू कर दिया था। पूरा परिवार अब सुख से है। पहले भले ही मां को बुरा लगा हो लेकिन अब मां भी मेरे के इस फैसले से खुश है जिसके कारण कि सब ही जिम्मेदार हो पाए। मुझे भी जतिन जैसा मेरा पति और अपना परिवार मिल चुका था मुझे भी अपनों की पहचान हो चुकी थी।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

अपनों की पहचान विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी

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