अंतिम इच्छा – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

“डॉक्टर साहब मैं कब मरूंगी ??”

आज जिया राजस्थान अस्पताल में आईसीयू में डॉक्टर शर्मा से यह सवाल पूछ रही थी। 

डॉ शर्मा स्तब्ध से जिया की ओर देखने लगे। जिया से इस तरह के सवाल की अपेक्षा उन्हें बिल्कुल नहीं थी। 

वह अच्छी तरह से जानते थे की जिया कैंसर की फोर्थ स्टेज से जूझ रही थी। उसकी जिंदगी का अब कोई भरोसा नहीं था। 

यह बात जिया और उसका पूरा परिवार अच्छी तरह से जानता था। 

जिया ने पुनः वही प्रश्न दोहराया। जिसे सुनकर डॉक्टर शर्मा केवल इतना ही कह पाए आप घबराइए नहीं सब  ठीक हो जाएगा। 

ऐसा कहकर तुरंत नर्स को कुछ इंस्ट्रक्शन देते हुए आईसीयू से बाहर चले गए। 

जिया की आंखों से अश्रु की अविरल धारा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। आज उसकी शादी की 25वीं सालगिरह थी। 

अचानक वह अतीत की यादों में खो गई। जैसे कल ही की बात हो जब 25 वर्ष पूर्व जिया शादी कर कर इस घर में आई थी। जिया इस घर की बड़ी बहू थी। कभी-कभी तो उसे बड़ी बहू होने का बहुत गर्व भी होता था। 

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मगर पिछले कुछ वर्षों से इस “बड़ी बहू” शब्द से ही उसे नफरत सी होने लगी थी। 

ऐसे तो वह एक भरे पूरे परिवार में रहती थी। मगर फिर भी अकेलापन उसे घेरे रहता था। 

यूं तो घर में रूपयों पैसों की कोई कमी नहीं थी। मगर वह सोचने लगी थी कि उसका क्या है ??

उसका अपना कौन है? किस पर उसका अधिकार है? 

उसका अब तक का जीवन तो “बड़ी बहू” बनकर ही बीत गया। सब की अपेक्षाएं पूरी करते – करते उसकी अपेक्षाएं बहुत पीछे रह गई। 

कब सबने उसे और उसने स्वयं को इतना उपेक्षित कर दिया कि वह आज जीवन के अंतिम चरणों में मृत्यु का इंतजार कर रही है।

परिवार की तीसरी पीढ़ी की बड़ी बहू होने के नाते उसे पर अपनी बड़ी दोनों पीढ़ियों के साथ निबाह करने की बड़ी जिम्मेदारी थी। दादी सास, चाची सास, मामी  सास , बुआ सास, नंद, देवर और परिवार के अन्य सभी रिश्ते उसे उपहार स्वरूप मिले थे।

यूं तो वह परिवार के सभी सदस्यों की पहली पसंद नहीं थी। उसका व चिराग का प्रेम विवाह था, जो की मन से किसी को भी स्वीकार नहीं था। 

बहुत सारे वाद-विवादों के पश्चात अंतत वह बहू बनकर इस घर में आ ही गई थी। 

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धीरे-धीरे वह घर परिवार के रस्मों रिवाजों में ढलती गई। अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ती गई। सब की अपेक्षाओं और इच्छाओं को उसने सर माथे रखा। 

घर की हर स्थिति-परिस्थिति  में वह अपने आप को ढालती गई। अपनी सारी इच्छाएं, सपने सब दूसरों की इच्छाओं और सपनों की बलि चढ़ाती गई। 

घर, परिवार, बच्चे ,पति सबकी  दिनचर्या के अनुकूल अपनी दिनचर्या बनाती गई। 

पर अपने टूटे सपनों, अपनी दबी इच्छाओं, अपेक्षाओं का बोझ दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा था।

बच्चे बड़े हो गए थे। खुद की उम्र भी बढ़ चुकी थी।

शरीर थक रहा था। उम्र अनुसार कुछ बीमारियां घर कर गई थी। कुछ पर वह ध्यान नहीं देती थी और कुछ के साथ जीने की आदत उस डाल ली थी। 

यूं तो चिराग ने घर की हर जिम्मेदारी उठा रखी थी। मगर जिया को लगता था, चिराग अपने सपनों की दौड़ में इतनी दूर निकल गए हैं, कि जिया के सपने क्या है यह तो वह जानना ही नहीं चाहते।

चिराग हर पल भविष्य के लिए जी रहे हैं। ठीक है उन पर परिवार की इतनी जिम्मेदारियां हैं उन्हें सबके भविष्य का सोचना ही है। 

मगर आज चिराग के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। वह समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे और कब हो गया। बार-बार जिया को  प्रश्न भरी निगाहों से देख रहे थे जैसे पूछ रहे हो जिया ये सब पहले  क्यों नहीं बताया ?  

ऐसा नहीं था कि जिया उन्हें बताना नहीं चाहती थी। पिछले दो-तीन वर्षों में उसने कई बार अपनी सेहत को लेकर चर्चा की थी। लेकिन बीमारी इतनी गंभीर होगी की तो उसे स्वयं भी कल्पना नहीं थी। 

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पिछले एक महीने से उसकी तबीयत बगड़ने लगी थी, कब शुरू हुए डॉक्टर के चक्कर, टेस्ट और इलाज। मगर अब बहुत देर हो चुकी थी।

 जिया की सोच चिराग की सोच से थोड़ी सी अलग थी। उसे लगता था जितना भविष्य जरूरी है उतना ही वर्तमान पर भी ध्यान देना आवश्यक है। जिया छोटी-छोटी खुशियों को जीना चाहती थी। चिराग भविष्य के बड़ी खुशीयों के प्रबंध में व्यस्त थे। 

हर बर्थडे, एनिवर्सरी  जिया कोई बड़ा सेलिब्रेशन नहीं चाहती थी। वह तो केवल यह चाहती थी की चिराग समय निकालें, केवल उसके साथ समय बिताएं।  सेलिब्रेशन तो होता था, मगर जिया को जो चाहिए वो पल उसे नहीं मिलते थे।

यह सब तो छोड़िए। जिया तो चिराग के साथ सुबह मॉर्निंग वॉक या रात को खाने के बाद टहलना चाहती थी। लेकिन चिराग के व्यावसायिक व्यस्तताओं के चलते यह भी कभी संभव नहीं हो पाया।

आज जो 25 वी सालगिरह है जिसे बहुत बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए।  जिसके लिए पूरा घर साल भर से तैयारी कर रहा था। 

लेकिन  साल भर से जिया किसी हालत में थी यह कोई नहीं देख पाया।

एक ओर चिराग सोच रहे थे कि यह सब उनकी आंखों के सामने हो रहा था वह क्यों नहीं देख पाए, वह क्यों नहीं समझ पाए ???  अपनी बिगड़ी तबीयत के बारे में जिया ने उनसे क्यों कुछ नहीं कहा? या कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कहती रही और मैं सुन नहीं पाया। ऐसे सैकड़ो सवाल उनके मन में आ जा रहे थे।

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 आईसीयू से बाहर आए डॉ शर्मा से कुछ बात कर चिराग जिया के पास आईसीयू में आए। आज विजय से बहुत सारी बातें कर लेना चाहते थे। वक्त को अपने हाथों में थाम लेना चाहते थे। जिया का हाथ हाथों में लेकर 25वीं सालगिरह की बधाई देने के लिए शब्द ढूंढ ही रहे थे की तभी बीप की एक लंबी आवाज से उनकी तंद्रा टूटी और वे सॉरी के अलावा कुछ नहीं कह पाए। 

भला वक्त किसी के रोक से रुका है कभी…..

अब पूरे घर में मातम पसरा था। 

बड़ी बहू, बड़ी बहू के नाम की आवाजें तो अब भी चारों और गूंज रही थी……….

स्वरचित 

दिक्षा बागदरे

#बड़ी बहू

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