अनोखा बंधन – पूजा अरोड़ा

बारात बड़ी धूमधाम से निकली थी, सब लोग बहुत मस्ती कर रहे थे, घोड़ी पर बैठा वेद बहुत खुश था,

खुश होता भी क्यूँ ना आखिर एक लंबी लड़ाई जीतकर तो इस खुशी को प्राप्त करने में सफल हुआ था |

सबसे अधिक खुशी उसे अपनी दादी को देखकर हो रही थी जो धीमी गति से चलती कार में बैठकर अपने पोते की बारात को निहार रही थी और बार-बार दूर से पोते की बलाएँ ले रही थी | 

सच यदि विवाह में बड़ों का आशीर्वाद मिल जाये तो उसका आनन्द ही कुछ और होता है |

 अचानक से वेद की आँखों के सामने पिछले छः माह एक चलचित्र की भाँति घूम गए, छः माह पहले ही वेद विलायत से प्रैक्टिस करके पूरे चार बरस बाद लौटा था, काले कोट में बने वकील पोते की दादी खूब बलाएँ लेती बार बार वारी जाती |

‘अब तुझको नहीं जाने दूँगी वापिस, बस अब मेरे अंतिम साँस तक तू मेरे पास ही रहेगा |’ शांति देवी ने कहा |

‘हाँ दादी ! कहीं नहीं जाऊँगा, यहीं रहूँगा आपके पास |’ 

दादी का लाडला पोता वेद बोला |

शांति देवी धार्मिक महिला थी, हर समय पूजा पाठ उपवास में लगी रहती थी, क्या मजाल जो भगवान को भोग लगाए बिना एक निवाला भी खा जाये, बेटे-बेटी का भेदभाव आज भी उनके मन में था..

 बचपन से ही उनकी जड़ों में निहित था, स्वयं भी बाल विवाह का शिकार थी सो उन्हें य़ह सब साधारण लगता था, सोचा था वे शहर आकर कुछ बदल जाएंगी 

परंतु अब शहर में आकर भी उनकी सोच और दिनचर्या लगभग वैसे ही थी उनकी सोच में कुछ बदलाव ना आया था..परंतु

घर के अन्य सदस्यों ने भी उनको वैसे ही उनकी सोच के साथ अपना लिया था | 

 हाँ दोनों बड़ी पोतियाँ अवश्य उनपर वेद को अधिक प्यार करने का बिना डर के इल्ज़ाम लगाती थी और जिसे वे खुलेआम स्वीकार भी करती थी |

“पूरा अट्ठाइस बरस का हो गया, अब क्या बूढ़ा होकर विवाह करेगा? इस उम्र में तो.”

“हाँ हाँ दादी! पता है इस उम्र में तो आप चार-चार बच्चों की माँ बन गयी थी |” वेद ने शांति देवी की बात काटते हुए कहा |

‘शैतान ना हो तो..! दादी से मसखरी करता है | अच्छा सुन अगले हफ्ते तेरे दादाजी की बरसी है और मेरा बहुत दिल है कि एक बार वाराणसी जाकर पूजा कर आऊँ और गंगा स्नान भी कर आऊँ | अभी तो इस शरीर में जान है, फिर क्या पता कब क्या हो ? क्या तू चलेगा मेरे साथ?” दादी के इस तरह प्यार से पूछने पर वेद मना नहीं कर पाया हालांकि आधुनिक युग का लड़का उन कर्म कांड को नहीं मानता था परंतु इस उम्र मे दादी को मना कर के उनका दिल नहीं दुखाना चाहता था |

 सो वेद, शांति देवी और वेद की माँ सरिता अगले सप्ताह वाराणसी पहुँच गए | दादी की इच्छानुसार सब कार्य अच्छे से हो गए थे और दादी ने विधवा आश्रम में कुछ दान करने की इच्छा जतायी |

 पूछते पूछते तीनों एक विधवा आश्रम में पहुँचे, जहाँ बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था,

‘गोकुल विधवा आश्रम’ अंदर पहुँचकर अध्यक्ष से मिलकर कुछ कपड़े दान करने की इच्छा जतायी |

उस वातावरण को देखकर वेद जैसे आधुनिक नस्ल के पुरुष की आँखों भी गीली हो गयी, कहाँ समाज इतना आधुनिक हो गया था और कहाँ आज भी भारत का पिछड़ापन साफ़ झलकता था, कुछ धर्म के ठेकेदार आज भी इन विधवाओं को आगे बढ़ने का मौका देना ही नहीं चाहते थे, तभी अचानक दफ्तर से सफेद सूती साड़ी में एक नवयुवती दाखिल हुई, अध्यक्ष महोदय बोले,

‘य़ह मीरा है, दफ्तर के कामकाज और

दान पुण्य का काम यही देखती है | मीरा! यह लोग कुछ कपड़े दान करना चाहते हैं, तुम जरूरत के हिसाब से इनको लिस्ट बनाकर दे दो | 

माफ़ कीजिएगा! इस अश्रम में हर प्रकार के कपड़े पहनने की मनाही है सो आप को इन लोगों के हिसाब से ही कपड़े दान करने होंगे|”

वेद मीरा को देखता ही रह गया, कोई बीस बरस की नवयुवती, सफेद साड़ी उस सादगी में भी एक अलग खूबसूरती झलक रही थी, मुख पर तेज था अलग सा |

उसे देखते ही वेद दिल हार गया, पूछने पर पता चला कि मीरा जब मात्र पांच या छः बरस की थी तो बाल विधवा हो गयी थी और उसका कोई दूर का रिश्तेदार उसे यहाँ छोड़ गया था और तब से किसी ने पलटकर नहीं देखा, उस आश्रम की सब महिलाओ ने बेटी की तरह उसे पाला |

‘कोई माता पिता इतना निर्मम भी कैसे हो सकता है, यह वेद को समझ नहीं आया, क्या हमारे रीति-रिवाज आज भी इतने कठोर है?’ वेद का मन हाहाकार कर रहा था |

ना जाने कैसी कशिश थी कि वेद मीरा की ओर खिंचता चला गया |

मीरा भी वेद की नजरों को महसूस कर रही थी परंतु उसे अपनी मर्यादा पता थी |

वाराणसी से वापिस आए सबको दस दिन हो गए थे परन्तु वेद की आँखों के सामने से मीरा का चेहरा हटता नहीं था |

 वेद की उदासी किसी से छिपी नहीं थी | आखिर उसने अपना फैसला घर वालों को सुना ही दिया, शांति देवी ने तो सिर पीट लिया,

“पूरी दुनिया में लड़कियों का क्या अकाल पड़ गया है? मेरे घर एक विधवा पैर नहीं रखेगी | इस उम्र में मेरा धर्म भ्रष्ट करने चला है |”

वेद के माता-पिता ने फैसला शांति देवी पर छोड़ दिया था |

“दादी बचपन में विधवा होने में मीरा का क्या कसूर? समाज के इन दकियानूसी रिवाजों को आखिर किसी को तो तोड़ना होगा ना और एक लड़की जो ताउम्र माता-पिता के होते हुए भी अनाथ का जीवन व्यतीत कर रही है उसको अपने स्नेह की छत्रछाया देकर आप अपने ईश्वर को प्रसन्न करेंगी |’ आखिर पोते ने जब खाना पीना छोड़ दिया तो दादी को पोते की जिद के आगे झुकना ही पड़ा |

परंतु वेद के लिए आगे का रास्ता और भी कठिन था | विधवा आश्रम के अध्यक्ष को मनाना, उस पर मीरा की सहमति आसान कार्य नहीं था परंतु वेद और शांति देवी हैरान थे जब वहाँ की अन्य विधवाओं ने आगे बढ़ कर शांति देवी और देव को भगवान की उपाधि दे दी,

“माता जी आप हमारे लिए ईश्वर का वरदान है, जो जीवन हमने बिताया उस जीवन से मीरा को मुक्ति मिल जाएगी, इस से बढ़कर खुशी की बात क्या हो सकती है |” उन विधवाओं के ऐसे विचार सुनकर शांति देवी को अपने फैसले पर अब तनिक भी अफसोस नहीं था, पहली बार उन्होंने मीरा को दिल से बहू मान लिया | 

हालांकि संविधान ने विधवा के पुनर्विवाह को अनुमति दे दी हो परंतु धार्मिक ठेकेदारों से लड़ना आसान नहीं था वेद के लिए, वकील होने के नाते सब दांव पेच जानता था और पूरी पुलिस सुरक्षा के बीच आज वाराणसी में वेद और मीरा का विवाह एक चर्चा का विषय बना हुआ था, आज वेद के इस कदम ने ना जाने कितने नवयुवकों को नयी राह दिखाई थी |

 उधर लाल जोड़े में सजी मीरा अपने वेद के इंतजार में सोलह श्रृंगार किए पलकें बिछाये बैठी थी |

वह मीरा जिसने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उसके नसीब में इस सफेद रंग के अलावा कोई और रंग होगा आज वह मीरा लाल रंग के जोड़े में बैठी अपनी बदली किस्मत पर हैरान थी..! 

आँखें नम थी.. नेपथ्य में एक गीत के बोल चल रहे थे..

“मैं तो भूल चली बाबुल का देश..!” आज मीरा उस विधवा आश्रम से प्रस्थान करके अपने पिया वेद की प्रेम नगरी में प्रवेश कर रही थी..! एक नई दुनिया बसाने..!

 दोस्तों, शहरों में बैठकर हम सोचते हैं कि बदलाव हो गया है परंतु आज भी ग्रामीण इलाकों में या अन्य बहुत से स्थानो पर पुरानी कुरीतियां विद्यमान है| बदलाव हो रहा है परंतु बदलाव की गति बहुत धीमी है | घर बैठकर एक दूसरे को कोसना या रीति रिवाजों को बहुत आसान होता है परंतु आगे बढ़कर पहल करना बहुत मुश्किल | 

 आधुनिक समाज की आवश्यकता है कि हम शिक्षित लोग खुद आगे बढ़ कर पहल करे | 

उम्मीद है कि य़ह स्वरचित कहानी आपके नजरिये को नया दृष्टीकोण देगी |

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित 

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✍️ पूजा अरोड़ा दिल से दिल तक 

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