रास्तों पर विश्वास नहीं करना चाहिए. कई बार रास्ते हमें ऐसी जगह ले जाते हैं, जो हमारी मंज़िल नहीं.कभी कभी ऐसे दोराहे पर छोड़ देते हैं जहां राह चुनना बहुत मुश्किल हो जाता है. यदि मंज़िल पर पहुंचना है तो रास्ता खुद चुनो.
अंकिता ने कुछ ऐसा ही किया. कस्बे की ज़िंदगी छोड़ कर उसने किसी बड़े शहर में जाकर अपनी ज़िंदगी संवारने की ठानी.
घर में किसी को बिना बताए वह ट्रेन में बैठी और सीधा दिल्ली आ गई. एम बी ए थी. किसी फर्म में नौकरी भी मिल गई. पी जी में कमरा भी ले लिया. मस्त लाइफ थी. न कोई रोकने टोकने वाला. न ही किसी की जवाबदेही. घर में भी फोन कर बता दिया. हर महीने कुछ पैसे भी भेजने लगी.
ऑफिस में ही सौरभ से दोस्ती हुई. अक्सर शाम को किसी जगह मिलते. शामें भी मस्ती में गुज़र रही थीं. धीरे धीरे नज़दीकियां बढ़ीं. फिर दोनों ने एक फ्लैट ले लिया और लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. फ्लैट की मालकिन भी ऐसे किरायदारों की आदी थी.
उसे बस किराए से मतलब था. बड़े शहर की फ्लैट्स वाली ज़िंदगी में वैसे भी कौन किसको पूछता है. आते जाते लिफ्ट में भी बस हाय हैलो ही होती है. कोई किसी के पचड़े में नहीं पड़ता.
कोई कमिटमेंट नहीं. किसी तरह का लगाव नहीं. बस एक दूसरे के प्रति आकर्षण और ज़रुरत ही था जो उनके जुड़ाव का कारण बना. ऑफिस में भी उनके चर्चे होने लगे. कुछ को जलन होने लगी तो कुछ डिस्अप्रूवल की निगाहों से देखने लगे . लेकिन अंकिता और सौरभ अपने ही संसार में इन सब बातों से अनभिज्ञ थे.
एक दिन अंकिता को कुछ ठीक नहीं लगा. तबियत गिरी गिरी सी हो रही थी. उसने किट लाकर प्रेग्नेंसी टेस्ट किया. उसका शक ठीक निकला. लेकिन वह अभी शादी जैसे झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी. सौरभ को बताया तो वह भी घबराए गया.
फिर भी उसने अपने माता पिता से बात करने का आश्वासन दिया. लेकिन अंकिता नए ज़माने की लड़की थी. यह उसे निर्णय लेना था कि वह शादी करे या गर्भ गिरा दे. हालात के दबाव में आकर विवाह करना उसे जंचा नहीं. वह नर्सिंग होम गई और गर्भ गिरा दिया. अब वह अपनी आगे की ज़िंदगी कैसे जिएं , इसके लिए स्वतंत्र थी.
सौरभ को पता लगा तो वह अनमना सा हो गया. कुछ बोला नहीं. उसका अंकिता पर कुछ अधिकार न था. वह पी जी में शिफ्ट हो गया. ऑफिस में भी अंकिता से कतराने लगा. फिर एक दिन अंकिता को किसी ने बताया कि उसने अपने होमटाउन के पास ट्रांसफर ले लिया है.
अंकिता ने अपने को एक बिना मंज़िल वाली राह पर पाया. माता पिता की आंखों में धूल झोंककर उसने जो राह चुनी वह एक अंतहीन रास्ता था और मंज़िल का कोई पता न था.
विषय : आंखों में धूल झोंकना
डा. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा