अनजाने रास्ते (भाग-8) – अंशु श्री सक्सेना : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

घर की बालकनी में सूरज रोज़ हाज़िरी बजा रहा था और चाँद भी गाहे बगाहे वैदेही का हाल चाल लेने आ जाया करता था।

ख़ाला की बेटी नजमा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के एम.ए. पॉलिटिकल साइंस में प्रवेश ले लिया और वह अक्सर सप्ताहांत पर अयान और वैदेही के घर आ जाया करती। वैदेही को भी उसका आना अच्छा लगता क्योंकि नजमा के आने से अयान और वैदेही की नीरस ज़िन्दगी में कुछ ख़ुशियों भरे पल सिमट जाते।

साधारण रूप रंग की नजमा की आँखों में ग़ज़ब का आकर्षण था। हरी नीली पुतलियों वाली गहरी झील सी आँखें…सामने वाला उसकी आँखों में खिंचा चला आता। वैदेही को भी नजमा की आँखें बेहद पसंद थीं। वह कहती,

“भगवान ने कितनी सुन्दर आँखें दी हैं तुम्हें…इनसे तुम न जाने कितनों का क़त्ल करोगी”

“पर अल्लाह तो तुम पर मेहरबान है भाभी, जिसे क़त्ल होना था वो तो पहले ही तुम्हारी आँखों में डूब कर शहीद हो चुका है”

कहकर नजमा ज़ोर से खिलखिला पड़ती ।

नजमा के आने से अयान के चेहरे पर भी मुस्कान लौट आती। वह और नजमा अपने बचपन के ढेरों पुराने क़िस्से याद करते और खूब हँसते। अयान को हँसते देख, वैदेही का दिल भी सुकून से भर उठता।

उस दिन कुहू का पाँचवाँ जन्मदिन था। प्रोफ़ेसर बैनर्जी ने अपने घर पर छोटी सी पार्टी रखी थी जिसमें उन्होंने वैदेहीऔर अयान को भी बुलाया था।

बड़ी मुश्किल से अयान पार्टी में जाने के लिए तैयार हुआ। वैदेही ने उस दिन अयान की मनपसंद आसमानी रंग की साड़ी पहनी, गले में छोटी छोटी सफ़ेद मोतियों वाली हल्की सी माला और कानों में मैचिंग इअररिंग्स।

वैदेही जब तैयार होकर कमरे से बाहर आई तो अयान उसे मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया।

“आज तो तुम ग़ज़ब ढा रही हो वैदेही, छोड़ो…कहाँ प्रोफ़ेसर साहब के घर बोरिंग बर्थडे पार्टी में जाओगी, चलो हम कहीं डिनर पर बाहर….”

“कैसी बात करते हो अयान? प्रोफ़ेसर बैनर्जी ने कितने मन से हमें बुलाया है, हम नहीं जाएँगे तो उन्हें बुरा लगेगा”

वैदेही ने उसकी बात काटते हुए कहा।

“तुम यह क्यों नहीं कहतीं कि तुम्हें अपने शौहर से ज़्यादा उस प्रोफ़ेसर की परवाह है…मैं सब देख रहा हूँ, सब समझ रहा हूँ”

अयान की आवाज़ में तल्ख़ी और तंज दोनों महसूस किया वैदेही ने। फिर भी उसने स्वयं को भरसक संयत बनाए रखने की कोशिश करते हुए कहा,

“यह कैसी बात कर रहे हो अयान ? प्रोफ़ेसर बैनर्जी मेरे पापा जैसे हैं उन्हीं की उम्र के भी…ये वाहियात बातें अपने दिमाग़ से निकाल दो और प्लीज़ चलो, हमें देर हो रही है”

प्रोफ़ेसर बैनर्जी के घर पर पार्टी बाहर लॉन में थी। वहाँ पहुँच कर भी अयान का मूड उखड़ा ही रहा। वह वैदेही को छोड़ कर एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।

कुहू लाल रंग की सुन्दर सी फ़्रॉक में बहुत प्यारी लग रही थी। प्रोफ़ेसर बैनर्जी की पत्नी नीलिमा ने वैदेही को हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया और बोलीं,

“घर आया करो बेटी, दिनकर तुम्हारी बहुत तारीफ़ करते हैं”

तभी कुहू कूदती हुई आई,

“नानी…मेरे डैडी आ गये…डैडी आ गये”

वैदेही ने मुड़ कर देखा, उनके पीछे बेहद सुन्दर युवक खड़ा था। छ: फ़ीट लम्बा क़द, गोरा रंग, छोटे छोटे बाल। वैदेही तुरन्त खड़ी हो गई, नीलिमा ने युवक से वैदेही का परिचय कराते हुए कहा,

“इनसे मिलो वैदेही, यह मेरा दामाद…मेरा मतलब है अब मेरा बेटा, कर्नल अबीर मुखर्जी…आजकल राजस्थान की जोधपुर यूनिट में पोस्टेड है”

अबीर की नज़र जैसे ही वैदेही पर पड़ी उसकी आँखें विस्मय से फैल गईं, जैसे उसने कुछ बहुत ही अनोखा देख लिया हो।

“जी नमस्ते”

वैदेही ने सिर झुकाकर अभिवादन किया।

तब तक प्रोफ़ेसर साहब भी वहाँ आ गये और अबीर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,

“क्यों अबीर…है न चमत्कार”

“कैसा चमत्कार सर ? मैं कुछ समझी नहीं”

वैदेही अभी तक असमंजस की स्थिति में खड़ी थी।

“आप मेहमानों को देखिए…मैं वैदेही को सारी बातें समझाती हूँ”

नीलिमा जी ने वैदेही को अपने पीछे आने का इशारा किया। “क्या मैं अपने हस्बेंड को भी बुला लूँ मैम ?”

“हाँ, हाँ क्यों नहीं”

नीलिमा जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया।

घर के अंदर ड्राइंगरूम में पहुँच कर नीलिमा जी ने मेज़ की दराज़ से एक अल्बम निकाला और उसके पन्ने सामने खोल दिए।

“ओह ! यह क्या ? इनकी शक्ल तो बिलकुल वैदेही से मिलती है” अयान के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा।

“ओह ! ये किसकी तस्वीरें हैं आंटी ?क्या वसुधा…वसु की ?”

वैदेही ने हैरानी से पूछा।

वही क़द काठी, वैसे ही कंधो तक लहराते झूलते बाल…बहुत कुछ वैसा ही चेहरा मोहरा। कोई भी देखे तो वैदेही और वसुधा को बहन ही समझे। अल्बम पकड़ कर नीलिमा जी निढाल सी सोफ़े पर बैठ गईं और फूट फूट कर रो पड़ीं ।

वैदेही उनके घुटनों के पास ही बैठ गई और उनकी गोद में अपना सिर रख दिया। समय जैसे उस एक पल में ठहर गया और कई सदियाँ ख़ामोश बीत गईं जिसमें नीलिमा जी और वैदेही ने एक दूसरे को दर्द की डोर से बँधे मज़बूत रिश्ते में बाँध दिया। वैदेही को लगा वह अपनी माँ की गोद में सिर रख कर लेटी है और माँ प्यार से उसका सिर सहला रही हैं। वहीं नीलिमा जी को लगा जैसे वसु उनकी गोद में सिमट आई है।

पीछे दीवार के सहारे खड़े अबीर और अयान, वैदेही और नीलिमा को चुपचाप देखते रहे।

अयान को भी अब समझ में आया कि क्यों इतने बड़े साइंटिस्ट ने उसकी वैदेही को अपने साथ रिसर्च करने के लिए रखा। उसे अपनी उस सोच पर ग्लानि भी हुई जो वह प्रोफ़ेसर बैनर्जी के साथ वैदेही के रिश्ते के बारे में सोच रहा था।

लेकिन अगले ही पल उसे वैदेही और अधिक ईर्ष्या होने लगी और इस ईर्ष्या का ज़हर उसके रोम रोम में फैलने लगा। उसे लगा कि अब वैदेही को दिल्ली में वट वृक्ष की तरह एक बहुत सहारा मिल गया है जिसकी घनी छाँव तले वैदेही सुरक्षित है। उस वट वृक्ष तुलना में अयान को अपना अस्तित्व तुच्छ लगने लगा। वह सोचने लगा,

“अब वैदेही मेरे क़ाबू में नहीं रहेगी…अभी तक तो मैं जो भी इसे कहता था, यह मेरा लिहाज़ कर मेरी बात मानती थी,परन्तु अब तो प्रोफ़ेसर बैनर्जी इसे अपनी बेटी की तरह आगे बढ़ाएँगे…निश्चितरूप से ही वैदेही का भविष्य मुझसे कहीं अधिक उज्ज्वल है”

क्रमश:

अंशु श्री सक्सेना

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