” भईया, मैं आज आपसे कुछ मांगने आई हूँ |” दीपा ने आलोक से कहा |
इतना सुनते हीं आलोक की पत्नी रेखा बोलने लगी -” अरे हमलोग तो खुद परेशान हैं और उपर से ये हमें और परेशान करने चली आई | कभी सुख – चैन, शांति से रहने नहीं देती हमें | हरदम गले पडे रहती है | कभी ये चाहिए, कभी वो चाहिए |
कभी ये भेजिए, कभी वो भेजिए, बस हर समय इन्हें कुछ न कुछ देते रहिए | इसे तो बस हमसे हरदम कुछ न कुछ लेना ही रहता है| हमारी परेशानी से इसे क्या लेना- देना ? ” रेखा गुस्से में लगातार अनाप- शनाप कहने लगी | ” तुम चुप रहो | ये अंगारे उगलना बंद करो |” आलोक जोर से बोला -” मुझे पूछने दो | बताओ दीपा तुम्हें क्या चाहिए? “
” एक बहन होने का अधिकार ”
” तुम कहना क्या चाहती हो? ” आलोक गंभीर होकर पूछा |
” देखो भईया, मुझे पता चल गया है कि आपको बिजनेस में बहुत धाटा हुआ है और कर्ज भी आपपर बहुत हो गया है | आप अपनी दुकान बेचने वाले है | आपने तो मुझे कुछ बताया नहीं, पर इनके एक दोस्त ने हमें सब बता दिया, जो आपके भी दोस्त है |”
” वो हमने तो अपने धमंड में आपके साथ सदा गलत व्यवहार ही किया है तो फिर कैसे आपको बताते ?” रेखा शर्मिंदा होते हुए बोली |
” यही बात तो मैं कहना चाहती हूँ, भाभी कि हालात बदलते रहते हैं, पर उसका असर रिश्तों पर तो नहीं पडना चाहिए | रिश्तों में प्यार और अपनापन सदा बनाये रखना चाहिए | ” आरती बोली -” आपलोग को जितने पैसों की जरुरत है, हम देंगे , पर पापा की दुकान बिकनी नहीं चाहिए | यह उधार रहेगा, आप को जब सुविधा होगी, लौटा दिजिएगा , मैं आज आपसे यही मांगने आई हूँ |’
” मेरी प्यारी बहना, सदा खुश रहो |” आलोक दीपा के सिर पर हाथ रखते हुए बोला |
” दीपा, मुझे माफ कर दो | मैंने तुम्हें कितना गलत समझा? तुम्हारी बेइज्जती की, बिना सोचे समझे अंगारे उगलती रही |” रेखा लज्जित होकर बोली |
” भाभी,ये सब बातें छोडो| माफी मत मांगो, जरा चाय वाय पिलाओ | बिना चाय पिये मैं जाने वाली नहीं | ” दीपा हंसते हुए बोली | उसे हंसता देख आलोक और रेखा भी हंसने लगे |
# अंगारे उगलना
अप्रकाशित और मौलिक
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |