तुम दिन भर घर पर करती ही क्या हो…बच्चे भी स्कूल चले जाते हैं। मैं भी सुबह का गया ऑफिस से शाम को ही लौटता हूं। हमारे जाने के बाद आराम ही तो करती हो और गुस्से में अपनी
ऑफिस वाली बैग और टिफिन लेकर निकल पड़ा। यह साहिल की रोजमर्रा की आदत थी । जब तक वह रोमी को जली कटी नहीं सुनाता था । उसके दिल को चैन नहीं पड़ता था। रोमी निराश होकर सोचने लगी ।
साहिल को लगता है। वह ऑफिस में दिन भर काम करता है और उसकी पत्नी दिन भर घर पर आराम करती है। जबकि मैं भी तो घर पर बच्चों को देखती हूं। सुबह से शाम तक घर संभालती हूं । उसे यह पता ही नहीं कि घर में कितने काम होते हैं। राशन,सब्जी,फल और स्कूल की फीस देना आदि। रसोई मे सबकी अलग-अलग फरमाइशें पूरी करना ।
महरी से काम करवाना और इतना ही नहीं जिस दिन वो ना आए। उस दिन खुद उसकी जगह महरी बनकर काम करना । बच्चों को बस स्टैंड तक छोड़ने और छुट्टी होने पर लेकर आना। पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को सहेज कर रखना ।
इतना आसान तो नहीं होता है मगर यह सब साहिल को कौन समझाए और समझाया तो उसे जा सकता है, जो समझने को तैयार हो । मगर साहिल तो जब तक अपनी जुबान से मेरे लिए अंगारे नहीं उगल लेता।
तब तक उसके दिल को चैन ही नहीं पड़ता है । यह सोचते सोचते उसकी आंखें भर आई मगर वह किसे कहे!! उसकी दुख भरी बातें सुनने को उसके घर की बस चार दीवारें ही थी । जो शायद सुन तो सकती थी पर मगर बोल नहीं सकती थी।
आज महरी भी नहीं आई थी और बच्चों को भी स्कूल की तरफ से पिकनिक ले जाया गया था इसीलिए बच्चे रात को ही आने वाले थे । दिन भर का काम निपटाते निपटाते आज उसे खाने का समय ही नहीं मिला और थकी हारी बिस्तर पर जा गिरी। शाम को जब साहिल घर आया तो घर में पूरा अंधेरा देख रोज की तरह चीखते हुए घर की लाइट ऑन की और रोमी को ढूंढने लगा मगर रोमी उसे हॉल ,रसोई कहीं दिखाई नहीं दी ।
जब कमरे में गया तो देखा रोमी बेसुध होकर सोई हुई है।
साहिल का दिल धक-धक करने लगा क्योंकि उसने इससे पहले रोमी को इस तरह कभी नहीं देखा था । उसने रोमी को दो-तीन बार पुकारा मगर रोमी कुछ नहीं बोली तो उसे चिंता होने लगी और फिर साहिल ने उसका बदन छूकर देखा तो वह बुखार से तप रही थी। साहिल उसे तुरंत अस्पताल लेकर गया।
जहां डॉक्टर ने कह दिया ।आपकी पत्नी की शारीरिक हालत बिल्कुल सही नहीं है । उन्हें बुखार की दवा के साथ-साथ ग्लूकोज भी देना पड़ेगा और अस्पताल में दो दिन गुजारने भी होंगे। यह सुनते ही साहिल पर मानों आसमान गिर पड़ा। अब उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे।
कुछ देर बाद जब रोमी को थोड़ा होश आ गया तो उसने रोमी का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा। मुझे माफ कर देना रोमी। मैं तुम्हें समझ ही नहीं पाया।अपनी जिंदगी में तुम्हें गृह लक्ष्मी की जगह सिर्फ भोग और घर की जिम्मेदारी संभालने वाली समझता रहा।
रोमी ने अपनी आंखें खोली और धीमे से कहा। अगर इस तरह मेरे बीमार पड़ने से तुम समझ जाते हो तो मैं बार-बार बीमार पड़ने को भी तैयार हूं साहिल मगर अपनी घर गृहस्थी में मुझे भी यानी कि तुम्हारी पत्नी को भी थोड़ा सम्मान चाहिए। यह जरूरी तो नहीं घर से बाहर जाकर ऑफिस में काम करने वालों की कदर की जाए और एक ग्रहणी जिसके ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी होती है। उसे अनदेखा कर दिया जाए ।
साहिल ने तुरंत रोमी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा मैं समझ गया हूं । रोमी अब मुझे और शर्मिंदा न करो । यह मेरी भूल थी। मैं खुद के अहम में आकर तुम्हारा सम्मान करना भूल ही गया । आज पहली बार उसने मुस्कुराकर अपने कान पकड़ते हुए कहा । रोमी जी अब आपका यह नासमझ पति कभी भी आपको शिकायत का मौका नहीं देगा और अब आप बहुत जल्द ठीक हो जाइए और घर चलिए ।
साहिल की यह अदा देखकर रोमी भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। रोमी को आज बीमार होना भी बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि रोज अंगारे उगलने वाला उसका हमसफर आज उसके ऊपर प्यार के फूल जो बरसा रहा था।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम