दीनानाथ और जानकी गाँव में अकेले रहते गाँव की ताजा आबोहवा खेती बाड़ी कर अपने में ही मस्त रहते परिवार के नाम पर दो बेटे,पढ़ने लिखने में लायक तो स्कालरशिप से आगे बढ़ते गये और एक बेटा कम्पनी के माध्यम से विदेश बस गया दूसरा मुम्बई वहीं शादी कर इतना मस्त हो गया कि भूल गया गांव में बूढ़े मां-बाप भी रहते हैं
दीनानाथ जानकी निरक्षर तो नहीं मगर ज्यादा ज्ञानी भी नहीं सब नियति का खेल जानकर परिस्थिति को स्वीकार कर गाँव वालों को ही अपने उनके सुख दुख का साथी, परिवार मान दिन व्यतीत कर रहे थे। ग्रामीण वातावरण तो सभी आपस में मिलजुल खुशी से रहते। दोनों की जिंदगी सही ढरे पर चल रही थी। तभी मुम्बई में बेटे राजेश के
यहां दो जुड़वां बेटे जन्म लेते हैं। दोनों पति-पत्नी कामकाजी तो बच्चों को पालने की दिक्कत सामने आ जाती है। राजेश पत्नी सुरेखा से कहता है मुम्बई में नौकरों के भरोसे बच्चे छोड़ने सही नहीं ऐसा करते हैं गांव से माँ बाबा को बुला लाते हैं। बच्चों की परवरिश का मोह सुरेखा तैयार हो जाती है। बेटा गांव आता है और पोतों की खबर सुनाता है और कहता अब आप हमारे
साथ मुम्बई चलें वही पोतों के साथ खेले कूदें हँसे खुशी से रहें । दीनानाथ खेती की देखभाल का हवाला देकर मना कर देते हैं मगर जानकी को पोतों का मोह खिंच ले जाता है वो बेटे के साथ चली जाती है दीनानाथ जाते समय घर का पता पड़ोस का फोन नं जानकी को लिख दे देते हैं। खुद बाद में आने का वादा करते हैं।
मुम्बई में घुटन भरा माहौल मगर जानकी पोतों की सही देखभाल करने में व्यस्त हो जाती है बहु सुरेखा कटु व्यवहार वाली आधुनिक महिला उसको उनका ग्रामीण रहन-सहन पहनावा पसंद नहीं आता मगर मजबूरी में झेलती रहती है तो बात बात पर जली कटी सुनाती रहती छोटी सी गलती पर आग उगलने लगती। जानकी को बहु
सुरेखा का व्यवहार बहुत पीड़ादायक लगता मगर बेटे के नजर के सामने रहने और पोतों का मोह बांधे रखता सब झेलती रहतीं । एक दिन बच्चों के उपलक्ष्य में घर पर पार्टी का आयोजन रखा जाता है।घर की मेड एन वक्त पर बीमार होने के कारण सुरेखा सासूमां जानकी से कहती हैं जब बच्चे सो
जायें तो तुम सर्व का काम संभाल लेना । पार्टी में जानकी जी का ग्रामीण पहनावा सुरेखा की सहेलियां खूब व्यंग्य कहती हैं कहतीं सुरेखा तुम्हारी नौकरानी किस चिड़िया घर से लाये हो पकड़कर, पढ़ी लिखी नही रख सकते थे। सुरेखा कहती ये इमानदार भरोसे लायक तभी रखा। जानकी सर्व करती रही तभी बच्चे के रोने की आवाज सुनकर हड़बड़ा जाती है और सर्व प्लेट हाथ से छुट टूट जाती है कुछ
छींटे लोगों के कपड़ों पर भी गिर जाते हैं। बहु सुरेखा ने आंव देखा न तांव एक थप्पड़ जानकी के गाल पर जड़ दिया और बहुत जली कटी सुनाई जानकी जी को बहु की बदतमीजी सबके सामने अंगारे उगलना अच्छा नहीं लगता दिल को चुभ जाता है कैसी बहु है इसको तो रिश्तों तक का लिहाज ही नहीं है यहां रहने का कोई मतलब ही नहीं बनता । वो चुपचाप कमरे में आ दोनों पोतों को एक बार सीने से
लगा, सब छोड़कर अपना सामान ले घर से बाहर निकल जाती है बहार दरवान को अपने गाँव पत्ते की पर्ची दिखा पहुंचाने की प्रार्थना करती है। दरवान उनके व्यवहार से पूर्व प्रभावित मदद करता और गाँव जाने वाली बस में बैठा आता है। अचानक पत्नी को गाँव वापस आया देखकर दीनानाथ जी कहते हैं अरे अकेले ही चली आई.. जानकी कहतीं हैं- आपका और गाँव वालों का मृदु व्यवहार अपनापन मुझे यहां खींच लाया । वहां बहु का रोषपूर्वक कठोर व कड़वी बातें उसका बात बात पर ‘अंगारे उगलना’ मुझे वहां से भागने पर मजबूर कर गया। दीनानाथ पत्नी की तरफ जिस नजर से देखते मानों सब समझ गये हो ।