” कितनी भी कोशिश कर ले दीपा…तेरे बेटे का कुछ नहीं होने वाला..अंधा है..इसे तो जन्म के समय ही मार…।”
” बस कीजिए दीदी..जैसा भी है..मेरा बेटा है..मेरे शरीर का हिस्सा है..।” अपने छह साल के बेटे के लिए जेठानी मालती की जली-कटी बातें सुनकर दीपा तड़प उठी थी।वह मनु को लेकर कमरे में चली गई।
दीपा मध्यमवर्गीय परिवार से आई थी, कम दहेज़ लाने के कारण उसकी धनाड्य घर से आई जेठानी अक्सर ही ताने देती थी।सास-ससुर भी पहले उससे अप्रसन्न थे लेकिन समय के साथ उसके सरल और मिलनसार व्यवहार से उनके मन की नाराज़गी दूर हो गई थी।विवाह के तीन साल जब उसने एक बेटे को जनम दिया तो सभी बहुत खुश हुए लेकिन जब डॉक्टर ने बताया कि बच्चा देख नहीं सकता
तो उनकी खुशी गम में बदल गई।क्या होगा..कैसे करेगी..मार दे..लोग अपनी राय देने लगे तब उसने एक दृढ़ निश्चय किया और अपने पति राकेश से बोली कि मैं इसकी माँ, टीचर, गाइड..सब बनूँगी।आप मेरा साथ देंगे? उसकी दृढ़ता देखकर राकेश के साथ-साथ उसके सास-ससुर ने भी साथ देने के लिये हामी भर दी।
दीपा अपने बेटे को चलने-बोलने के साथ-साथ छूकर महसूस करने और प्रतिक्रिया देना भी सिखाने लगी।ये सब देखकर मालती कभी तो उस पर हँसती तो कभी#अंगारे उगलती।उसके जेठ और सास-ससुर मालती को बहुत समझाते लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता।आज भी दीपा बेटे को ब्रेललिपि में कुछ सिखा रही थी..
मनु ने एक शब्द गलत बोल दिया तो मालती उसे सुनाने लगी।दीपा की आँखों से आँसू बहने लगे तब मनु उसका हाथ पकड़कर बोला,” माँ..रोओ मत..अब मैं खूब मेहनत करूँगा और तब ताई जी के अंगारे फूल बन जाएँगे।”
” मेरा बच्चा..।” कहते हुए दीपा ने मनु को अपने सीने से लगा लिया।समय के साथ मनु बड़ा होने लगा।वो अपना काम स्वयं करने लगा।स्कूल में भी वो अन्य बच्चों से आगे ही रहता।फिर भी मालती ने उसपर व्यंग्य करना नहीं छोड़ा।तब अपने सास-ससुर की आज्ञा लेकर दीपा अपने पति के साथ अलग रहने लगी और मनु को आत्मनिर्भर बनाने और शिक्षित करने में अपना जी-जान लगा दिया।
राह आसान नहीं थी..समाज के ताने सुने..कई रुकावटें भी आईं लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी..मनु अपनी मेहनत से सफलता की एक-एक सीढ़ी पार करता गया और एलएलबी की परीक्षा पास करके वो एक वकील बन गया।
मनु कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगा।उसने बिना फ़ीस लिए एक गरीब महिला का केस लड़ा और उसे न्याय दिलाया।उसकी ये कामयाबी अखबारों की सुर्खियाँ बनी..उसके इंटरव्यू लिये जाने लगे।उधर मालती का बेटा दो बार फेल होकर ग्रेजुएट की डिग्री हाथ में लेकर काम की तलाश में अपने जूते घिस रहा था।
मनु की कामयाबी की खबर मालती के कानों तक भी पहुँची तब उसे अपने व्यवहार पर बहुत आत्मग्लानि हुई।उसी समय वो दीपा के पास गई…मनु और उससे माफ़ी माँगी और रोते हुए बोली,” मैंने तुम माँ-बेटे पर बहुत#अंगारे बरसाए।मेरा बेटा तो आज भी रोजगार की तलाश में भटक रहा है और तुम..।”
” क्योंकि ताई जी, आपके शब्दों के अंगारे फूल बन गए थे।,” हँसते हुए मनु बोला तो मालती शर्म से उससे नजर नहीं मिला सकी।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# अंगारे बरसाना
# मुहावरा प्रतियोगिता
# अंगारे उगलना