“देख लता,मैं अपनी बहु के लिए सोने का सेट लाई हूँ उसका पहला करवाचौथ है।कैसा लग रहा है?” रमा ने लता को सेट दिखाते हुए पूछा।
“बहुत सुंदर लग रहा है।कहाँ से खरीदा है?”लता ने उत्सुकता से पूछा तो रमा चहकते हुए बोली-“अरे वो तेरे घर के पास एक नया शो रूम खुला है,वहीं से लिया है।”
बातों का सिलसिला चलता रहा।रमा ने और भी बहुत सारे सरप्राइज लता को बताए,जो उसने अपनी बहु के पहले करवाचौथ के लिए प्लान किए थे।
रमा की अपनी बहु के लिए खुशी देखकर लता को लगा..ये कैसी गलती हो गई उससे..तीन वर्ष हो गए बेटे की शादी को उसने तो अपनी बहु नेहा को कभी किसी करवाचौथ पर कुछ नहीं दिया।बेटा जो दे देता था नेहा उसमें ही खुश हो जाती थी।वो तो बस पति के गम में खोई रहती थी।
सहेली से विदा लेकर लता घर को निकल पड़ी।रास्ते भर सोचती रही..नेहा ने भी तो अपने पहले करवाचौथ पर सोचा होगा कि ससुराल वाले खूब जोर शोर से इस पर्व को मनाएंगे।कैसे-कैसे सपने सजाए होंगे?पर मैंने तो बड़ी सादगी से उसका पहला करवाचौथ मनाया था।फिर भी बेचारी ने कभी मुझसे कोई शिकायत नहीं की बल्कि हमेशा सबको खुश रखने की कोशिश करती रही..मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो गई?लता मन ही मन अपने को कोस रही थी..!!
रात को लता सोने के लिए बिस्तर पर लेटी लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर चली गई थी।रह-रहकर उसके मन को यही बात सता रही थी कि क्यों उसने अपनी बहु की खुशियों को नजरंदाज कर दिया?उसे आत्मग्लानि हो रही थी।
खिड़की के परदों से छनकर आती हुई सूरज की किरणों ने लता को जगा दिया।उठकर उसने परदों को खोला,भोर का सूरज उसे आज कुछ नया कुछ अलग सा लग रहा था।इस नई सुबह के साथ उसने भी कुछ नया करने की मन में ठान ली।
सुबह बेटे के ऑफिस जाने के बाद लता ने नेहा को कहा-“बहु मैं सोच रही हूँ इस करवाचौथ पर क्यों न हम अपने घर पर पूजा का आयोजन रखें।तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं होगी?”
“नहीं माँ,दिक्कत कैसी?सब त्यौहार पर घर आएंगे तो अच्छा लगेगा।आप कहें तो मैं सबको फोन कर दूँ।”
“हाँ,बहु सबको आज ही फोन करके आने के लिए बोल दे।”
“ठीक है माँ।”
लता खुश थी कि सब घर आएंगे।अब बारी थी गिफ्ट की।लता का मन भी बहु को कोई सोने का गहना देने का कर रहा था।फिर सोचने लगी उसके पास घर में तो इतने पैसे नहीं हैं।बेटे को बैंक से लाने की लिए कहेगी तो वो दस सवाल करेगा..ऐसा क्या लाना है?इतने पैसे घर में रखकर क्या करना है?
क्या करे? क्या नहीं? इसी दुविधा में थी।तभी उसके मन में विचार आया कि क्यों ना अपने इन पुराने कँगन को बेचकर नए ले ले।कँगन ज्यादा वजन के हैं सो अच्छे दाम मिल जाएंगे।ऊपर से जो लगेंगे उतने पैसे तो हैं उसके पास।पैसों की चिंता भी दूर हो गई अब समस्या यह थी कि वह अकेली कैसे जाए सोने की खरीदारी करने?आज तक कभी कोई सोने की चीज अकेले नहीं खरीदी थी।पहले पति के साथ ही जाती थी और अब बेटे की शादी पर भी गहने खरीदने उसके साथ ही गई थी।उसने ही सब मोल भाव किया था।दूसरा उनके पहचान के ज्वेलर की दुकान भी घर से बहुत दूर थी।बेटे को साथ चलने के लिए बोला तो उसका सरप्राइज वाला प्लान चौपट हो जाएगा।तभी उसे याद आया कि उसके घर के पास कुछ दिन पहले ही एक शोरूम खुला था रमा ने भी वहीं से अपनी बहु के लिए गहने खरीदे थे।क्यों ना वहीं जाया जाए सोचकर लता सब्जी लाने का बहाना बनाकर बाजार के लिए निकल गई।
जैसा लता ने सोचा था,उसे पुराने कंगन के अच्छे दाम मिल गए।उसने नेहा के लिए नए डिजाइन के सोने के कंगन खरीदे।फिर कुछ सब्जी और जरूरत का सामान खरीदकर घर आ गई।
करवाचौथ का दिन था,लता ने सुबह जल्दी उठकर नेहा के लिए सरगी बनाई।नेहा ने बहुत मना भी किया कि माँ आप सुबह मत उठना नहीं तो आपकी तबियत खराब हो जाएगी।पर लता नहीं मानी।सुबह के काम से निपटकर लता घर को सजाने में जुट गई।नेहा भी उसका हाथ बँटा रही थी।रविवार था सो बेटा नीरव घर पर ही था।लता से बोला-“माँ,इतना तो नेहा के पहले करवाचौथ पर भी आपने घर नहीं सजाया था जितना आज सजा रही हो।”
“हाँ बेटा,उसी गल्ती को ही सुधार रहीं हूँ।”लता आह भरते हुए बोली।
दोपहर के भोजन पश्चात लता नेहा के संग पूजा की तैयारी करने में व्यस्त हो गई।
शाम के चार बज रहे थे।नेहा तैयार हो गई लाल साड़ी में बेहद खूबसूरत लग रही थी।नीरव भी सफेद चूड़ीदार पजामा कुर्ते में जँच रहा था।बहू बेटे को देखकर लता मन ही मन फूले नहीं समा रही थी।भगवान से यही प्रार्थना कर रही थी कि दोनों का साथ सदा बना रहे।
कुछ ही देर में सभी औरतें आ गईं।पूजा के बाद संगीत का प्रोग्राम शुरू हो गया।खूब नाच गाना हुआ।नेहा भी बड़ चढ़कर हिस्सा ले रही थी।अच्छी खासी रौनक लग गई।नेहा को खुश देखकर लता के मन को बहुत सुकून मिला।हँसी खुशी के माहौल में कब 6 बज गए पता ही नहीं चला।लता ने सभी औरतों को आशीर्वाद व तोहफे देकर विदा किया।
सबके जाने के बाद लता और नेहा रात के खाने की तैयारी करने लगीं वहीं नीरव चाँद निकलने का इंतजार करने लगा।
9बजे के करीब जैसे ही चाँद निकला,नीरव ने आवाज लगाई..माँ..नेहा ऊपर आ जाओ चाँद निकल आया है।
लता और नेहा चहकती हुई छत पर पहुँच गईं।नेहा ने चंद्रमा को अर्घ्य दिया फिर छलनी में नीरव का चेहरा देखते हुए उसकी पूजा की।नीरव ने नेहा को अपने हाथों से पानी पिलाकर उसका व्रत खोला।उसके बाद नीरव और नेहा ने लता के पैर छुए।लता ने दोनों को आशीर्वाद दिया।
खाना खाने के बाद लता ने नेहा को एक बैग पकड़ाते हुआ बोला-“बेटा,ये मेरी तरफ से छोटी सी भेंट है तुम्हारे लिए।”
“माँ,इसमें क्या है?” नीरव और नेहा उत्सुकता से बोले।
“खोलकर देखो।” लता ने मुस्कुराते हुए कहा।
नीरव और पूजा ने जब गिफ्ट खोला तो देखा सोने के कँगन थे।
नीरव नाराज होते हुए बोला- “माँ,इसकी क्या जरूरत थी? फिर इतनी दूर आप अकेले गईं होंगी।पक्के से औने-पौने दाम में खरीदकर आई होंगी।मुझे बोलतीं मैं आपके साथ चलता।”
“अरे तुझे बोलती तो फिर सरप्राइज कैसे रहता?और हाँ,जैसा तू बोल रहा है वैसा कुछ नहीं हैं।मैं इतनी दूर अपने वाले ज्वेलर के यहाँ नहीं गई मैं तो घर के पास वाले ज्वेलर के यहाँ गई थी।मेरी सहेली रमा ने बताया था कि वो बहुत ही विश्वसनीय ज्वेलर है कोई भी उनसे निश्चिंत होकर जेवर खरीद सकता है।“
“अच्छा माँ,ये बताओ इतने पैसे कहाँ से आए आपके पास?”नीरव ने आश्चर्य से पूछा।इससे पहले की रमा कुछ बोलती,नीरव की नजर लता के हाथों पर गई उसके हाथों में सोने के कँगन की जगह काँच की चूड़ी थी।उसे सारी बात समझ आ गई।गुस्सा होते हुए बोला-“माँ, क्या जरूरत थी अपने कँगन बेचने की।पापा ने कितने प्यार से आपको गिफ्ट किये थे आपके जन्मदिन पर।” बेटे की बात सुनकर लता रुआंसी हो गई।पर तुरन्त ही उसने अपने को सम्भाल लिया और मुस्कुराते हुए बोली-“तेरे पापा ने मुझे दिए थे और मैं उनकी बहु को दे रही हूँ।यदि आज वो होते तो अपनी बहु को कुछ न कुछ देते ना।”लता की बात सुनकर नीरव निरुत्तर हो गया।
नेहा लता को गले लगाते हुए बोली-“थैंक यू माँ, मेरे इस करवाचौथ को स्पेशल बनाने के लिए और अनमोल तोहफा देने के लिए।आपका प्यार और आशीर्वाद सदा हमारे साथ बना रहे बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”
बहू की बात सुनकर लता की आँखों में खुशी के आँसू आ गए।आज उसके मन से बहुत बड़ा बोझ उतर गया।उसने निश्चय किया कि अब वह बच्चों की खुशियों पर कभी अपने दुख का ग्रहण नहीं लगने देगी।
दोस्तों कभी कभी हम अपने दुख में इतना खो जाते हैं कि हमें अपनों की खुशियों का ख्याल ही नहीं रहता।ऐसा करके ना सिर्फ हम अपना जीवन नीरस बना लेते हैं बल्कि अपनों के जीवन में भी नीरसता भर देते हैं।हमें चाहिए कि अतीत को भुलाकर खुद भी खुश रहें और अपनों को भी खुश रखें यही सुखी जीवन का मूल मंत्र है।
कमलेश आहूजा
#सोने के कंगन